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मौसम एवं जलवायु के तत्त्व (Elements of Weather and Climate) 

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मौसम एवं जलवायु के तत्त्व(Elements of Weather and Climate) 

जिन तत्त्वों से विभिन्न प्रकार के मौसमों एवं जलवायु प्रकारों की रचना होती है उन्हें मौसम अथवा जलवायु के तत्त्व कहा जाता है। इन तत्वों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जा रहा है – 

1. तापमान 

2. वायुदाब 

3. पवनें 

4. आर्द्रता

5. वर्षण 

वायु का तापमान (Air Temperature)

वैसे तो मौसम और जलवायु के सभी तत्त्व घनिष्ठ रूप से अन्तर्संबन्धित (Inter-related) तथा अन्योन्याश्रित (Interdependent) हैं किन्तु तापमान एक ऐसा आधारभूत तत्त्व है जिस पर जलवायु के अन्य तत्त्व निर्भर करते हैं।  

वायुमण्डल में संवेद ऊष्मा अथवा ठण्ड (Sensible heat or cold) की मात्रा को तापमान कहते हैं। व्यावहारिक रूप से वायुमण्डल, आंशिक रूप से सूर्य से आने वाले प्रत्यक्ष विकिरण (Insolation) तथा मुख्य रूप से पार्थिव विकिरण (Terrestrial Radiation) द्वारा ‘अप्रत्यक्ष’ रूप से गर्म होता है। किसी स्थान का तापमान अनेक कारकों पर निर्भर करता है जिनमें भूमध्य रेखा से दूरी, समुद्र तल से ऊँचाई, सागर तट से दूरी, प्रचलित पवनें, समुद्री धाराएँ, भूमि का ढाल तथा मेघ एवं वर्षा प्रमुख हैं।

तापमान के वितरण की सामान्य विशेषताएँ:

  • तापमान भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर कम होता चला जाता है।
  • समुद्र तल से ऊँचाई बढ़ने पर तापमान में कमी आती है। 
  • गर्म समुद्री धाराएँ और उन पर से बहने वाली पवनें निकटवर्ती क्षेत्र के तापमान को बढ़ाती हैं।
  • सूर्य के समक्ष पड़ने वाली ढालों पर तापमान अधिक होता है जबकि विमुख ढालों पर तापमान कम पाया जाता है।

तापमान में दैनिक तथा वार्षिक तापान्तर होते रहते हैं। दैनिक तापान्तर का सम्बन्ध मौसम से होता है जबकि वार्षिक तापान्तर का सम्बन्ध जलवायु से होता है। 

वायुदाब (Air Pressure)

अन्य पदार्थों की भाँति वायु में भार होता है जिसके कारण वायुदाब पैदा होता है। धरातल पर तापमान का असमान वितरण वायुदाब में भिन्नता उत्पन्न करता है। दो स्थानों के बीच वायुदाब में अन्तर होने से वायु उच्चदाब वाले क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर बहने लगती है। किसी स्थान का वायुदाब वहाँ के तापमान, जलवाष्प की मात्रा तथा समुद्र तल से ऊँचाई आदि कारकों द्वारा नियन्त्रित होता है। वायुदाब को सामान्तया मिलीबार में मापा जाता है।

पवनें (Winds)

वायु के क्षैतिज अर्थात् धरातल के समांतर संचलन को पवन कहते हैं। विश्व की प्रचलित पवनें (Prevailing Winds) पृथ्वी पर वायुदाब पेटियों (Pressure Belts) की स्थिति के अनुसार ही चलती हैं। सन्मार्गी पवनें, पछुवा पवनें तथा ध्रुवीय पवनें स्थायी अथवा प्रचलित पवनों के तथा पर्वत व घाटी समीर, स्थल व समुद्र समीर, लू आदि स्थानीय पवनों के उदाहरण हैं। 

आर्द्रता (Humidity)

वायुमण्डल में आर्द्रता जलवाष्प के रूप में उपस्थित है, जो अक्सर संघटित होकर बादलों को जन्म देती है। आर्द्रता को मापने की तीन विधियाँ होती हैं: निरपेक्ष आर्द्रता , सापेक्षिक आर्द्रता तथा विशिष्ट आर्द्रता। वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता इसके तापमान पर निर्भर करती है। वायु का तापमान जितना अधिक होगा, उसके जल धारण करने की क्षमता उतनी ही अधिक होगी।

