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Table of contents
- वायुदाब का अर्थ (Meaning of Air Pressure)
- वायुदाब की परिभाषाएँ (Definitions of Air Pressure)
- वायुदाब को कैसे मापा जाता है? (Measurement of Air Pressure)
- मानचित्र पर वायुदाब का प्रदर्शन
- वायुदाब का प्रभाव और महत्त्व (Effect and Importance of Air Pressure)
- वायुदाब का ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Air Pressure)
- वायुदाब का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Air Pressure)
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वायुदाब का अर्थ (Meaning of Air Pressure)
वायु गैसों के अणुओं से बनी एक भौतिक वस्तु है। गैसों के अणु अथवा कण आपस में टकराते रहते हैं और स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण करते रहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अन्य सभी वस्तुओं की भांति वायु में भी ‘भार’ पैदा करता है। इसी भार के कारण वायु भूपृष्ठ अथवा धरातल पर दबाव डालती है, जिसे वायुदाब कहा जाता है।
इस प्रकार किसी दिए गए स्थान का वायुदाब भू-पृष्ठ या सतह पर डाला गया वह बल है जो गैस कणों के निरन्तर टकराने से उत्पन्न होता है।
वायुदाब की परिभाषाएँ (Definitions of Air Pressure)
“धरातल (स्थल या सागर) पर क्षेत्रफल की प्रति इकाई (जैसे एक वर्ग इंच या एक वर्ग सें०मी० या प्रति वर्ग गज) पर ऊपर स्थित वायुमण्डल की समस्त परतों के पड़ने वाले भार को ही वायुदाब कहते हैं।”
क्रिचफील्ड के अनुसार, “किसी स्थान पर उसके ऊपर स्थित वायु के सम्पूर्ण स्तम्भ का भार वायुदाब कहलाता है।”
वायुदाब को कैसे मापा जाता है? (Measurement of Air Pressure)
वायुदाब को प्रति इकाई क्षेत्र पर पड़ने वाले बल के रूप में मापा जाता है। वायुदाब मापने के लिए बेलनाकार नली में भरे पारे की ऊँचाई को मापा जाता है। सामान्य तौर पर सागर तल पर यह ऊँचाई 76 सें०मी० अथवा 760 मिलीमीटर अथवा 29.92 इंच होती है।
लेकिन जलवायु वैज्ञानिक वायुदाब को सेंटीमीटर या मिलीमीटर में नहीं मापते बल्कि मिलीबार में मापते हैं। एक मिलीबार एक वर्ग सें०मी० पर 1,000 डाईन्स के बल के बराबर होता है। समुद्र-तल पर सामान्य वायुमण्डलीय दाब 1013.25 मिलीबार के समान होता है। वायुदाब मापने के यन्त्र को बैरोमीटर तथा स्वचालित यन्त्र को बैराग्राफ़ कहा जाता है।
मानचित्र पर वायुदाब का प्रदर्शन
मानचित्र पर वायुदाब को समदाब रेखाओं (Isobars) द्वारा दिखाया जाता है। समदाब रेखा वह कल्पित रेखा है जो समुद्र-तल के अनुसार समानीत (Reduced to Sea Level) वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती है। समदाब रेखाएँ दाब-प्रवणता (Pressure Gradient) को भी दर्शाती हैं। वायुदाब में परिवर्तन की दर और दिशा को दाब प्रवणता कहा जाता है। ट्रिवार्था के अनुसार, “Pressure gradient is the rate and direction of Pressure change.”
