परिचय
वॉर रोमन एवं बैंग्स्टन (Von-Royen & Bengston, 1967) अनुसार ‘आर्थिक क्रिया में वे सब क्रियाकलाप (pursuits) आते हैं जिनमें मानव अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं बौद्धिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आजीविका के साधन जुटाता है।‘
आदि मानव अपना पेट भरने के लिए भोजन का संग्रहण करता था या वह जंगली जानवरों का शिकार करता था। वह भोजन के लिए पेड़-पौधों की जड़े, फल या समुद्र के किनारे पाए जाने वाले विभिन्न जीवों को एकत्रित करता था या कभी-कभी वह मांस के लिए जंगली जानवरों का शिकार भी करता था।
समय बीतने के साथ उसने औजार बनाने सीखें, जिनकी सहायता से वह मछली पकड़ता था या पशुओं का शिकार था। इन सब क्रियाओं के माध्यम से मानव ने अपने लिए भोजन और वस्त्र की व्यवस्था करनी प्रारंभ की। लेकिन इन क्रियाओं से उसके जीवन निर्वाह की केवल मूलभूत आवश्यकताओं की ही पूर्ति होती थी, जो केवल उसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए पर्याप्त थी। इन कार्यों को करने के पश्चात उसके पास इतना समय ही नहीं बचता था, कि वह अपने जीवन को बेहतर बनाने के बारे में भी सोचे। इस प्रकार वह हजारों वर्षों तक जंगली जीवन व्यतीत करता रहा।
आदि मानव को वर्तमान आर्थिक संरचना के निर्माण में हजारों वर्षों का समय लग गया। आज मानव विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएं कर रहा है। ये सभी आर्थिक क्रियाएं मानव के भौतिक पर्यावरण के साथ बदलते हुए संबंधों का ही परिणाम है। यहां हम मानव के द्वारा की जाने वाली प्राथमिक क्रियाओं में से एक आखेट के बारे में विस्तार पूर्वक जानेंगे:
प्राथमिक व्यवसाय या क्रियाएं
मानव के प्राथमिक व्यवसाय या क्रियाएं वे हैं जो स्थल तथा जल के संसाधनों के प्रत्यक्ष निष्कर्षण (extraction) से सम्बन्धित है अर्थात वे सभी क्रियाएं जिनके माध्यम से मानव आशाओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सीधा उपभोग या उपयोग करता है। जैसे- आखेट एवं मत्स्य प्राप्ति, चलवासी पशुचारण (Nomadic Herding), लकड़ी काटना (Lumbering) एवं वनोद्योग (Forestry), वनों से वस्तु संग्रह करना (Gathering), पशुपालन, खनन करना (Mining), एवं कृषि (Agriculture)करना आदि।
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि जंगली जीवों का शिकार करना (Hunting) मानव की प्राचीनतम आर्थिक क्रियाओं में से एक रहा है। आदिकाल से ही मानव स्थल भाग पर रहने वाले जंतुओं का शिकार अपने भोजन, वस्त्र व आश्रय के लिए करता रहा है। यह व्यवसाय या क्रिया मानव द्वारा वातावरण के साथ अत्यंत साधारण समायोजन (Adjustment) का प्रतीक है। इसके द्वारा आज भी केवल थोड़ी और बहुत ही विरल जनसंख्या (Sparse Population) का भरण-पोषण होता है। पृथ्वी पर कुछ ही ऐसे क्षेत्र हैं, जो अत्यंत कम जनसंख्या के हैं और उनमें जीवन निर्वाह के लिए एक महत्वपूर्ण साधन या आर्थिक क्रिया शिकार करना है।
पृथ्वी पर आखेटक (Hunter) लोगों के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार से है
क्रम संख्या | प्रदेश/क्षेत्र | मानव जाति |
1. | कनाडा व अलास्का के टुण्ड्रा और टैगा प्रदेश | एस्किमो (Eskimo),अमेरिकन इण्डियन |
2. | साइबेरिया का उत्तरी क्षेत्र | सेमोयेड (Samoyed), ओस्तयाक (Ostayak), तुंगु (Tungu), याकूत (Yakut), युक-गिर (Yukaghir), चकची (Chukchi), कोरयाक (Koryak), आदि |
3. | अर्जेंटीना और चिली के सुदूर दक्षिण का क्षेत्र | याहगन |