वर्षण (Precipitation)

आर्द्रता का धरातल पर  वर्षा, ओले, हिम, ओस आदि के रूप में गिरना वृष्टि (Precipitation) कहलाता है।

मौसम एवं जलवायु के ऊपर वर्णित विभिन्न तत्वों तथा कारकों में भेद करना कठिन कार्य होता है; मौसम का कोई तत्व किसी विशेष परिस्थिति में जलवायु को निश्चित करने वाला कारक बन जाता है। कतिपय उदाहरणों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि की जा सकती है। देखिए, पवन की दिशा मौसम का महत्वपूर्ण तत्व भी है और जलवायु निर्धारित करने वाला एक कारक भी। उसी प्रकार पवन का वेग मौसम का अत्यन्त महत्वपूर्ण तत्व होते हुए जलवायु का नियन्त्रणकारी कारक भी है, क्योंकि समुद्रों से आर्द्रता की आपूर्ति जिस गति से होती है वर्षा की तीव्रता बहुत कुछ उस पर निर्भर करती है। 

उसी प्रकार सूर्य प्रकाश की अवधि वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं पर प्रभाव डालने के कारण मौसम का महत्वपूर्ण तत्व मानी जाती है; किन्तु वायु के तापमान को नियन्त्रित करने के कारण उसे जलवायु का कारक भी माना जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि मौसम एवं जलवायु के विभिन्न कारकों एवं तत्वों के अत्यन्त जटिल क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के मौसम एवं जलवायु की उत्पत्ति होती है। 

मौसम एवं जलवायु के तत्वों में पारस्परिक सम्बन्ध

यह बता देना आवश्यक है कि ये परस्पर सम्बद्ध होते हैं। इन सभी तत्वों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं आधारभूत तत्व वायु का तापमान होता है, क्योंकि इसमें होने वाले परिवर्तन अन्य तत्वों में तत्काल परिवर्तन ला देते हैं, जिसके फलस्वरूप मौसम की उत्पत्ति होती है। जैसा कि हमें विदित है, शीतल वायु की अपेक्षा उष्ण वायु में जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है। यदि उष्ण वायु को काफी ठण्डा कर दिया जाए तो उसमें उपस्थित अतिरिक्त जल-वाष्प जल की बिन्दुकाओं में परिणत हो जाती है। इसीलिए वायु के तापमान में होनेवाला रिवर्तन वायु-मण्डलीय आर्द्रता में परिवर्तन ला देता है। 

वायुमण्डलीय आर्द्रता में होने वाले परिवर्तनों से ही मेघों अथवा कोहरे की उत्पत्ति होती है, और इसी से वर्षण की क्रिया भी सम्पादित होती है। तापमान परिवर्तन वायु दाब परिवर्तन का प्रत्यक्ष कारण है। जब वायु का कुछ अंश अपने चारों ओर स्थित वायुराशि से अधिक गर्म हो जाता है तब उसका प्रसारण हो जाता है जिससे वह वायु हल्की होकर पर उठने लगती है। आस-पास की शीतल वायु भारी होती है। इसीलिए गर्म वायु वाले क्षेत्र में न्यून वायु ब तथा शीतल वायु के क्षेत्र में उच्च वायु दाब अंकित किया जाता है। 

वायु सदैव उच्च वायु दाब क्षेत्र से निम्न वायु दाब की ओर प्रवाहित होती है जिससे उसमें क्षैतिज प्रवाह उत्पन्न होता है जिसे हम “पवन” की संज्ञा प्रदान करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट हो गया कि वायु के तापमान में अन्तर के कारण ही वायु दाब में परिवर्तन तथा पवन प्रवाह उत्पन्न होता है। इसी प्रकार से मौसम के किसी एक तत्व में होने वाले परिवर्तन एके अन्य तत्वों में परिवर्तन उत्पन्न कर देते हैं।

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