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जेट स्ट्रीम (Jet Stream)

क्या होती है जेट स्ट्रीम (Jet Stream)?

ऊपरी क्षोभ मण्डल में धरातल से 6,000 मीटर से 12,000 मीटर की ऊंचाई के मध्य दोनों गोलाद्धों के चारों ओर 20° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों से ध्रुवों के निकट तक वर्ष भर पश्चिम से पूर्व दिशा में विसर्प रूप में निरन्तर प्रवाहित होने वाली वाली वायुधाराओं को “जेट प्रवाह” अथवा “जेट स्ट्रीम” कहा जाता है। 

केन्ड्रयू महोदय ने ने जेट स्ट्रीम शब्दावली का प्रयोग दोनों गोलाद्धों की उच्च स्तरीय पछुआ हवाओं के बीच पाई जाने वाली शक्तिशाली वायु पेटी के लिए किया है। 

जेट स्ट्रीम के प्रमुख अनुसन्धानकर्ता रॉसबी के अनुसार ‘प्रत्येक गोलार्द्ध के चारों ओर लहरदार प्रणाली में पूर्व की ओर विसर्पण करती हुए एक चौड़ी पवन-सरिता को जेट स्ट्रीम कहते हैं। 

ट्रेवार्था ने ऊपरी वायुमण्डल में विद्यमान 320 किलोमीटर से 480 किलोमीटर प्रति घण्टे के प्रचण्ड वेग से प्रवाहित होने वाली हवा की एक संकरी पेटी को जेट स्ट्रीम बताया है। उन्होंने जेट स्ट्रीम को पश्चिम से पूर्व की ओर प्रबल वेग से चलने वाली एक विशाल पवन धारा माना है। 

विश्व ऋतु वैज्ञानिक संगठन ने  जेट स्ट्रीम की निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया हैः 

“जेट स्ट्रीम लगभग समानान्तर, चपटी एवं नलिका तुल्य धारा है, जो क्षोभ मण्डल सीमा के निकट प्रवाहित होती है। इसका अक्ष अधिकतम वेग की दिशा में होता है। इसका प्रमुख लक्षण केवल प्रचण्ड वायु वेग ही नहीं वरन् अनुप्रस्थ वायु अवरूपण भी है। सामान्यतया जेट स्ट्रीम हजारों किलोमीटर लम्बी, सैकड़ों किलोमीटर चौड़ी तथा कई किलोमीटर ऊँची होती है। इसकी धुरी के प्रत्येक बिन्दु पर इसका न्यूनतम वायु वेग 30 किलोमीटर प्रति सेकण्ड होता है।” 

Jet Stream
जेट स्ट्रीम का अंतरिक्ष से दृश्य

कैसे हुई जेट स्ट्रीम (Jet Stream) की खोज?

इन पवन सरिताओं की खोज का श्रेय द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी बम-बर्षक विमान के चालकों को जाता है। बात ऐसी है कि जब अमेरिकी विमान चालक ‘बी-29’ बमवर्षक विमानों के साथ ऊँचाइयों पर जापान की ओर (प्रशांत महासागर से होकर) उड़ान भरते थे, तो उन्हें प्रबल वेग वाली पवन धाराओं का सामना करना पड़ता था जिसके फलस्वरूप उनके विमानों की रफ्तार धीमी पड़ जाती थी। कभी-कभी तो विमानों का आगे बढ़ना भी कठिन हो जाता था। 

किन्तु जब वे ही विमान अमेरिका की ओर वापसी उड़ान करते थे, तब उनके प्रारम्भिक वेग में वृद्धि हो जाती थी। इस अप्रत्याशित घटना की रिपोर्ट प्राप्त होते ही मौसम वैज्ञानिकों ने वायुमण्डल की उन ऊपरी परतों के सम्बन्ध में छानबीन शुरू की। इसके फलस्वरूप जिन वेगवती पवन धाराओं के अस्तित्व का पता लगा, उन्हें ‘जेट स्ट्रीम’ नाम से पुकारा जाने लगा। पूर्ण विकसित अवस्था में पवन धारायें वस्तुतः ‘जेट’ जैसी होती हैं। 