आपस में पास-पास स्थित समदाब रेखाएँ तीव्र दाब प्रवणता का संकेत देती हैं जबकि दूर-दूर स्थित समदाब रेखाएँ निम्न दाब प्रवणता की ओर इशारा करती हैं।
वायुदाब का प्रभाव और महत्त्व (Effect and Importance of Air Pressure)
ट्रिवार्था के अनुसार मौसम और जलवायु के नियन्त्रक के रूप में वायुदाब और पवनों का सबसे अधिक महत्त्व है। वायुदाब का महत्त्व इस प्रकार है-
वायुदाब में अन्तर से पवनें उत्पन्न होती हैं
भूपृष्ठ पर सूर्यातप के अन्तर के कारण वायु के घनत्व में अन्तर आ जाता है जिसके परिणामस्वरूप वायुदाब में भिन्नता आ जाती है। वायुमण्डल चूंकि सन्तुलन बनाए रखने का प्रयत्न करता है। अतः उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर वायु चल पड़ती है। इस चलती हुई वायु को पवन कहते हैं।
वायुदाब मौसम को प्रभावित करता है
निम्न वायुदाब की अवस्था में वायु आकाश में ऊपर की ओर उठती है जिससे वायु में उपस्थित जलवाष्प संघनित (Condensed) होकर बादलों का निर्माण करते हैं। इससे वृष्टि (Precipitation) भी होती है। उच्च वायुदाब की अवस्था में वायु नीचे बैठती है जिससे वाष्पों का संघनन नहीं हो पाता। परिणामस्वरूप आकाश स्वच्छ रहता है।
ऊष्मा और आर्द्रता का स्थानान्तरण
वायुदाब के अन्तर से उत्पन्न पवनें ऊष्मा और आर्द्रता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित करके मौसम और जलवायु को तदानुसार प्रभावित करती हैं।
वायुदाब में उतार-चढ़ाव से मौसम का पूर्वानुमान होता है
तेज़ी से गिरता हुआ वायुदाब चक्रवात के आने की सूचना देता है जिससे वर्षा और आँधी आ सकते हैं। इसके विपरीत जहाँ उच्च वायुदाब होता है, वहाँ मौसम सुहावना होता है।
वायुदाब का ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Air Pressure)
साधारणतः समुद्र तल पर वायु का भार सबसे अधिक होता है। भूपृष्ठ से ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुदाब उत्तरोत्तर कम होता जाता है। उदाहरणतः, समुद्र तल पर वायुदाब 1013.25 मिलीबार होता है, जो 17 किलोमीटर की ऊँचाई पर मात्र 100 मिलीबार रह जाता है।
वायुदाब के ऊर्ध्वाधर वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
वायुदाब के ऊर्ध्वाधर वितरण को अनेक गतिक (Dynamic) और तापीय (Thermal) प्रक्रियाएँ प्रभावित करती हैं-
तापमान
तापमान बढ़ने पर वायु गर्म होकर फैलती है अर्थात् उसका आयतन बढ़ जाता है और घनत्व कम हो जाता है। घनत्व कम होने पर वायुदाब भी कम हो जाता है। इसके विपरीत जब वायु का तापमान कम होता है तो वह सिकुड़ती है, अर्थात् उसके आयतन में कमी होती है। परिणामस्वरूप उसका घनत्व और दाब इसलिए बढ़ जाता है। ताप और दाब में व्युत्क्रम (Reverse) सम्बन्ध है; ताप बढ़ता है, तो वायुदाब घटता है और ताप घटता है तो वायुदाब बढ़ता है।
जलवाष्प का अनुपात
नमी वाली वायु हल्की और शुष्क वायु भारी होती है। वायु की निचली परतों में अन्य गैसों की तुलना में जलवाष्प का घनत्व 40 प्रतिशत कम होता है। अतः वायु में जलवाष्प का अनुपात जितना ज्यादा होगा उसका घनत्व और दाब उतना ही कम होगा। उल्लेखनीय है कि वायु में जलवाष्प के अनुपात का अन्तर वायुदाब के क्षैतिज विवरण को बहुत ही कम प्रभावित करता है।
समुद्र तल से ऊँचाई
ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुदाब उत्तरोत्तर घटता जाता है। ऐसा मुख्यतः निम्न कारणों से होता है-
- धरातल के किसी भी बिन्दु पर वायुदाब उस बिन्दु के ऊपर स्थित वायु स्तम्भ (Air Column) के भार द्वारा निर्धारित होता है क्योंकि समुद्र तल पर वायु स्तम्भ की ऊँचाई सबसे अधिक होती है इसलिए वहाँ वायुदाब भी सर्वाधिक होता है। पर्वत की चोटी पर केवल उसी वायु स्तम्भ का भार पड़ता है जो उसके ऊपर है। निश्चित ही पर्वत शिखर पर वायु स्तम्भ समुद्र ढाल के वायु स्तम्भ से छोटा होगा। इसलिए वहाँ समुद्र तल की अपेक्षा वायुदाब कम होता है।
- वायुमण्डल के कुल भार का आधा उसकी 5,500 मीटर तक की ऊँचाई वाले भाग में समाया है। अतः 5500 मीटर (5½ कि०मी०) की ऊँचाई पर वायुदाब समुद्र तल के वायुदाब से आधा अर्थात् लगभग 540 मिलीबार होगा। क्रिचफील्ड के अनुसार ऊँचाई के अनुसार वायुदाब
- वायु की ऊपरी परतों के भार से दबकर निचली परतें सघन हो जाती हैं और इसलिए अधिक दबाव डालती हैं।
- जमीन के निकट वायु की परतों पर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अधिक पड़ता है जिससे ऊपरी परतों की तुलना में उनका भार व दबाव अधिक होता है।
- वायुमण्डल के निचले हिस्से में भारी गैसों का अनुपात अधिक होने के कारण उनका भार व दबाव अधिक होता है। ऊँचाई बढ़ने के साथ भारी गैसों का अनुपात घटता जाता है जिस कारण वायुदाब उत्तरोत्तर कम होता जाता है।
पृथ्वी का घूर्णन
पृथ्वी के अपनी धुरी पर परिभ्रमण से उत्पन्न अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) के कारण भूमध्यरेखीय भागों से वायु दूर छिटकती है। इससे वायुदाब कम होता है। दूसरी ओर ध्रुवीय क्षेत्रों की वायु गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण निम्न अक्षांशों की ओर खिंचती है। परिणामस्वरूप 40° से 45° अक्षांशों के बीच हवाएँ उतरती हैं और वहाँ के वायुदाब को बढ़ा देती हैं।
ऊँचाई बढ़ने के साथ वायुदाब घटता तो है, किन्तु ऊँचाई और वायुदाब के बीच कोई सीधा और स्पष्ट आनुपातिक सम्बन्ध नज़र नहीं आता। फिर भी कहा जा सकता है कि क्षोभमण्डल (Troposphere) में वायुदाब घटने की औसत दर प्रति 300 मीटर की ऊँचाई पर 34 मिलीबार या 1 इंच होती है।
वायुदाब का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Air Pressure)
वायुदाब के अक्षांशीय वितरण को वायुदाब का क्षैतिज वितरण कहा जाता है। वायुदाब के क्षैतिज वितरण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें धरातल पर वायुदाब पेटियों या कटिबन्धों का निर्माण होता है। विभिन्न अक्षांशों पर सूर्यातप के अन्तर तथा पृथ्वी की दैनिक गति (Rotation) के प्रभाव से धरातल पर वायुदाब के सात कटिबन्धों का निर्माण हुआ है।
इनमें से भूमध्य रेखा पर निम्न दाब कटिबन्ध और ध्रुवों पर उच्च दाब कटिबन्ध ताप-प्रेरित कटिबन्ध (Thermally induced Belts) हैं। दोनों गोलाद्धों में उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्ध तथा उप ध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध गति-प्रेरित कटिबन्ध (Dynamically- induced Belts) हैं। इस प्रकार वायुदाब के कुल सात कटिबन्धों – को अग्रलिखित चार समूहों में रखा जा सकता है, जिनका वर्णन नीचे किया गया है:-
भूमध्यरेखीय निम्न दाब कटिबन्ध (Equatorial Low Pressure Belt)
