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क्या होती है आर्द्रता (humidity)?
वायुमण्डल में उपस्थित जल-वाष्प को आर्द्रता (humidity) कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ की भाँति जल की भी तीन अवस्थाएं होती हैं : ठोस, तरल तथा गैस। जल इन तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है। ठोस रूप में इसे हिम, तरल रूप में जल तथा गैसीय अवस्था में जल वाष्प की संज्ञा प्रदान की जाती है। वायु में अन्य गैसों के साथ जल-वाष्प भी विभिन्न मात्रा में पाई जाती है और इसी को हम वायुमण्डलीय आर्द्रता कहते हैं।
हम जानते हैं कि जल-वाष्प एक रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन पदार्थ होता है जिसे हम देख नहीं सकते। वायुमण्डल में जब विशेष परिस्थितियों में जल वाष्प की अवस्था में परिवर्तन होकर वह तरल अथवा ठोस रूप धारण करती है, तब हम उसे ओस, पाला, मेघ, कोहरा, हिमवृष्टि आदि अनेक रूपों में देखते हैं। जलवायु अथवा मौसम के विभिन्न तत्वों में वायुमण्डलीय आर्द्रता का विशेष महत्व है।
कहां से आता है वायुमंडल में जल-वाष्प?
वायुमण्डलीय जल-वाष्प का सबसे पमुख स्रोत पृथ्वी के तीन-चौथाई भाग पर फैले हुए महासागर हैं। धरातल पर फैली हुई इस विशाल जल राशि की सतह से वाष्पन (evaporation) की प्रक्रिया द्वारा वायुमण्डल को निरन्तर जल-वाष्प प्राप्त होती रहती है। महासागरों के अतिरिक्त जल-वाष्प की प्राप्ति के अन्य गौण स्रोत भी हैं जो वायुमण्डल को उसकी आपूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं अदा करते हैं। ये स्रोत हैं: लघु जल राशियाँ जैसे, नदियाँ, झील, तालाब आदि; नम धरातल तथा वनस्पतियाँ इत्यादि।
पेड़-पौधों से होने वाली वाष्पोत्सर्जन क्रिया (evapotranspiration) द्वारा वायुमण्डल को जल-वाष्प को भारी मात्रा मिल जाती है। महासागरों की सतह पर निरन्तर वाष्पीकरण होता रहता है तथा पवनों के द्वारा महाद्वीपों के सुदूर प्रान्तों तक जल-वाष्प पहुँचा दी जाती है। इसी प्रकार वायुमण्डल में होने वाली संवहन, आरोहण तथा वायु विक्षोभ आदि अनेक प्रक्रियाओं से धरातल से काफी ऊँचाई तक वायु की विभिन्न परतों में जल-वाष्प का फैलाव या विसरण हो जाता है।
वायुमण्डलीय जलवाष्प का स्रोत मुख्यतः धरातल पर होने के कारण ऊँचाई में वृद्धि के साथ ही वायु में उसकी मात्रा में कम होती जाती है। वायुमण्डल की सम्पूर्ण जल-वाष्प का लगभग आधा भाग 1950 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है। सम्भवतः 10 किलोमीटर के ऊपर वायुमण्डलीय जल-वाष्प का केवल 1% भाग ही शेष रह जाता है।
आर्द्रता (Humidity) के प्रकार अथवा आर्द्रता (Humidity) प्रकट करने की विधियाँ
वायुमण्डलीय आर्द्रता को प्रकट करने या दर्शाने की मुख्यतया चार विधियाँ हैं : निरपेक्ष आर्द्रता, सापेक्ष आर्द्रता अथवा आपेक्षिक आर्द्रता, विशिष्ट आर्द्रता; तथा मिश्रण अनुपात।
निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity)
किसी दिए गए आयतन की वायु में जल-वाष्प की वास्तविक मात्रा को प्रकट करने की विधि को “निरपेक्ष आर्द्रता” (absolute humidity) की संज्ञा प्रदान की जाती है। दूसरे शब्दों में वायु के इकाई आयतन में उपस्थित जल-वाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। आयतन की इकाई घन फुट या घन मीटर में हो सकती है। इस प्रकार निरपेक्ष आर्द्रता ‘ग्रेन घन फुट’ या ‘ग्रम घन मीटर’ में व्यक्त की जाती है।