जेट स्ट्रीम (Jet Stream) की विशेषताएँ

  • जेट स्ट्रीम (Jet Stream) के अन्तर्गत् पवन प्रवाह की सीमाएं स्पष्ट होती हैं, जिसके दोनों किनारों की ओर वायुमण्डल अपेक्षाकृत शान्त रहता है। 
  • स्ट्रेलर के अनुसार अनुप्रस्थ काट में जेट स्ट्रीम की तुलना होज (hose) में बहती हुई एक ऐसी जलधारा से की जा सकती है जिसकी अधिकतम वेग की केन्द्र वाले हिस्से में होता है तथा केन्द्र से दूर अपेक्षाकृत मन्द होता जाता है। 
  • जेट स्ट्रीम की स्थिति क्षोभ सीमा से लगभग 600 से 900 मीटर नीचे होती है। 
  • धरातल से 6000 मीटर से 9000 मीटर की ऊँचाई पर दोनों गोलार्दों में ये पवन धाराएं पश्चिम से पूर्व पछुआ हवा की पेटी के ऊपरी भाग में पाई जाती हैं। 
  • शीत ऋतु में उनकी स्थिति भू-मध्य रेखा के अधिक निकट हो जाती है तथा 20° अक्षांश के निकट तक ये प्रवाहित होती हैं। 
  • इन पवन धाराओं का वायु वेग भी ऋतु के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीत ऋतु में इनका औसत वेग लगभग दुगुना हो जाता है। 
  • ऋतु वैज्ञानिकों के अनुसार इन पवन धाराओं का वेग इनकी दिशा की अपेक्षा अधिक परिवर्तनशील होता है। इनके मध्य भाग में वायु का औसत वेग शीत ऋतु में 65 किलोमीटर प्रतिघण्टा तथा ग्रीष्म ऋतु में केवल 24 किलोमीटर प्रति घण्टा होता है। 
  • जेट स्ट्रीम की धुरी अर्थात केन्द्र के निकट पवन का वेग 480 किलोमीटर प्रतिघण्टा से भी अधिक हो जाता है। 
  • जेट धाराओं का सर्वाधिक औसत वेग धरातल पर स्थित उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च भार क्षेत्रों के ऊपर होता है तथा इनके स्थानान्तरण के साथ ही जेट धारायें भी स्थानान्तरित होती रहती हैं। 
  • ट्रॉपोपाज (क्षोभ सीमा) के निकट इन धाराओं का वेग अधिकतम होता है, किन्तु इनके मध्य भाग से दोनों ओर पवन वेग में तीव्र गति से गिरावट आती है। ध्रुवों की ओर इनका वेग विशेष रूप से कम हो जाता है।
  • कभी-कभी जेट स्ट्रीम (Jet Stream) ट्रॉपोपाज पार करके समताप मण्डल के निचले भाग में प्रवेश कर जाती है। कभी-कभी नीचे की ओर धरातल से 3 किलोमीटर की ऊंचाई तक इनका प्रभाव दिखाई पड़ता है। 
  • समताप मण्डल जलवाष्प के अभाव में शुष्क एवं मेघ रहित होता है, किन्तु इन धाराओं के प्रवेश के कारण समताप मण्डल की निचली सीमा भंग हो जाती है तथा उसमें जलवाष्प पहुँच जाता है। इस प्रकार समताप मण्डल के निचले भाग में कभी-कभी पक्षाभ मेघ (cirrus cloud) दिखाई पड़ते हैं। 
  • उत्तरी गोलार्द्ध में जेट स्ट्रीम (Jet Stream) में जहाँ कहीं वायुदाब प्रवणता की तुलना में वायु वेग अधिक हो जाता है, वहाँ उच्चवेगीय वायु अपने दाएं ओर विस्थापित हो जाती है। ऐसी वायु को उप-प्रवणता पवन (sub gradient wind) कहा जाता है। 