यह कटिबन्ध भूमध्य रेखा से 10° उत्तरी तथा 10° दक्षिणी अक्षांशों के बीच विस्तृत है। इस पेटी में वायुदाब निम्न होने के तीन कारण हैं-
- इस क्षेत्र में सारा वर्ष सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं जिस कारण यहाँ तापमान बहुत ऊँचा रहता है परिणामस्वरूप वायुदाब कम हो जाता है।
- भूमध्यरेखीय क्षेत्र में अधिक गर्मी से अधिक वाष्पीकरण होता है जिससे वहाँ की वायु में जलवाष्प का अनुपात अपेक्षाकृत बढ़ जाता है। नमी वाली वायु शुष्क वायु की अपेक्षा हल्की होती है। इसी कारण इस क्षेत्र में वायु का घनत्व और फलस्वरूप दाब कम रहता है।
- भू-घूर्णन का सबसे अधिक वेग भूमध्य रेखा पर होता है। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में अपकेन्द्री बल (Centrifugal Force) भी सर्वाधिक होता है। यह बल वायुमण्डल को भूपृष्ठ से परे धकेलता है। इससे वायु का परिमाण कम हो जाता है और वायुदाब घटता है।
- भूमध्यरेखीय कटिबन्ध की तप्त भूमि के सम्पर्क में आकर वायु गर्म होकर ऊपर उठती है जिससे वायुमण्डल में संवहनी धाराएँ (Convection Currents) पैदा होती हैं। इस पेटी में वायु का क्षैतिज संचलन न होने के कारण पवनें नहीं चलती जिससे न तो पेड़-पौधे हिलते-डुलते हैं और न ही जल-तरंगें पैदा होती हैं। इस कारण यह पेटी भूमध्यरेखीय शान्तमण्डल अथवा डोलड्रम (Doldrums) कहलाती है।
उपोष्ण उच्चदाब कटिबन्ध (Subtropical High Pressure Belts)
उत्तरी और दक्षिणी गोलार्धों में कर्क और मकर रेखाओं से 35° अक्षांश के बीच उच्च वायुदाब कटिबन्ध पाए जाते हैं। यहाँ उच्च वायुदाब होने के दो कारण हैं
- भूमध्यरेखीय क्षेत्र से गर्म होकर ऊपर उठने वाली वायु उत्तरोत्तर ठण्डी व भारी होती जाती है और लगभग 3750 मीटर की ऊँचाई पर पहुँच कर पृथ्वी की दैनिक गति के कारण उत्तर तथा दक्षिण दिशा की ओर विक्षेपित होकर कर्क और मकर रेखाओं के पास पूरी तरह घूम कर नीचे उतर आती है।
- पृथ्वी की दैनिक गति के कारण उपध्रुवीय क्षेत्रों से काफ़ी मात्रा में वायु सिमटकर उपोष्ण प्रदेशों में एकत्रित हो जाती है। इन कटिबन्धों में वायु की नीचे उतरने वाली धाराओं के कारण वायु का क्षैतिज संचलन अर्थात् पवन-प्रवाह अत्यन्त क्षीण होता है जिस कारण यहाँ वायुमण्डल शान्त रहता है। इसलिए इन अक्षांशों को शान्त कटिबन्ध (Belts of Calm) और अश्व अक्षांश भी कहते हैं।
क्यों उपोष्ण उच्चदाब कटिबन्ध या पेटी को अश्व अक्षांश कहा जाता है ? ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन काल में जब स्पेन से घोड़े लेकर पाल से चलने वाले जलयान नयी दुनियाँ (उत्तरी अमेरिका) की ओर जाते थे, तब इन अक्षांशों में पवनों के न चलने से उनका आगे बढ़ना कठिन हो जाता था। नावों की गति धीमी हो जाने से यात्रा में अधिक समय लगता था तथा उनके खाने-पीने का सामान कम हो जाता था। ऐसी स्थिति का सामना करने तथा जलयान का बोझ हल्का करने के लिए कुछ घोड़े समुद्र में फेंक दिए जाते थे। इसी कारण इन अक्षांशों को अश्व अक्षांश कहा जाने लगा। क्यों उपोष्ण उच्चदाब कटिबन्ध या पेटी को शान्त कटिबन्ध कहा जाता है ? दोनों गोलाद्धों में ग्रीष्म काल में सर्वोच्च वायुदाब केन्द्र महासागरों के ऊपर पाये जाते हैं। दक्षिणी अफ्रीका के पठारों के ऊपर ग्रीष्म ऋतु में भी