चूंकि वाष्प की मात्रा आयतन के सन्दर्भ में व्यक्त की जाती है, अतः वायु के प्रसार और संकुचन के साथ ही निरपेक्ष आर्द्रता में परिवर्तन हो जाता है। वायुमण्डलीय आर्द्रता को प्रकट करने के लिए मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा इस विधि का बहुत कम प्रयोग किया जाता है।
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity)
वायुमण्डलीय आर्द्रता को प्रकट करने का सर्वाधिक प्रयुक्त की जाने वाली विधि सापेक्ष आर्द्रता है। किसी निश्चित वायु दाब और तापमान पर वायु के निश्चित आयतन में उपस्थित जल-वाष्प की वास्तविक मात्रा तथा उसी दाब एवं तापमान पर उसी आयतन की वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जल-वाष्प की मात्रा के अनुपात को उस वायु की सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं।
सापेक्ष आर्द्रता को निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है :-
सापेक्ष आर्द्रता = वायु में उपस्थित जल-वाष्प की मात्रा / वायु को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जल-वाष्प की मात्रा x 100
क्योंकि सापेक्ष आर्द्रता सदैव प्रतिशत में निकाली जाती है, अतः 100 से गुणा करके फल प्रतिशत में लिखा जाता है। उदाहरण के लिए यदि एक किलोग्राम वायु में किसी निश्चित वायु दाब एवं ताप पर 12 ग्राम जल- वाष्प धारण करने की क्षमता है, किन्तु उसमें जल-वाष्प की वास्तविक मात्रा केवल 6 ग्राम ही है, तो ऐसी स्थिति में वायु की सापेक्ष आर्द्रता 50 प्रतिशत (12 x 100 = 50) होगी।
सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity) से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
- यदि वायु के तापमान में वृद्धि कर दी जाए, और जल-वाष्प की मात्रा स्थिर रहे, तो सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाएगी।
- यदि वायु का तापमान कम कर दिया जाए, किन्तु जल-वाष्प की मात्रा स्थिर रहे तो सापेक्ष आर्द्रता में वृद्धि हो जाएगी। तापमान में वृद्धि की दशा में वायु की वाष्प धारण करने की क्षमता में वृद्धि तथा तापमान हास की दशा में उसकी क्षमता में कमी आ जाने से ऐसा होता है।
- जब सापेक्ष आर्द्रता 100% हो जाती है, तब वायु संतृप्त कही जाती है।
- सापेक्ष आर्द्रता के द्वारा वाष्पीकरण की मात्रा तथा उसकी दर निर्धारित होती है।
- सापेक्षिक आर्द्रता एवं वाष्पीकरण की तीव्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध होने से वनस्पतियों तथा प्राणियों के शरीर से आर्द्रता एवं तापमान विसर्जन की दर इसी से निर्धारित होती है।
सापेक्ष आर्द्रता का प्रादेशिक वितरण
- धरातल पर विषुवत् रेखा के आस-पास के प्रदेशों में अधिकतम आपेक्षिक आर्द्रता पाई जाती है।
- उत्तर तथा दक्षिण उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी की ओर सापेक्ष आर्द्रता क्रमशः कम होती जाती है।
- कर्क और मकर रेखाओं के निकट सापेक्ष आर्द्रता न्यूनतम हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि विषुवत् रेखीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर वायु में जल वाष्प की मात्रा निश्चित रूप से घटती जाती है, किन्तु तापमान में कमी होने कारण उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों से ध्रुवों की ओर सापेक्ष आर्द्रता बढ़ती जाती है।
- उत्तरी गोलार्द्ध में 60° उत्तरी अक्षांश से ऊपर की ओर सापेक्ष आर्द्रता पुनः घटती हुई दिखाई पड़ती है।