  • जेट स्ट्रीम (Jet Stream) के दाएं किनारें पर वायु के एकत्रित हो जाने के कारण पछुआ पवन की पेटी के भूमध्य रेखीय किनारे पर पृथ्वी पर उच्च वायुभार क्षेत्रों की स्थापना में पर्याप्त सहायता मिलती है। इस प्रक्रिया को एण्टीसाइक्लोजेनेसिस (anticyclogenesis) कहते हैं। 
  • क्षोभ मण्डल के ऊपरी भाग में विसर्पण करती हुई जेट स्ट्रीम के प्रवाह में वायु वेग अत्यधिक परिवर्तनशील होता है, जिससे मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी में बड़ी कठिनाई होती है। 
  • इस धारा की एक अन्य विशेषता यह है कि उसके अक्ष के विभिन्न भागों में वायु का वेग असमान पाया जाता है। जेट स्ट्रीम में पवन का सर्वाधिक वेग शीत ऋतु में एशिया के पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र से दूर, संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण-पूर्वी भाग तथा उत्तरी अफ्रीका एवं हिन्द महासागर के मध्यवर्ती भागों में पाया जाता है। 
  • जेट धारा के आर-पार तापमान प्रवणता भी तीव्र होती है। यही कारण है कि इसके ध्रुवीय किनारे पर वायु अत्यधिक शीतल तथा भूमध्य रेखीय किनारे की वायु अत्यधिक गर्म होती है।
  • यद्यपि जेट स्ट्रीम (Jet Stream) का प्रवाह अक्षांश रेखाओं के समानान्तर होता है, किन्तु प्रायः इनमें उत्तर से दक्षिण की ओर दीर्घ तरंगें भी उत्पन्न होती हैं। इसीलिए इनकी समभार रेखाएं सर्पाकार होती हैं। 
  • अक्षांश एवं ऊंचाई के अनुसार इस धारा में दीर्घाकार वायु कटक तथा द्रोणी (trough) उत्पन्न होती है। जेट स्ट्रीम में उत्पन्न छोटी से छोटी तरंगों की लम्बाई 6400 किलोमीटर तथा आयाम लगभग 880 किलोमीटर होता है। 
  • ये तरंगें (meanders) इतनी दीर्घाकार होती हैं कि ग्लोब के चारों ओर केवल सात तरंगें ही हो सकती हैं।
  • जेट प्रवाह (Jet Stream) की तरंगें ज्यों-ज्यों पश्चिम से पूरब की ओर अग्रसर होती हैं, इनके आकार तथा विस्तार में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाते हैं। इनकी शक्ति भी क्रमशः क्षीण होती जाती है। 
  • अधिकांश तंरगों का पूर्ण विकास होने पर वे उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में फैल जाती हैं जिसके फलस्वरूप शीत एवं उष्ण वायु राशियों का परस्पर आदान-प्रदान सम्भव हो जाता है। कभी-कभी भूमध्य-रखा की ओर फैली हुई तरंगों के मूल धारा से विच्छिन्न हो जाने के कारण उष्ण वायु राशि से घिरी हुई शीतल वायु पुंज से “शीतल उच्चस्तरीय चक्रवात” बन जाते हैं (चित्र देखें)। 
  • इसके विपरीत, धुर्वों की ओर बढ़ी हुई तरंगों के विच्छिन्न हो जाने से “उच्चस्तरीय प्रतिचक्रवातों” का जन्म हो जाता है। 