साधारण कोटि का उच्च दाब केन्द्र विकसित हो जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु में एशिया महाद्वीप के आन्तरिक भाग अर्थात् साइबेरिया में वायुदाब बहुत अधिक हो जाता है। इन उच्च दाब पेटियों के मध्यवर्ती क्षेत्रों में प्रायः वायु का प्रवाह समाप्त हो जाता है तथा वहाँ शान्त क्षेत्र स्थापित हो जाते हैं। वायु के नीचे उतरने के कारण इन अक्षांशों में वायुमण्डल शान्त रहता है। धरातल पर प्रायः पवन नहीं चलता। यदि हल्की हवा चलती भी है तो उसकी दिशायें अनियमित होती हैं। इस पेटी में आकाश सदैव साफ रहता है। जिसके कारण इस पेटी को शान्त कटिबन्ध कहा जाता है। |
उपध्रुवीय निम्नदाब कटिबन्ध (Subpolar Low Pressure Belts)
आर्कटिक तथा अन्टार्कटिक वृत्तों के समीप 60° से 70° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब पेटियाँ पायी जाती हैं। इन कटिबन्धों के बनने के मुख्य तीन कारण हैं-
- भू-घूर्णन के प्रभाव से इन कटिबन्धों की वायु हटकर ध्रुवों की ओर व उपोष्ण कटिबन्धों में इकट्ठी होने लगती है। इससे यहाँ वायु का परिमाण कम रह जाता है और निम्न दाब कटिबन्धों की उत्पत्ति होती है।
- उपध्रुवीय क्षेत्रों में उष्ण तथा उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों से गर्म जल की धाराएँ बहती हैं जो तापमान में वृद्धि और वायुदाब में कमी ला देती हैं।
- इस कटिबन्ध में विशेष रूप से शीत ऋतु में अवदाब या चक्रवात आते हैं जो वायुदाब को कम कर देते हैं।
नोट: दक्षिणी गोलार्द्ध में वर्ष भर निम्न दाब की पेटी उपर्युक्त अक्षांशों में पृथ्वी के चारों ओर विस्तृत पायी जाती है, क्योंकि वहाँ पृथ्वी तल पर सर्वत्र महासागर फैले हुए हैं। किन्तु उत्तरी गोलार्द्ध में इन अक्षांशों में स्थल खण्डों का अत्यधिक विस्तार होने के कारण निम्न वायुदाब की पेटी की निरन्तरता भंग हो जाती है तथा केवल महासागरों के ऊपर ही निम्न वायुदाब केन्द्र पाए जाते हैं। इनमें उत्तरी प्रशान्त महासागर में स्थित अल्यूशियन निम्न दाब केन्द्र (Aleutian Low) तथा उत्तरी आन्ध्र महासागर पर आइसलैण्ड का निम्न दाब केन्द्र (Icelandic Low) विशेष उल्लेखनीय हैं।
ध्रुवीय उच्चदाब कटिबन्ध (Polar High Pressure Belts)
दोनों गोलाद्धों में 80° अक्षांश से ध्रुवों तक उच्चदाब कटिबन्ध पाए जाते हैं जिन्हें ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबन्ध कहते हैं। यहाँ सारा वर्ष निम्न तापमान, शुष्क वायु और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अधिक प्रभाव के कारण वायुदाब ऊँचा बना रहता है।
हम जानते हैं कि ध्रुवों के निकटवर्ती क्षेत्र में प्राप्त सूर्याभिताप की औसत वार्षिक मात्रा विषुवत् रेखीय प्रदेशों में प्राप्त मात्रा का केवल 40% होती है।
तापमान वर्ष पर नीचा रहने के कारण धुर्वों अथवा उनके समीपवर्ती क्षेत्रों का धरातल सदैव हिमाच्छादित रहता है। अतः धरातल के निकट की वायु अत्यधिक शीतल और भारी होती है। यद्यपि पृथ्वी के दैनिक आवर्तन के कारण ध्रुवों पर वायु की परतें पतली पड़ जाती हैं, किन्तु वायु की अत्यधिक शीतलता और उसके भारीपन के कारण यहाँ वर्ष भर उच्च वायुदाब पाया जाता है। यहाँ उच्च दाब की उत्पत्ति में गत्यात्मक कारणों की अपेक्षा तापीय कारण अधिक प्रभावशाली माने जाते हैं।