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जैसे सूर्योदय और सूर्यास्त के कारण दिन-रात का तापमान एक जैसा नहीं रहता, उसी प्रकार ऋतु परिवर्तन के कारण वर्ष के सभी महीनों में औसत मासिक तापमान भी एक समान नहीं रहता। इसका मुख्य कारण यह है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर सदा एक ही दिशा में झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है। इससे भिन्न-भिन्न अक्षांशों पर दिन की लम्बाई घटती-बढ़ती रहती है और सूर्य की किरणों का कोण (Incidence of Sun’s rays angle) भी बदलता रहता है। अतः विभिन्न स्थानों पर उपलब्ध सूर्यातप की मात्रा भी घटती-बढ़ती रहती है जिससे ऋतु परिवर्तन होता है।
वार्षिक तापांतर (Annual Range of Temperature) का अर्थ
किसी स्थान के सबसे गर्म और सबसे ठण्डे महीने के औसत तापमान के अन्तर को वहाँ का वार्षिक तापान्तर कहा जाता है। यह अन्तर प्रायः जुलाई और जनवरी महीनों के औसत तापमान का लिया जाता है। वार्षिक तापान्तर हमें जलवायु की प्रकृति का बोध कराता है। वार्षिक तापान्तर जितना कम होगा जलवायु उतनी ही सम होगी और यह जितना अधिक होगा जलवायु उतनी विषम होगी।
वार्षिक तापांतर (Annual Range of Temperature) कैसे ज्ञात किया जाता है?
उदाहरण : एक शहर में सबसे गर्म महीने का मध्यमान तापमान 30°C और सबसे ठण्डे महीने का मध्यमान तापमान 24.4°C है। उस शहर का वार्षिक तापान्तर ज्ञात करें।
उत्तर वार्षिक तापान्तर = अधिकतम मासिक तापमान – न्यूनतम मासिक तापमान
= 30.0°C – 24.4° = 5.6° सेल्सियस
उदाहरण : साइबेरिया में स्थित वर्खायान्स्क (Verkhoyansk) पर सबसे ठण्डे महीने का तापमान -50°C है और सबसे गर्म महीने का तापमान 12.8°C है। वहाँ का वार्षिक तापान्तर ज्ञात कीजिए।
उत्तर वार्षिक तापान्तर = अधिकतम मासिक तापमान – न्यूनतम मासिक तापमान
= 12.8°-(-) 50° = 62.8°C
वार्षिक तापान्तर (Annual Range of Temperature) को प्रभावित करने वाले कारक
अक्षांश
भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सारा साल सीधी पड़ती हैं तथा दिन और रात की अवधि भी समान होती है। अतः यहाँ ग्रीष्म ऋतु तथा शीत ऋतु के तापों में विशेष अन्तर नहीं होता और वार्षिक तापान्तर कम रहते हैं। ज्यों-ज्यों हम भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाते हैं, त्यो-त्यों गर्मियों और सर्दियों के दिनों की अवधि में अन्तर बढ़ता जाता है जिससे विभिन्न ऋतुओं में प्राप्त होने वाले ताप में भी अन्तर बढ़ता जाता है। अतः अक्षांश बढ़ने पर वार्षिक ताप परिसर भी बढ़ता जाता है।
समुद्र तट से दूरी
स्थल की तुलना में समुद्र देर से गर्म और देर से ठण्डे होते हैं। अतः समुद्री जल का ताप गर्मियों में स्थल के ताप से कम और सर्दियों में अधिक रहता हैं। परिणामस्वरूप तटीय स्थानों व द्वीपों पर न तो सर्दियों में अधिक ठण्ड पड़ती है और न ही गर्मियों में अधिक गर्मी। इसलिए तटीय प्रदेशों में वार्षिक ताप परिसर कम होते हैं। समुद्र से दूरी बढ़ने पर महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में ग्रीष्म ऋतु व शीत ऋतु के तापों का अन्तर बहुत अधिक हो जाता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थल की अपेक्षा जल का विस्तार अधिक होने के कारण वार्षिक तापान्तर कम रहता है।
प्रचलित पवनें
जिन प्रदेशों में सारा साल समुद्री पवनें चलती हैं वहाँ वार्षिक तापान्तर कम रहते है। इसके विपरीत जिन प्रदेशों में साल भर स्थलीय पवनें चलती हैं, वहाँ वार्षिक तापान्तर अधिक रहते हैं। जलीय पवनों का समकारी और स्थलीय पवनों का विषमकारी प्रभाव होता है।
शीत-शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित होते हुए भी पश्चिमी यूरोप या अमेरिका के पश्चिमी तट पर सारा साल समुद्र से आने वाली पछुवा पवनें चलती हैं जो वार्षिक तापान्तर अधिक नहीं होने देतीं जबकि लगभग उन्हीं अक्षांशों में स्थित उत्तरी चीन में वार्षिक तापान्तर अधिक पाया जाता हैं क्योंकि वहाँ केवल गर्मियों में ही समुद्री पवनें पहुँचती हैं और सर्दियों में मध्य एशिया से आने वाली सर्द पवनें चलती हैं।
समुद्री धाराएँ
- जिन उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों के समुद्री तटों के निकट साल भर ठण्डी धाराएँ बहती हैं उनके तटीय क्षेत्रों में दोनों ऋतुओं में ताप कम रहता है और वार्षिक तापान्तर अधिक नहीं हो पाता।