जेट प्रवाह का सूचक-चक्र (Index cycle of Jet Stream)

जेट प्रवाह (Jet Stream) से सम्बद्ध पवन प्रवाह प्रणाली में प्रायः अनियमित परिवर्तन होते रहते हैं। किन्तु इन परिवर्तनों में भी एक क्रमबद्धता पाई गई है। अक्षांश रेखाओं के समानान्तर प्रवाहित होने वाली जेट स्ट्रीम के पवन के वेग में साप्ताहिक परिवर्तन होते हैं। कभी-कभी पवन का वेग सामान्य वेग का 50 प्रतिशत हो जाता है। पवनों के वेग में क्षेत्रीय अथवा अल्पकालिक परिवर्तन तो कभी-कभी तिगुना भी हो जाता है। 

विषुवत् रेखा से लेकर उत्तरी ध्रुव वृत्त (arctic circle) तक स्थानीय रूप से जेट धाराएं देखी जाती हैं। उच्च-स्तरीय पछुआ पवनों के भ्रमिलों (vortices) में होने वाले संकुचन तथा प्रसरण के कारण जेट प्रवाह की स्थिति तथा उसके आकार में परिवर्तन होते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन की अवधि को ही सूचक-चक्र (index cycles) कहा जाता है। ऐसे प्रत्येक चक्र को पूरा होने में 4 से 6 सप्ताह तक का समय लग जाता है। उपर्युक्त सूचक-चक्र की चार अवस्थाएं होती हैं, जिनको चित्र में प्रदर्शित किया गया है:- 

जेट प्रवाह का सूचक-चक्र

जेट प्रवाह का सूचक-चक्र की अवस्थाएं

प्रथम अवस्था

इस अवस्था में जेट प्रवाह (Jet Stream) ध्रुवों के अधिक निकट स्थित होने के कारण इसे उच्च कटिबन्धीय सूचक (high zonal index) कहा जाता है, जैसा कि चित्र (a) से स्पष्ट है। ऐसी स्थिति में जेट स्ट्रीम पश्चिम से पूर्व प्रायः सीधी प्रवाहित होती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इस धारा के उत्तर में ध्रुवीय शीतल वायु पुंज, एवं दक्षिण की ओर सामान्यतया उष्ण वायु राशि पाई जाती है। भू-तल पर पछुआ पवन का खिसकाव ध्रुवों की ओर हो जाता है। उच्च अक्षांशों में ही चक्रवातों की क्रियाओं के सीमित होने से उच्च अक्षांशीय एवं निम्न अक्षांशीय वायु राशियों का आदान-प्रदान हो जाता है। 

द्वितीय अवस्था

द्वितीय अवस्था में जेट स्ट्रीम (Jet Stream) की तरंगों के आयाम में वृद्धि हो जाती है, जैसा कि चित्र (b) से स्पष्ट हैं। इसके साथ ही जेट स्ट्रीम विषुवत् रेखा की ओर खिसक आती है। जेट स्ट्रीम के विसर्पण (meanders) में वृद्धि के फलस्वरूप शीतल ध्रुवीय वायु भू-मध्य रेखा के अधिक निकट, तथा उष्ण कटिबन्धीय वायु ध्रुवों के अधिक निकट पहुँच जाती हैं।

तृतीय अवस्था

इस अवस्था में तरंगों में और भी वृद्धि हो जाती है, तथा जेट स्ट्रीम (Jet Stream) की स्थिति भू-मध्य रेखा से अधिक निकट हो जाती है, जैसा कि चित्र (c) से स्पष्ट है। इस अवस्था में शीतल एवं उष्ण वायु- पुंजों का भारी मात्रा में विस्थापन होता है। तापमान प्रवणता अब उत्तर-दक्षिण न होकर पूर्व-पश्चिम दिशा में पाई जाती है। 

चौथी अवस्था

चौथी अवस्था का प्रारम्भ जेट स्ट्रीम (Jet Stream) की उत्तर तथा दक्षिण की ओर फैली हुई तरंगों के विच्छेदन से होता है, जो चित्र (d) में दिखाया गया है। तरंगों के अत्यधिक विस्तार के कारण ही उनका मूल धारा से विच्छेद हो जाता है। निम्न अक्षांशीय ऊपरी वायुमण्डल में शीतल ध्रुवीय वायु तथा उच्च अक्षांशों में उष्ण वायु विपरीत गुणों वाली हवाओं से घिर जाती है। जेट स्ट्रीम की इस स्थिति को निम्न कटिबन्धीय सूचक (low zonal index) कहते हैं। 

इस स्थिति में वायु राशियों में तापमान-प्रवणता पूरब से पश्चिम की ओर पाई जाती है। पछुआ हवा कटिबन्धीय न होकर कोशों में विभक्त हो जाती है। मौसम में कभी-कभी इतना अधिक उलट-फेर हो जाता है कि अलास्का में फ्लोरिडा से अधिक तापमान अंकित किया जाता है। इसका मूल कारण उच्च स्तरीय वायुमण्डल में उत्तर की ओर (उत्तरी गोलार्द्ध में) उष्ण वायु पुंज तथा दक्षिण की ओर शीतल वायु पुंज का पाया जाना है। 

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