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आर्थिक भूगोल का दूसरे विज्ञानों से सम्बन्ध (Relation of Economic Geography with other Sciences)

ज्ञान असीमित है जिसकी तुलना एक विशाल वृक्ष से की जा सकती है जिसकी विभिन्न शाखाएँ विभिन्न नाम वाले विषय हैं। जिस प्रकार वृक्ष की अनेक शाखाओं का मूल एक ही है और प्रत्येक शाखा की कोशिकाएँ दूसरी शाखाओं में भी प्रवाहित होती हैं, उसी प्रकार विभिन्न विषयों का भी पारस्परिक सम्बन्ध होता है। अतः आर्थिक भूगोल का भी अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध होना स्वाभाविक है।

आर्थिक भूगोल; प्राकृतिक विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान दोनों ही है। इसमें एक ओर हम पृथ्वी के विभिन्न भागों में पाये जाने वाले प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन करते हैं और दूसरी ओर इस प्राकृतिक पर्यावरण के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करते हैं । अतः स्पष्ट है कि आर्थिक भूगोल का प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान दोनों से ही घनिष्ठ सम्बन्ध है ।

अर्थशास्त्र (Economics) से सम्बन्ध

वास्तव में देखा गया जाए तो आर्थिक भूगोल अर्थशास्त्र और भूगोल शास्त्र का संगम है। यह विषय अर्थशास्त्र का उतना ही जुड़ा है जितना की भूगोल से । इसी कारण अमेरिका में आर्थिक भूगोल को Gonomics या भौगोलिक अर्थशास्त्र (Geo-economics) के नाम से पुकारते हैं । अर्थशास्त्र के अन्तर्गत हम मनुष्य के आर्थिक जीवन के सभी पहलुओं जैसे- उत्पादन, उपभोग, मूल्य, धन, विनिमय, बैंकिंग और कर इत्यादि का अध्ययन करते हैं, जबकि आर्थिक भूगोल में उन प्राकृतिक परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है जो मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं पर प्रभाव डालती हैं। इस प्रकार अर्थशास्त्र तथा आर्थिक भूगोल में घनिष्ठ सम्बन्ध है ।

आर्थिक भूगोल की विषय-वस्तु से यह साफ होता है कि आर्थिक भूगोल में मूल रूप से अर्थशास्त्र के ही तत्त्व पाये जाते हैं। दोनों शास्त्रों की विषय-वस्तु लगभग एक जैसी है, परंतु अध्ययन के दृष्टिकोण एवं उद्देश्य अलग हैं। अर्थशास्त्र वस्तुओं के उत्पादन, वितरण तथा उपभोग की प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जबकि आर्थिक भूगोल इन आर्थिक क्रियाओं की प्रादेशिक भिन्नता का अध्ययन तथा उनके ऊपर प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव का अध्ययन करता है। इस प्रकार ये दोनों शास्त्र एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं।

अर्थशास्त्री क्षेत्र की आर्थिक समस्याओं को लेकर चलता है और प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों में उनका समाधान ढूंढता है, जबकि आर्थिक भूगोल शास्त्री प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का अवलोकन करके आर्थिक विकास की मूलभूत सम्भावनाओं पर विचार करता है। इस प्रकार अर्थशास्त्री आर्थिक क्रिया-कलाप से आरम्भ करके प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों की ओर दृष्टि डालता है जबकि आर्थिक भूगोल शास्त्री प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों से आरम्भ करके आर्थिक क्रिया-कलाप की ओर अग्रसर होता है। अर्थशास्त्र में सामान्यतः आ

र्थिक क्रिया-कलापों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया जाता है और परिस्थितियों का अध्ययन मात्र प्रासंगिक है, परन्तु आर्थिक भूगोल में प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक परिस्थितियों का अध्ययन सर्वोपरि है क्योंकि वे आर्थिक विकास का मूल आधार हैं।