4. | अमेज़न बेसिन क्षेत्र | अमेरिण्ड ( Amerinds) आदिम जातियाँ, जैसे जिवारो (Jivaro ), यागुवा (Yagua ), आदि |
5. | अफ्रीका के विषुवतरेखीय उष्ण-आर्द्र वन का कांगो बेसिन क्षेत्र | पिगमी |
6. | कालाहारी मरूस्थल (दक्षिण-पश्चिमी अफ्रीका) | बुशमैन |
7. | मलाया के वन क्षेत्र | सेमांग (Semang) और सकाई (Sakai) |
8. | बोर्निया व न्यूगिनी | क्रमशः पुनान व पापुआन |
9. | उत्तरी आस्ट्रेलिया | आदिम जातियाँ |
इस प्रकार हम देखते हैं कि उत्तरी अमेरिका (North America) एवं यूरेशिया (Eurasia) में टुण्ड्रा एवं टैगा के आर्कटिक प्रदेशों में, जहाँ जलवायु एवं धरातल की कठोर, दशाएँ कृषि के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable) हैं, तथा वनस्पति का भी उगना मुश्किल है। यहां विरल जनसंख्या पाई जाती हैं जो मुख्यतः आखेट द्वारा अपना जीवन निर्वाह करती है। इस प्रदेश में एस्किमो (Eskimo) विश्व की सबसे विशिष्ट आखेटक जनजाति (Tribe) है। उत्तरी अमेरिका में एस्किमो लोगों के निवास क्षेत्र के दक्षिण में, तथा साइबेरियाई टुण्ड्रा एवं टैगा में युकागीर तथा अन्य जनजातियाँ भी उत्कृष्ट आखेटक जनजातियाँ हैं।
एस्किमो आखेटक अपने विशिष्ट उपकरणों तथा शस्त्रों (Weapons) तथा आखेट की विधियों के लिये जाने जाते हैं। ग्रीष्मकाल में ये मत्स्याखेट करते हैं। शरद ऋतु (पतझड़) में ये पक्षी पकड़ते हैं। शीतकाल में ये कैरिबो, सील, वालरस, मस्क-ऑक्स, ध्रुवीयभालू आमिरिक, लोमड़ी आदि का शिकार करते हैं। शीतकालीन आखेट वसन्त ऋतु तक चलता रहता है।
उत्तरी अमेरिकी के इण्डियन भी प्रधानतः आखेटक हैं। वे अपनी जीवन शैली तथा आखेट में एस्किमो से काफी मेल खाते हैं। किन्तु, ये झीलों, नदियों तथा तटवर्ती क्षेत्रों में मत्स्याखेट करना पसन्द करते हैं। पतझड़ की ऋतु में वे कैरिबो का शिकार करते हैं किन्तु, अब उन्होंने अखेटक के बजाय समूर-फार्मिग तथा व्यापार शूरू कर दिया है। वे समूरदार जन्तुओं का शिकार, फन्दे में फाँसने का कार्य, तथा मस्त्याखेट भी करते हैं। यूरेशिया में अब वास्तविक आखेटक जातियाँ नहीं रह गयी हैं। ये जातियाँ केवल शीतकाल में आखेट करती हैं, ग्रीष्मकाल में ये अन्य कार्यों में संलग्न रहती हैं। कुछ वास्तविक आखेटक जातियाँ अब भी रेन्डियर, भालू, हिरण, मछली आदि का शिकार करती हैं।
उष्ण कटिबन्धीय वनों (Tropical Forest), सवाना (Savannas) तथा उष्ण कटिबन्धीय द्वीपों में आखेट उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वास्तविक आखेटकों की संख्या बहुत कम है। इन लोगों में कांगो बेसिन के पिग्मी, मलेशिया के आन्तरिक पर्वतीय एवं निम्न भूमियों के ‘सकाई‘, बोर्नियो के ‘पुनान‘ तथा सुण्डा द्वीपों की कुछ जनजातियाँ सम्मिलित हैं। ये शिकार की खोज में भटकते रहते हैं तथा पिछड़े ढंग की झोपड़ियों (Huts) में रहते हैं। ये उत्तम आखेटक हैं तथा मुख्यतः शिकार एवं वनोपज (Forest Product) संग्रहण (Gathering) पर निर्भर रहते हैं।
आखेटकों की विशेषताएँ (Characteristics of Hunters)
चलवासी जीवन (Nomadic Life)
आखेट या शिकार पर जीवन निर्वाह करने वालों को प्रायः घुमक्कड़ी या चलवासी ( nomadic) जीवन व्यतीत करना पड़ता है। मनुष्यों को जिन वस्तुओं पर निर्भर होना पड़ता है, वे जन्तु अपने चारे की प्राप्ति के लिये मौसमी प्रवास (Seasonal Migration) करते रहते हैं। इसलिए उनके शिकार के लिए मनुष्यों को भी समय-समय पर स्थान बदलना पड़ता है। चूँकि आखेटक मनुष्यों की संख्या बहुत कम होती है, अतः किसी न किसी क्षेत्र के जन्तुओं से उनको जीवन भर भोजन मिलता ही रहता है।
