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कोबर का पर्वत निर्माणक भूसन्नति सिद्धान्त (Geosyncline Orogen Theory of Kober)

Example-of-Median-Mass-in-Geosyncline-Orogen-Theory-of-Kober

प्रसिद्ध जर्मन विद्वान कोबर ने वलित पर्वतों की उत्पत्ति की व्याख्या के लिए ‘भूसन्नति सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया। उनका प्रमुख उद्देश्य प्राचीन दृढ़ भूखण्डों तथा भूसन्नतियों में सम्बन्ध स्थापित करना था। तथा पर्वत निर्माण की क्रिया को समझाने का भरसक प्रयास किया है। 

पवन का अपरदन कार्य (Wind Erosional Work)

Wind Erosional Work

अपरदन के अन्य कारकों के समान ही पवन भी अपरदन व निक्षेपण का एक प्रमुख कारक है। लेकिन पवन का परिवहन कार्य नदियों या हिमनदियों से अलग होता है। क्योंकि पवन के चलने की दिशाऔर स्थित होती है इसलिए पवन द्वारा परिवहन कार्य किसी भी रूप में तथा किसी भी दिशा में हो सकता है।

नदी डेल्टा (River Delta)

Nile-river-delta

डेल्टा नदी के द्वारा बनाए जाने वाले रचनात्मक स्थलरूपों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। प्रत्येक नदी जब सागर या झील में अपना पानी गिराती है, तब उसके मार्ग में अवरोध आने तथा जल की गति कम होने के कारण नदी के साथ बहने वाले अवसाद का जमाव होने लगता है। जिसके परिणामस्वरूप एक विशेष प्रकार के स्थलरूप की उत्पत्ति होती है, जो डेल्टा कहलाता है। 

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त (Plate Tectonic Theory)

Plate Tectonic Theory

पृथ्वी की बाह्य ठोस और कठोर परत को भू-पृष्ठ कहा जाता है। इसकी मोटाई सब जगह एक समान नहीं है। यह महासागरों के नीचे कहीं केवल 5 किलोमीटर मोटी है, परन्तु कुछ पर्वतों के नीचे इसकी मोटाई 70 किलोमीटर तक है। भू-पृष्ठ के नीचे सघन शैलें पाई जाती हैं, जिन्हें मेंटल (Mantle) कहते हैं।

नदी का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River)

Depositional Work of River

यदि नदी का अपरदन कार्य विनाशी होता है तो निक्षेप कार्य रचनात्मक होता है। अपरदन के समय नदियाँ स्थलखण्ड को काटकर, घिसकर या चिकना बनाकर विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण करती हैं। इसके विपरीत निक्षेपण कार्य में तरह-तरह के मलवा अवसाद को विभिन्न रूपों में जमा करके विचित्र स्थलरूपों की रचना करती हैं। 

सारगैसो सागर (Sargasso Sea)

Sargasso Sea

सारगैसो सागर का विस्तार सागरीय घास के विस्तार तथा धाराओं की चक्रगति (gyre) के आधार पर निश्चित किया जाता है। मार्मर के अनुसार सारगैसो का विस्तार 20° तथा 40° उत्तरी अक्षांशों तथा 35° से 75° प० देशान्तरों के मध्य में पाया जाता है। 

नदी अपरदन द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियाँ (Erosional Landforms Created by River)

नदी अपने अपरदन कार्य द्वारा V आकार की घाटी, गार्ज तथा कैनियन, जल प्रपात, जलगर्तिका, अवनमन कुण्ड, संरचनात्मक सोपान, नदी वेदिका, नदी विसर्प, समप्राय मैदान आदि का निर्माण करती है। इन स्थलाकृतियों के बारे नीचे विस्तार से जानकारी दी गई है।

नदी का परिवहन कार्य (River Transport Work)

River Transport Work

नदियों द्वारा ऊँचे भागों से अपरदित चट्टान चूर्ण या मलबा (debris) का एक स्थान से दूसरे स्थान तक बहाकर ले जाना नदी का परिवहन कार्य कहलाता है। ऐसा नहीं है कि नदियाँ केवल अपरदन द्वारा प्राप्त चट्टान चूर्ण या मलबे का परिवहन करती है, अपितु अपक्षय द्वारा विघटित एवं वियोजित पदार्थों तथा भूमि स्खलन (landslide), अपवात (slumping) तथा भूमि सर्पण (land creep) आदि  द्वारा प्राप्त मलबे का भी परिवहन किया जाता है। 

