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उद्योगों के प्रकार (Types of Industries)

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इस लेख के माध्यम से आप उद्योग का अर्थ, महत्व एवं उद्योगों के प्रकार (Types of Industries) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

विनिर्माण उद्योग अर्थ (Meaning of Manufacturing Industry) 

कच्चे और अर्ध-निर्मित माल को मशीनों की सहायता से उपयोगी एवं मूल्यवान माल में बदलने वाले उद्योग विनिर्माण उद्योग कहलाते हैं। कृषि, वानिकी, मत्स्यन, खनन और पशुपालन इत्यादि प्राथमिक व्यवसायों से प्राप्त पदार्थों में से बहुत कम का ही उपयोग प्रत्यक्ष रूप से किया जा सकता है। 

इसीलिए आवश्यक है कि इन पदार्थों को ने नए रूप में बदला जाए; जैसे कपास से कपड़े में, लौह-अयस्क से लोहा-इस्पात में, लकड़ी की लुग्दी से कागज़ में व खनिज तेल से रासायनिक पदार्थ में। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विनिर्माण की प्रक्रिया भूमि, जल और वायु से प्राप्त पदार्थों की उपयोगिता बढ़ाकर मानव के लिए उन्हें लाभदायक बनाती है। 

उद्योगों का महत्त्व (Importance of Industries) 

किसी भी राष्ट्र की शक्ति एवं आर्थिक विकास को वहाँ के औद्योगिक स्तर से आंका जाता है। उद्योगों से लोगों को आजीविका मिलती है जिसके फलस्वरूप उनकी आय में वृद्धि होती है। धन में वृद्धि होने से लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा उठता है तथा विदेशी मुद्रा की भी बचत होती है । उद्योग कुल राष्ट्रीय संपत्ति / आय में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

उद्योगों के प्रकार (Types of Industries)

उद्योगों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया जा सकता है, जिनका वर्णन नीचे किया जा सकता है – 

आकार, पूँजी निवेश एवं श्रम-शक्ति के आधार पर

बड़े पैमाने के उद्योग (large scale industries)

इन उद्योगों की एक इकाई में ही बहुत बड़ी संख्या में मजदूर काम करते हैं। इस प्रकार के उद्योग में अधिक मात्रा में विविध प्रकार का कच्चा माल, पूँजी, शक्ति एवं कुशल श्रम का प्रयोग किया जाता है। इन उद्योगों में अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं का अत्यधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है। पटसन, सूती कपड़ा, चीनी, मशीनी औज़ार से संबंधित उद्योग बड़े पैमाने के उद्योग कहलाते हैं । 

विनिर्माण उद्योग का एक सिद्धांत यह है कि वस्तु या पदार्थ का स्वरूप बदलने पर यदि वस्तु की क्षमता और उपयोगिता बढ़ती है तो उसका मूल्य भी बढ़ता है। उदाहरणतः कपास की तुलना में सूत का मूल्य ज्यादा होता है, परंतु जब सूत से कपड़ा बनाया जाता है तो परिणामस्वरूप उसकी उपयोगिता और मूल्य दोनों बढ़ जाते हैं ।

मध्यम पैमाने के उद्योग (medium scale industries)

इन उद्योगों में बड़े पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा कम पूँजी व श्रमिकों का उपयोग होता है। सिलाई मशीन, साइकिल, विद्युत उपकरण, रेडियो व टेलीविज़न आदि उद्योग इसी वर्ग में शामिल किए जाते हैं। 

छोटे पैमाने के उद्योग (small scale industries)

ये वे उद्योग हैं जिनमें परिवार के सदस्य मिलकर हाथों या छोटी मशीनों से छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। ग्रामीण लघु तथा कुटीर उद्योग इसी श्रेणी में आते हैं। ये उद्योग समस्त भारत में फैले हुए हैं। इनकी सभी इकाइयाँ मिलकर अन्य उद्योगों से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करती हैं। इन उद्योगों के सामने कच्चे माल, तकनीकी, कुशलता व संगठित बाज़ार की समस्या आती है। इन उद्योगों में खाद्य पदार्थ, जूते, चप्पल, मिट्टी के बर्तन, आभूषण इत्यादि का काम होता है।

स्वामित्व के आधार पर 

सार्वजनिक सेक्टर उद्योग (public sector industry)

सार्वजनिक सेक्टर उद्योग सरकार द्वारा नियंत्रित कंपनियाँ या निगम होते हैं, जिन्हें सरकार फंड प्रदान करती है। इस सेक्टर में सामान्यतः सामरिक और राष्ट्रीय महत्त्व के उद्योग-धंधे आते हैं। भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला व विशाखापत्तनम में स्थित लौह-इस्पात संयंत्र सार्वजनिक सेक्टर के उद्योगों के उदाहरण हैं ।

व्यक्तिगत या निजी सेक्टर उद्योग (individual or private industry)

जिन उद्योगों का स्वामित्व एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों या किसी परिवार के पास होता है वे व्यक्तिगत सेक्टर के उद्योग कहलाते हैं। सोनीपत की एटलस साइकिल, फ़रीदाबाद की बाटा शू कंपनी तथा धारूहेड़ा (गुड़गाँव) की हीरोहोण्डा व्यक्तिगत सेक्टर के उद्योगों के उदाहरण हैं ।