- जल की अपेक्षा स्थल पर सापेक्ष आर्द्रता कम होती है, अतः उत्तरी गोलार्द्ध में उच्च अक्षांशीय प्रदेशों में दक्षिणी गोलार्द्ध की अपेक्षा इसका प्रतिशत अपेक्षाकृत कम होता है। स्पष्टतः इसका कारण महाद्वीपीय प्रभाव है।
- जुलाई महीने में अधिकतम एवं न्यूनतम सापेक्ष आर्द्रता की पेटियाँ उत्तर की ओर तथा जनवरी में दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं। पेटियों के इस खिसकाव का सम्बन्ध तापीय पेटियों के स्थानान्तरण से होता है।
- सापेक्ष आर्द्रता में दैनिक परिवर्तन भी उल्लेखनीय है। प्रातःकाल जब तापमान कम रहता है, सापेक्ष आर्द्रता अधिक रहती है, किन्तु अपराह्न में तापमान ऊँचा तथा सापेक्ष आर्द्रता कम पायी जाती है।
विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity)
वायु में उपस्थित जल-वाष्प की मात्रा को व्यक्त करने की यह एक अन्य विधि है। वायु की प्रति इकाई संहति तथा उसमें उपस्थित जल-वाष्प की संहति के अनुपात को विशिष्ट आर्द्रता (specific humidity) कहते हैं। इस विधि के द्वारा प्रति किलोग्राम वायु (आर्द्र वायु) में जल-वाष्प की वास्तविक मात्रा को ग्राम में व्यक्त किया जाता है; जैसे, यदि एक किलोग्राम वायु में जल-वाष्प की मात्रा 10 ग्राम है, तो उसकी विशिष्ट आर्द्रता 10 ग्राम प्रति किलोग्राम होगी।
वायु की विशिष्ट आर्द्रता उसके वाष्पदाब का समानुपाती तथा वायुदाब का विलोमानुपाती होती है। अतः वायु के आयतन में प्रसारण अथवा संकोचन के बावजूद, यदि जल-वाष्प की मात्रा स्थिर हो, तो विशिष्ट आर्द्रता में कोई परिवर्तन नहीं होता।
विशिष्ट आर्द्रता का प्रादेशिक वितरण
- वायुमण्डल की विशिष्ट आर्द्रता भू-मध्य रेखा के आस-पास अधिकतम तथा ध्रुवों पर न्यूनतम होती है। विषुवत् रेखा के पास तापमान अधिक होने से वायु की वाष्प ग्रहण करने की क्षमता अधिक तथा ध्रुवों पर तापमान की न्यूनता के कारण कम होती है। अतः विषुवत् रेखीय प्रदेशों में वायु में जल-वाष्प की मात्रा अधिक तथा ध्रुवीय प्रदेशों में कम होती है
- तापमान के प्रभाव के कारण ही किसी प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में शीत ऋतु की अपेक्षा वायुमण्डल की विशिष्ट आर्द्रता अधिक होती है।
- विशिष्ट आर्द्रता के प्रादेशिक वितरण की एक विशेषता यह है कि महाद्वीपों के ऊपर महासागरों की अपेक्षा यह कम होती है। किन्तु इस सम्बन्ध में इस बात का ध्यान रखना होगा कि मरुप्रदेशों की वायु में निरपेक्ष अर्थों में वाष्प सदैव कम नहीं रहती। ग्रीष्म काल में सहारा मरु प्रदेश की अत्यधिक तप्त वायु में उच्च अक्षांशीय शीतल सागरीय पवनों की अपेक्षा अधिक वाष्प विद्यमान रहती है।
- विश्व के अधिकांश भागों में विशिष्ट आर्द्रता ग्रीष्म में अधिकतम तथा शीतकाल में न्यूनतम अंकित की जाती है।
मिश्रण अनुपात (Mixing Ratio)
शुष्क वायु के प्रति इकाई भार में उपस्थित वाष्प भार के अनुपात को मिश्रण अनुपात (mixing ratio) कहते हैं। साधारणतया विशिष्ट आर्द्रता एवं मिश्रण अनुपात में बहुत ही थोड़ा अन्तर पाया जाता है। इसीलिए कभी-कभी विशिष्ट आर्द्रता तथा मिश्रण अनुपात का समान अर्थों में प्रयोग किया जाता है। विशिष्ट आर्द्रता की भाँति इसे भी प्रति किलोग्राम शुष्क वायु में उपस्थित जल-वाष्प को ग्राम में व्यक्त किया जाता है। यदि एक किलोग्राम शुष्क वायु में 15 ग्राम जल-वाष्प पाई जाती है, तो इस प्रकार आर्द्र, वायु (वाष्पयुक्त वायु) का कुल भार 1015 ग्राम हुआ।