भूकम्प (Earthquake) से संबंधित महत्वपूर्ण शब्दावली

Earthquake

रीड (Reid) के प्रत्यास्थ पुनश्चलन सिद्धांत (Elastic Rebound Theory) के अनुसार, प्रत्येक चट्टान में तनाव सहने की एक क्षमता होती है। उसके पश्चात् यदि तनाव बल और अधिक हो जाए तो चट्टान टूट जाती है तथा टूटा हुआ भाग पुनः अपने स्थान पर वापस आ जाता है। इस प्रकार चट्टान में भ्रंशन की घटनाएं होती है एवं भूकम्प आते हैं। 

नदी अपरदन के रूप (Form of River Erosion)

Form of River Erosion

नदी द्वारा अपरदन कार्य रासायनिक व यांत्रिक अपरदन  रूप किया जाता है। रसायनिक अपरदन के रूप में नदियाँ घोलीकरण द्वारा अपरदन करती हैं तथा यांत्रिक अपरदन में, अपघर्षण (corrasion or abrasion), जलगति क्रिया (hydraulic action) तथा सन्निधर्षण (attrition) क्रियाओं द्वारा यह कार्य सम्पन्न होता है। इन सबमें यांत्रिक अपरदन सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। आइए अब उपरोक्त नदी अपरदन के रूपों का वर्णन करें। 

नदी अपरदन का सिद्धान्त (Principal of River Erosion)

Principal of River Erosion

नदी का अपरदन कार्य नदी के ढाल तथा वेग एवं उसमें स्थित नदी के बोझ (अवसाद भार) पर निर्भर होता है। नदी के अवसाद भार (sediment load) के अन्तर्गत ग्रैवेल, रेत, सिल्ट तथा क्ले को शामिल किया जाता है। ग्रैवेल के अन्तर्गत बोल्डर (256 mm), कोबुल (64-256mm), पेबुल (4-64 mm) तथा ग्रैनूल (2-4mm) आते हैं।

नदी किसे कहते हैं? (What is called a River?)

Ganga River

वर्षा का जो जल धरातल पर किसी न किसी रूप में बहने लगता है, उसे बाही जल (runoff) कहते हैं। जब यही बाही जल एक निश्चित रूप में ऊँचाई से निचले ढाल पर गुरुत्वाकर्षण के कारण बहने लगता है तो उसे नदी या सरिता कहा जाता है। 

अपक्षय के भ्वाकृतिक प्रभाव (Geomorphic Effects of Weathering)

Scree or talus

विशेषक अपक्षय (differential weathering) द्वारा विभिन्न स्थलरूपों का निर्माण होता है। जैसे जालीदार पत्थर (stone lattice), हागबैक, अपदलन गुम्बद (exfoliation domes), मेसा, बुटी (buttes) के निर्माण का प्रमुख कारक विशेषक अपक्षय (differential weathering) ही बताया गया है, परन्तु यहां यह भी याद रखना है कि इनके निर्माण में नदियों के बहते जल का योगदान अधिक रहता है। 

जैविक अपक्षय (Biological Weathering)  

Burrowing animal

प्राणिवर्गीय या जैविक अपक्षय के कारणों में वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु एवं मानव तीनों चट्टानों के विघटन तथा वियोजन क्रियाओं में महत्त्पूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीव-जन्तु विशेषकर जो बिलो में रहते हैं, वें पृथ्वी की सतह को खोदते रहते हैं, जिससे अपक्षय को बढ़ावा मिलता है।

रासायनिक अपक्षय (Chemical Weathering)

carbonation-weathering

हम जानते हैं कि वायुमण्डल के निचले भाग में आक्सीजन, कार्बन डाईआक्साइड गैसों तथा जलवाष्प आदि की प्रधानता होती है। जब तक ये गैसें नमी या जल के सम्पर्क में नहीं आती है, तब तक अपक्षय की दृष्टि से ये तत्व महत्त्पूर्ण या क्रियाशील नहीं होते। परन्तु जैसे ही इनका सम्पर्क जल से हो जाता है, ये सक्रिय घोलक के रूप में काम करना शुरू कर देते हैं।