ब्रिटिश भूगोलवेत्ता चिशोल्म (Chisholm) ने अर्थशास्त्र तथा आर्थिक भूगोल में निम्नलिखित दो प्रमुख अन्तर बताए हैं:-

(1) अर्थशास्त्र में स्थान सम्बन्धी बातों की ओर कम ध्यान दिया जाता है, जबकि आर्थिक भूगोल में स्थान को बहुत महत्व दिया जाता है। अर्थशास्त्रियों की वस्तुओं के कीमत (Price), मूल्य (Value), उत्पत्ति के साधनों के पारिश्रमिक से सम्बन्धित जटिल समस्याएँ हैं आदि को जानने में विशेष रुचि होती है।

(2) आर्थिक भूगोल का एक विषय के रूप में विशिष्ट चरित्र है जिसका दृष्टिकोण लगभग पूर्ण तत्त्व की खोज करना है, जबकि अर्थशास्त्र में मूल्यों की सापेक्षता पर बल दिया जाता है।

आधुनिक काल में औद्योगीकरण के तीव्र विकास के कारण ज्यों-ज्यों आर्थिक तन्त्र जटिलतर होता जा रहा है, त्यों-त्यों दोनों शास्त्रों का क्षेत्र भी विस्तृत हो गया है, परंतु साथ ही साथ दोनों शास्त्रों की विषय-वस्तु में अन्तर कम हो गये हैं, तथापि उनके अध्ययन में दृष्टिकोण एवं उद्देश्य का अन्तर पाया जाता है। अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य सीमित साधनों का उचित वितरण एवं आवंटन करते हुए अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करना है, जबकि आर्थिक भूगोल का प्रमुख ध्येय प्रादेशिक आर्थिक भू-दृश्यों की व्याख्या करना है।

Relation of Economic Geography with other  Sciences

इतिहास (History) से सम्बन्ध

इतिहास एवं आर्थिक भूगोल के बीच बहुत गहरा और जटिल संबंध है। इतिहास में हम मानव की क्रियाओं और विचारों का समयानुसार अध्ययन करते हैं, वही आर्थिक भूगोल का संबंध आर्थिक क्रियाओं के वितरण के अध्ययन से है। किसी भी प्रदेश या देश का आर्थिक विकास वहां पर घटी ऐतिहासिक घटनाओं का ही परिणाम होता है। उदाहरण के लिए; ऐतिहासिक घटनाओं जैसे उपनिवेश वाद, औद्योगिकी करण, राजनीतिक अस्थिरता आदि ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विकास को प्रभावित किया है।

जिसके फलस्वरूप आज हम विश्व के विभिन्न प्रदेशों में आर्थिक असमानता देख रहे हैं। दूसरी ओर देखा जाए तो मानव की क्रियाएँ मुख्यतः आर्थिक होती हैं जिनमें मानव के व्यवसाय, किसी समय की उत्पादन दशा, व्यापार तथा अन्य प्रकार का आर्थिक जीवन सम्मिलित हैं। इन सब बातों के इतिहास का ज्ञान होना वर्तमान और भविष्य की योजनाओं के लिए आवश्यक है । इस प्रकार हम देखते हैं कि आर्थिक भूगोल और इतिहास में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

राजनीति शास्त्र (Political Science)से सम्बन्ध

जहां राजनीतिक शास्त्र सरकार, राजनीति तथा सार्वजनिक नीतियों के अध्ययन पर केंद्रित होता है, वही आर्थिक भूगोल संसाधनों के वितरण, उनके दोहन व उपभोग के अध्ययन से संबंधित होता है। आर्थिक भूगोल किसी देश की सरकारों को विभिन्न प्रदेशों में उपलब्ध संसाधनों के बारे में जानकारी देता है। इस ज्ञान का उपयोग सरकार क्षेत्र विशेष के आर्थिक विकास के लिए बनाए जाने वाली आर्थिक नीतियों के लिए करता है।