सूझ-बूझ और दक्षता (Understanding and Efficiency)
आखेटक लोगों को प्रकृति के सम्पर्क में अधिक रहना पड़ता है। इन क्षेत्रों की जलवायु (Climate) कठोर होती है और वातावरण से समायोजन (Adjustment) करने के लिये बड़ी भारी सावधानी और समझ से काम लेना पड़ता है। अतः आखेटक लोग बड़े चतुर (Clever) और बुद्धिमान (Intelligent) होते हैं। उनमें सूझ-बूझ और दक्षता की मात्रा भी बहुत होती है।
शिकार करने के औज़ारों (Tools) तथा शस्त्रों (Weapons ) को बनाने में, उनको नुकीले या तेज करने में, अथवा उनको विषाक्त (Poisonous) बनाने में, शिकार को मारने या फँसाने और फँदा डालने की भिन्न-भिन्न विधियों में, आखेट किये गये जन्तुओं को पकड़कर या ढोकर लाने में, विभिन्न ऋतुओं के अनुसार अपनी क्रियाओं में परिवर्तन करने में तथा आखेट के प्रति व्यवहार में, प्रत्येक प्रदेश की अलग-अलग विशेषतायें होती हैं।
आखेट किए जाने वाले जन्तु एवं उनका उपयोग (Animals to be hunted and their uses)
आखेट के जन्तुओं का उपयोग जलवायु और वनस्पति की विभिन्नताओं के कारण, प्रत्येक प्रदेश में आखेट के जन्तु दूसरे प्रदेशों से भिन्न होते हैं । जन्तुओं का माँस भोजन के लिये, जन्तुओं की खालें (Skin) वस्त्र बनाने, निवास का तम्बू अथवा घर बनाने और नाव मढ़ने के काम आती हैं। खाल के बोरे या थैले भी बनाये जाते हैं, जिनमें कोई सामान भरकर रखा जाता है। हड्डियों से औज़ारों के हिस्से, बर्फ पर घसीटने वाली स्लेज (Sledge) गाड़ी, चाकू, छुरे, सूईं, आदि बनाये जाते हैं। ताँत से डोरी और धागे का काम लिया जाता है। मुलायम बालों और समूर (fur) से शीत निवारक वस्त्र बनाये जाते हैं।
विभिन्न प्रदेशों में आखेट के प्रमुख जन्तु निम्नलिखित प्रकार से हैं –
टुण्ड्रा और टैगा के जन्तु – कनाडा के समस्त उत्तरी पेटी और पूर्व सोवियत संघ की उत्तरी साइबेरिया की विशाल और विस्तृत पेटी बर्फ से ढके हुये टुण्ड्रा प्रदेशों (Tundras) की है। टुण्ड्रा में शीत ऋतु लगभग 9 महीने लम्बी होती है, जिसमें बर्फ छायी रहती है। केवल 3 महीने में ही बसन्त, ग्रीष्म और पतझड़ की ऋतुओं का चक्र पूरा हो जाता है। वनस्पति उगने का समय वर्ष भर में केवल 2 महीने का होता है।
यहाँ की वनस्पति में छोटी-छोटी झाड़ियाँ, जहाँ-तहाँ उगी हुई घास, जड़ी-बूटियाँ और कुछ स्थानों पर शैवालकाई (Mosses) और लाइकेन्स (Lichens) होती हैं। झीलों और जलाशयों के समीप बौनी जाति के शंकुधारी वृक्ष, आर्कटिक शरपत (Willow) और दलदल हो जाते हैं।
टैगा (Taigas) के वन टुण्ड्रा के दक्षिण में स्थित हैं। यह शंकुधारी (Coniferous) वनों की पेटी है, जिसमें चीड़, पाइन, ब्लू-पाइन, फर (Fur), बर्च (Birch), इत्यादि वृक्षों की सघनता होती है।
टुण्ड्रा में ध्रुवीय भालू, केरीबो, बारहसिंगा, मुश्क-बैल थल के होते हैं; तथा समुद्री जन्तुओं में सील, वालरस, जन्तु और कहीं-कहीं ह्वेल मछली होती है। टुण्ड्रा और टैगा दोनों में लोमड़ी, भेड़िया, भालू, खरगोश, मारटेन, एरमिन (Ermine) तथा केरीबो (Caribou) नामक जन्तु होते हैं।
दक्षिणी अमेरिका में अमेज़न बेसिन के वनों में, अफ्रीका के काँगो बेसिन के वनों में और मलेशिया तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया के वनों में उष्ण-कटिबन्धीय जंगली जन्तु, जैसे हिरन, खरगोश, लोमड़ी, गीदड़, बगुले, भेड़िये, बिलाव, रीछ, तेंदुए, सुअर, नेवले, गिलहरी, साँप, बटेर, बाघ, शेर, आदि होते हैं।