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वायुमण्डल की उत्पत्ति (Origin of the Atmosphere)

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वायुमण्डल की उत्पत्ति (Origin of the Atmosphere)

वायुमण्डल की उत्पत्ति कब और कैसे हुई ? यह प्रश्न उतना ही मुश्किल व रहस्यमय है जितना कि स्वयं पृथ्वी की उत्पत्ति। इस विषय में निश्चयपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। केवल तर्क और कल्पनाओं के आधार पर इस समस्या के कुछ समाधान निकाले गए हैं। किन्तु इतना तो सर्वमान्य है कि लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले जब पृथ्वी का जन्म हुआ तब वायुमंडल मौजूद नहीं था। 

उस समय पृथ्वी एक अत्यन्त गर्म गैसीय पिण्ड थी और धीरे-2 यह शीतल होकर अपने वर्तमान रूप में आई। जैसे-जैसे पृथ्वी ठंडी और ठोस होती गई, पहली ऊपरी ठोस परत के निर्माण के दौरान डीगैसिंग की प्रक्रिया के माध्यम से पृथ्वी के आंतरिक भाग से गैसें निकलने लगीं। डीगैसिंग की प्रक्रिया में जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें निकली, जिससे एक प्रारंभिक, यद्यपि अधूरा, वातावरण बना। जिनसे प्राथमिक वायुमण्डल का निर्माण हुआ होगा। 

वायुमण्डल में हीलियम एवं हाइड्रोजन जैसी हल्की गैसें बिल्कुल ऊपरी भाग में चली गई। बादलों के निर्माण में जलवाष्प ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि, भीषण गर्मी के कारण बारिश की बूँदें पृथ्वी की सतह तक पहुँचने से पहले ही वाष्पित हो जाती थी। लेकिन धीरे-2 वाष्पीकरण-वर्षा चक्र के कारण अंततः पृथ्वी ठंडी हो गई और नवगठित परत पर जलराशियों का निर्माण हुआ।

 ज्यों-ज्यों स्थलमण्डल तथा जलमण्डल का विकास होता गया, प्राथमिक वायुमण्डल के संघटन में भी उलट-फेर हुए। 

वायुमण्डल के वर्तमान संघटन से यह स्पष्ट है कि यह निरन्तर विकास और परिवर्तन की प्रक्रिया से प्रभावित होता रहा है। वर्तमान वायुमण्डल के निर्माण में ज्वालामुखी के उद्गारों, गर्म जल के स्रोतों, विभिन्न प्रकार के ठोस पदार्थों के रासायनिक विलयन तथा वनस्पतियों के प्रश्वसन आदि क्रियाओं का विशेष योगदान रहा है। इन क्रियाओं के द्वरा वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प और नाइट्रोजन आदि गैसें छोड़ी गई। जलवायु शास्त्र के प्रमुख विद्वान क्रिचफील्ड के अनुसार इस बात के स्पष्ट प्रामाण मिलते हैं कि वायुमण्डल अपने वर्तमान रूप में आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व अर्थात् कैम्ब्रियन युग में आया होगा।

अधिक जानने के लिए दिए गए Video Link पर क्लिक करें: वायुमण्डल की उत्पत्ति

पृथ्वी पर विकसित हुए जीवित जीव संभवतः प्राथमिक वायुमण्डल से वर्तमान वातावरण में परिवर्तन के लिए जिम्मेदार थे। पृथ्वी पर सबसे पहले जीवित जीवों में से बैक्टीरिया ने दो प्रक्रियाएं विकसित कीं जो जीवन के लिए मौलिक थीं। सबसे पहले, उन्होंने जीवन के लिए आवश्यक रासायनिक यौगिक बनाने के लिए उस समय के वातावरण से अमोनिया का उपयोग किया। 

बाद में, जीवाणुओं ने अपना भोजन बनाने के लिए ऊर्जा के स्रोत के रूप में सूर्य के प्रकाश का उपयोग किया। साइनोबैक्टीरिया नामक ये जीवाणु प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम से अपना भोजन बनाते हैं। प्रकाश संश्लेषण के दौरान, भोजन बनाने के लिए सूर्य के प्रकाश के साथ-2 पानी और कार्बन डाइऑक्साइड को रासायनिक रूप से संयोजित किया जाता है। प्रकाश संश्लेषण से उत्पाद के रूप में ऑक्सीजन भी निकलती है। अन्य जीवन रूपों को जीवित रहने के लिए इस ऑक्सीजन की आवश्यकता थी। 

वर्तमान समय में सायनोबैक्टीरिया के बजाय हरे पौधे वायुमंडल में मौजूद अधिकांश ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं। आदिम वायुमंडल में छोड़ी गई गैसों में से कुछ, विशेष रूप से ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड, समुद्र में घुल गईं। पानी में, कार्बन डाइऑक्साइड चट्टानों के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे कैल्शियम कार्बोनेट बनता है। लगभग 600 मिलियन वर्ष पहले, समुद्र में इतनी ऑक्सीजन घुल गई थी कि वहाँ जीवन विकसित हो सका। 

पृथ्वी के वायुमंडल में अधिकांश कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग इन समुद्री जीवों द्वारा अपना भोजन बनाने के लिए किया गया था। आज वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का नाममात्र अंश ही बचा है। प्राथमिक वायुमण्डल से कार्बन डाइऑक्साइड के हटने के साथ, नाइट्रोजन सबसे प्रमुख गैस बन गई। प्रकाश संश्लेषण से प्राप्त ऑक्सीजन जल्द ही दूसरी सबसे प्रमुख गैस बन गई । 

आज भी स्थल, जल, वायु वानस्पतिक एवं जीव जगत की पारस्परिक क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप एवं धरातल के बीच आदान-प्रदान चलता रहता है। यदि एक ओर धरातल पर होने वाली विभिन्न क्रियाओं में वायुमण्डलीय ऑक्सीजन का व्यय होता है तो दूसरी ओर इसके प्रतिदान स्वरूप उसे कार्बन डाइआक्साइड प्राप्त होता है। जहाँ एक ओर मिट्टी में पाए जाने वाले बैक्टीरिया वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का अवशोषण करते हैं वहीं दूसरी ओर विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं से यह पुनः वायुमण्डल में वापस लौटा दिया जाता है। 

इस प्रकार विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, जीवधारियों, बैक्टीरिया तथा रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से वायुमण्डल तथा स्थल एवं जलमण्डल में सन्तुलन की स्थिति बनी रहती है।

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