सहकारी सेक्टर के उद्योग (co-operative industries)

जब कुछ लोग एक सहकारी समिति बनाकर किसी उद्योग को चलाते हैं तो उसे सहकारी उद्योग कहते हैं । ये लोग ही मुख्यतः उस उद्योग के कच्चे माल के उत्पादक होते हैं । सहकारी चीनी मिलें और सहकारी डेयरी उद्योग दुग्ध उद्योग, हैंडलूम इकाइयाँ इसके उदाहरण हैं । 

मिश्रित सेक्टर के उद्योग (mixed industries)

ये वे उद्योग हैं जिन्हें सरकार भी चलाती है और व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह भी चलाते हैं।

उत्पादों के उपयोग के आधार पर 

मूल पदार्थ उद्योग (basic industry)

जिन उद्योगों का तैयार माल अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है, वे आधारभूत पदार्थ उद्योग कहलाते हैं। लौह-इस्पात, विद्युत उत्पादन तथा भारी मशीन निर्माण उद्योग इसी प्रकार के उद्योग हैं। 

पूँजीगत पदार्थ उद्योग (capital goods industry)

पूँजीगत पदार्थ वे होते हैं जिनका उपयोग उत्पादन में किया जाता है, उपभोक्ताओं द्वारा उनका सीधा उपयोग नहीं किया जा सकता। ऊर्जा संयंत्र तथा तेलवेधन (Oil drilling) के उपकरण पूँजीगत पदार्थ हैं। ऐसे पदार्थों का उत्पादन करने वाले उद्योग पूँजीगत पदार्थ उद्योग कहलाते हैं।

मध्यवर्ती पदार्थ उद्योग (Intermediates Industry)

मध्यवर्ती पदार्थ स्वयं में तैयार (Finished) माल नहीं होते बल्कि इनका उपयोग उत्पादन के लिए किया जाता है। मध्यवर्ती पदार्थों में ईंधन और स्नेहक (Lubricants), प्राकृतिक और मानव निर्मित पदार्थ तथा उपकरण शामिल किए जाते हैं। आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था में सकल उत्पाद का बहुत बड़ा हिस्सा मध्यवर्ती पदार्थों का होता है। 

उपभोक्ता पदार्थ उद्योग (consumer goods industry)

ये वे उद्योग हैं जिनके उत्पाद का प्रयोग प्रायः दैनिक जीवन में अधिकतर लोग करते हैं। कागज़, पेन, घड़ियाँ, वस्त्र, खाद्य पदार्थ इत्यादि के उद्योग उपभोक्ता उद्योग के उदाहरण हैं ।

कच्चे माल के स्रोत के आधार पर

कृषि आधारित उद्योग (agro based industry)

ये वे उद्योग हैं जो कृषि उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करते हैं । सूती वस्त्र, पटसन, रेशमी वस्त्र, चीनी व वनस्पति तेल इत्यादि कृषि-आधारित उद्योग हैं।

क्या होते स्वतंत्र (FootLoose) उद्योग 
स्वतंत्र अथवा पाद यूका उद्योग वे होते हैं जो किसी स्थान विशिष्ट से बंधे नहीं होते। वे थोड़े से लाभों को ध्यान में रखकर किसी भी जगह स्थापित हो जाते हैं। अतः उनके उत्पाद की लागत में थोड़ा सा फर्क पड़ते ही वे अपना स्थान बदल लेते हैं। स्वतंत्र उद्योग उन निष्कर्षण उद्योगों (Extractive Industries) से भिन्न होते हैं जो किसी एक कारक अर्थात् कच्चे माल के स्रोत से बंधे रहते हैं या उन सेवाओं से जिनका बाजार के निकट होना जरूरी है अथवा ऐसे उद्योगों से जिनमें भारी पूँजी लगी हुई है और वे अब कभी स्थानांतरित नहीं किए जा सकते।
स्वतंत्र (FootLoose) उद्योग 

खनिज आधारित उद्योग (mineral based industry)

खनिजों का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करने वाले उद्योग खनिज-आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे लौह-इस्पात, सीमेंट तथा एल्यूमीनियम उद्योग इत्यादि । 

वन आधारित उद्योग (forest based industry)

ये उद्योग वनों से कच्चा माल प्राप्त करते हैं। कागज़, गत्ता, चमड़ा रंगने का उद्योग, लाख, रेजिन (बैरोज़ा), टोकरी तथा बीड़ी उद्योग इसी प्रकार के उद्योग हैं। 

चरागाह आधारित उद्योग (pasture based industry)

इस प्रकार के अनेक उद्योग जीवित अथवा मृत पशुओं पर आधारित होते हैं। खाल, हड्डी, सींग, जूता तथा दुग्ध उद्योग चरागाह-आधारित उद्योग हैं। 

निर्मित वस्तुओं की प्रकृति के आधार पर 

इस प्रचलित वर्गीकरण में आठ प्रकार के उद्योगों को शामिल किया जाता है- (i) धातुकर्म उद्योग, (ii) यांत्रिक इंजीनियरी उद्योग, (iii) रासायनिक और संबद्ध उद्योग, (iv) वस्त्र उद्योग, (v) खाद्य संसाधन उद्योग, (vi) विद्युत उत्पादन उद्योग, (vii) इलेक्ट्रॉनिक और (viii) संचार उद्योग।

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