- जिन शीत या शीतोष्ण प्रदेशों के समुद्री तटों के निकट सारा साल गर्म धाराएँ बहती हैं, उनके तटीय प्रदेशों का ताप वर्ष भर ऊँचा रहता है और वार्षिक तापान्तर कम पाया जाता है।
- जिन तटों पर परिवर्तनशील धाराएँ बहती हैं वहाँ का वार्षिक तापान्तर अधिक पाया जाता है । उदाहरणतः दक्षिणी भारत के पूर्वी तट पर ग्रीष्म ऋतु में मानसून ड्रिफ्ट दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है जिससे पूर्वी तट अधिक गर्म हो जाता है। शीत ऋतु में इसी तट पर ही मानसून ड्रिफ्ट की दिशा बदलकर उत्तर से दक्षिण हो जाती है। इससे पूर्वी तट बहुत ठण्डा हो जाता है। परिणामस्वरूप पूर्वी तट पर वार्षिक तापान्तर अधिक पाया जाता है जबकि पश्चिमी तट पर ऐसा नहीं होता क्योंकि वहाँ परिवर्तनशील समुद्री धाराएँ नहीं बहती ।
तटों के समानान्तर फ़ैली पर्वत श्रेणियाँ
समुद्र तट के समानान्तर फ़ैली ऊँची पर्वत श्रेणियाँ समुद्री पवनों के मार्ग में बाधा बनकर समुद्र के समकारी प्रभाव को तटवर्ती क्षेत्र तक ही सीमित रखती हैं। परिणामस्वरूप पर्वत श्रेणी के पीछे स्थित प्रदेश समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाता है। इससे वहाँ का वार्षिक तापान्तर अधिक हो जाता है। उदाहरणतः दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट की उपस्थिति के कारण पश्चिमी तटीय मैदान में वार्षिक तापान्तर कम और घाट के दूसरी ओर दक्कन के पठार पर वार्षिक तापान्तर अधिक पाया जाता है। इसी प्रकार उत्तरी अमेरिका में रॉकीज पर्वतमाला की उपस्थिति के कारण प्रशान्त तटीय प्रदेश की अपेक्षा विशाल मैदान (Great Plain) पर वार्षिक ताप परिसर अधिक पाया जाता है।
समुद्र तल से ऊंचाई
किसी स्थान के वार्षिक तापांतर पर ऊंचाई का भी निश्चित प्रभाव देखने को मिलता है। अधिक ऊंचाई पर वायुमंडल की विरलता, अपेक्षाकृत अधिक वर्षा, मेघाच्छादन आदि के कारण वर्ष के गर्म महीनों का औसत तापमान नीचे गिर जाता है। किंतु शीतकाल के दौरान औसत तापमान पर इन कारकों का प्रभाव उतना अधिक नहीं पड़ता। इसके परिणाम स्वरुप अधिक ऊंचाई वाले स्थानों के वर्षिक तापांतर में न्यूनता पाई जाती है।
ढाल
तापमान को प्रभावित करने वाले कारकों में किसी स्थान के ढाल का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। सूर्याभिमुख ढाल का ग्रीष्मकालीन तापमान ऊंचा तथा शीतकालीन तापमान नीचा रहता है।इस प्रकार इस स्थानीय कारक का भी वार्षिक तापांतर पर प्रभाव देखने को मिलता है।
वार्षिक तापान्तर से जुड़े कुछ उल्लेखनीय तथ्य
वार्षिक तापान्तर को प्रभावित करने वाले उपर्युक्त सभी कारकों का सम्मिलित प्रभाव निम्नलिखित रूपों में प्रकट होता है
- भूमध्य रेखा से दोनों ओर लगभग 0° अक्षांशों तक वार्षिक तापान्तर 1° सेल्सियस रहता है, चाहे कोई स्थान तट पर हो या आन्तरिक भागों में।
- 10° उत्तरी अक्षांश से कर्क रेखा (23½° उ०) तक तथा 10° दक्षिणी अक्षांश से मकर रेखा (23½° द०) तक वार्षिक ताप परिसर 5-6° सेल्सियस से अधिक नहीं होता।
- उत्तरी गोलार्द्ध के शीतोष्ण कटिबन्धीय अक्षांशों में स्थित महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में सबसे ज्यादा वार्षिक तापान्तर (50° सेल्सियस) पाया जाता है। इन्हीं अक्षांशों में स्थित साइबेरिया के वर्बोयान्स्क नामक स्थान पर तो वार्षिक तापान्तर 60° से 65° सेल्सियस के बीच पाया जाता है।
- शीतोष्ण कटिबन्ध में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों की तुलना में पूर्वी भागों में वार्षिक तापान्तर अधिक रहता है।
- शीतोष्ण कटिबन्ध में समुद्र तटीय भागों में भीतरी भागों की अपेक्षा वार्षिक तापान्तर बहुत कम रहता है। भीतरी भागों में भी वार्षिक तापान्तर 15° सेल्सियस से अधिक नहीं होता।
- अधिक जलीय विस्तार के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में वार्षिक तापान्तर सभी जगह कम रहता है।
FAQs
वार्षिक तापांतर किसी स्थान के सबसे गर्म और सबसे ठण्डे महीने के औसत तापमान के अन्तर को कहते हैं। यह जलवायु की प्रकृति का एक महत्वपूर्ण संकेतक होता है।
वार्षिक तापांतर का गणना करने के लिए, अधिकतम मासिक तापमान से न्यूनतम मासिक तापमान घटाया जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी स्थान का अधिकतम मासिक तापमान 30°C और न्यूनतम मासिक तापमान 24.4°C है, तो वार्षिक तापांतर = 30°C – 24.4°C = 5.6°C होगा।
दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का विस्तार अधिक होने के कारण वहां वार्षिक तापांतर कम रहता है। जलीय विस्तार के कारण तापमान में उतार-चढ़ाव कम होता है।