वहीं दूसरी ओर आर्थिक भूगोल का विद्यार्थी राजनीतिक शास्त्र के ज्ञान से इस बात की जांच कर सकते हैं कि कैसे सरकार की नीतियां उद्योगों के स्थान निर्धारण और विकास को प्रभावित करती हैं या कैसे राजनीतिक संस्थाएँ विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक वस्तुओं के वितरण को प्रभावित करते हैं। अतः आर्थिक भूगोल और राजनीति शास्त्र में निकट का सम्बन्ध है ।

भूगर्भशास्त्र (Geology) से सम्बन्ध

आर्थिक भूगोल का भूगर्भशास्त्र से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पृथ्वी के धरातल की बनावट, चट्टानें, मिट्टी आदि का मानव-जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। इन बातों का ज्ञान भूगर्भशास्त्र से होता है। इसके अतिरिक्त आर्थिक भूगोल में हम खनिजों और उद्योगों आदि का अध्ययन करते हैं। ये भी भूगर्भशास्त्र से सम्बन्धित हैं। अतः भूगर्भशास्त्र के ज्ञान द्वारा आर्थिक भूगोल का विद्यार्थी यह समझ लेता है कि किसी स्थान विशेष पर खान खोदना, कृषि कार्य करना तथा निर्माण उद्योगों की स्थापना करना सम्भव है या नहीं और यदि है तो क्यों और कैसे?

वनस्पति शास्त्र (Botany)से सम्बन्ध

वनस्पति शास्त्र के अध्ययन में विभिन्न प्रकार की वनस्पति के विभिन्न अंगों तथा उनकी बनावट, क्रिया आदि का अध्ययन किया जाता है। देखा जाए तो कहीं न कहीं किसी भी प्रदेश या देश की आर्थिक क्रियाएं वहाँ पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों (जैसे वनस्पति) से प्रभावित होती हैं।. विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का उपयोग दवा बनाने वाले उद्योगों में किया जाता है। इसके अतिरिक्त वनस्पति शास्त्र से हमें यह ज्ञान होता की फसल की कौन सी प्रजाति किस प्रकार के वातावरण में सर्वाधिक उपयुक्त रहेगी। इस प्रकार से कृषि क्षेत्र में हमें सहयोग मिलता है। अतः हम कह सकते है कि ये दोनों शास्त्र घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।

प्राणी शास्त्र (Zoology)से सम्बन्ध

विभिन्न जीव-जन्तुओं का आर्थिक भूगोल में काफी महत्व होता है। कौन-से जीव-जन्तु कहाँ पाए जाते हैं, उनका क्या स्वभाव होता है, वे किस प्रकार का वातावरण पसन्द करते हैं तथा वे मनुष्य के लिए उपयोगी हैं या नहीं आदि बातें प्राण शास्त्र के विषय हैं। अतः आर्थिक भूगोल और प्राणी शास्त्र में निकट का सम्बन्ध है।

रसायन शास्त्र (Chemistry) से सम्बन्ध

आर्थिक भूगोल कई तकनीकी बातों के लिए रसायन शास्त्र पर निर्भर करता है। आर्थिक भूगोल में कृषि और उद्योग उत्पादन के दो प्रमुख अंग हैं। इन दोनों के लिए रासायनिक बातों पर निर्भर रहना पड़ता है। भूमि की उपजाऊ शक्ति और उसके रासायनिक तत्त्वों की जानकारी प्राप्त करने के लिए रसायन शास्त्र का सहारा लेना पड़ता है। उद्योगों में भी कई रसायनों की आवश्यकता होती है जिनके ज्ञान के लिए रसायन शास्त्र का पूर्व ज्ञान अनिवार्य हो जाता है।

इस प्रकार आर्थिक भूगोल अनेक शास्त्रों से सम्बन्धित है। एक ओर यह कुछ शास्त्रों का ऋणी है तो दूसरी ओर यह कुछ शास्त्रों को उपयोगी जानकारी प्रदान करता है । अतः आर्थिक भूगोल का अनेक शास्त्रों से पारस्परिक आदान-प्रदान चलता रहता है।

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