प्रायद्वीपीय भारत का नदी तंत्र (River System of Peninsular India)
ब्राह्मणी नदी की लम्बाई 420 कि. मी. है।
ब्राह्मणी नदी कोयल तथा शंख नदियों के संगम से बनती है।
ये नदियाँ राउलकेला में जाकर मिलती हैं तथा गदजात पहाड़ियों के पश्चिमी भाग को अपवाहित करती हैं।
यह नदी बंगाल की खाड़ी में पाराद्वीप बंदरगाह के ऊपर जाकर मिलती है।
उत्तर में वैतरणी नदी होने के कारण भद्रक के नीचे एक डेल्टा क्षेत्र का निर्माण है।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र (Brahmaputra River System)
तिस्ता
यह ब्रह्मपुत्र की सबसे पश्चिमी दाहिनी तट की सहायक नदी है।
कंचनजंगा से निकलते हुए यह दार्जिलिंग के पहाड़ियों में एक तीव्र पर्वतीय प्रवाह है, जिसमें रांगपो, संगित तथा सेबक जैसी सहायक नदियां आकर मिलती हैं।
इसके तट पर जलपाईगुड़ी शहर स्थित है, जो 1968 की बाढ़ में सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था।
वर्तमान में तिस्ता नदी बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी में जाकर मिलती है।
1787 के आकस्मिक बाढ़ में इस नदी ने अपना मार्ग बदल लिया, इसके पहले यह नदी गंगा के साथ संगम करती है।
गंगा नदी तंत्र (Ganga River System)
कर्नाली
कर्नाली को नेपाल के हिमालय क्षेत्र में कैरी आला कहते हैं, जो गंगा के मैदान में घाघरा बन जाती है।
कर्नाली एक पूर्ववर्ती नदी है, जो नेपाल के हिमालय में मानधाता चोटी (7220 मीटर) से निकलती है।
यह नदी नेपाल के पश्चिमी भाग में महाभारत श्रेणी को एक गहरे महाखड्ड के निर्माण के द्वारा पार करती है।
मैदान क्षेत्र में इसमें शारदा नदी आकर मिलती है, जहां यह नदी घाघरा कहलाती है, जिसका अर्थ है – लहंगा।
सिन्धु नदी तंत्र (Indus River System)
सिन्धु नदी
इसकी लम्बाई 2880 कि.मी. है तथा भारत में इसकी लम्बाई 709 कि.मी. है।
सिन्धु का उदगम खोखर – चू हिमनद में होता है, जो कैलाश श्रेणी’ (6714 मीटर) के उत्तरी ढाल पर स्थित है।
कैलाश पर्वत से निकलने के बाद यह एक सिकुड़ी हुयी घाटी से उत्तर-पश्चिमी दिशा में (तिब्बत में) बहती है, जहां इस सिंगी खम्बन या लायन्स मॉउथ (Lion’s mouth) कहते हैं।
भारत में राष्ट्रीय उद्यान (National Parks in India)
गिन्डी राष्ट्रीय उद्यान (Guindy National Park)
चेन्नई में स्थित यह उद्यान भारत का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान है।
यह तमिलनाडु के राज्यपाल के सरकारी निवास को घेरे प्रदेश के विस्तार में फैला हुआ है।
इस उद्यान में मनोरम वन, झाड़ियाँ, झीलें तथा छोटी धाराएँ देखी जा सकती हैं।
भारत में वनों का वितरण (Distribution of Forests in India)
भारत की वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार देश में कुल 7,13,789 वर्ग किमी वनक्षेत्र है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71 प्रतिशत है। 99,779 वर्ग किमी (3.04%) अत्यन्त सघन वन, 3,06,890 वर्ग कि.मी. (9.33%) सामान्य सघन वन और 3,07,120 वर्ग कि.मी. (9.34%) खुले वन क्षेत्र हैं। यह स्थिति सन्तोषजनक नहीं है क्योंकि भारत जैसे उष्ण कटिबन्धीय जलवायु वाले देश का लगभग एक तिहाई भाग वनों से ढका हुआ होना चाहिए।
भारतीय जलवायु की मुख्य विशेषताएँ (Salient Features of Indian Climate)
भारत की अधिकांश वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून (South-West Monsoon) पवनों द्वारा होती है। देश की कुल वर्षा का 75% ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिमी मानसून काल में, 13% मानसून के उपरान्त (Post-Monsoon) काल में, 10% पूर्व मानसून (Pre-Monsoon) काल में तथा शेष 2% शीतकाल में होता है।
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Climate of India)
किसी भी देश की जलवायु अच्छे से समझने के लिए वहाँ के तापमान, वर्षा, यायुदाब तथा पवनों की गति तथा दिशा का ज्ञान होना आवश्यक है। किसी भी देश की जलवायु पर उस देश के अक्षांशीय विस्तार, उच्चावच तथा जल व स्थल के वितरण का गहरा प्रभाव पड़ता है। हम जानते हैं कि कर्क रेखा भारत को लगभग दो बराबर भागों में बांटती है। अतः इसका दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में तथा उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में स्थित है। भारत के उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत स्थित है।
भारत : विविधताओं का देश (Diversities in India)
भारत विश्व का सातवाँ बड़ा देश है, जिसका क्षेत्रफल 32.87 लाख वर्ग किमी० है । इसकी उत्तर-दक्षिण दिशा में लम्बाई 3,214 किमी० तथा पूर्व-पश्चिम दिशा में चौड़ाई 2,933 किमी० है। साथ ही यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र है। इतने बड़े देश में भौतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक विविधताओं का पाया जाना स्वाभाविक ही है।
भारत में मृदा का वर्गीकरण (Soil Classification in India)
भारतीय मृदाओं का प्रथम वैज्ञानिक वर्गीकरण वोयलकर (1893) और लीदर (1898) ने किया था।
अखिल भारतीय मृदा एवं भू-उपयोग सर्वेक्षण संगठन द्वारा भी 1956 में भारतीय मृदाओं को वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया। अगले वर्ष 1957 में राष्ट्रीय एटलस एवं थिमेटिक संगठन (NATMO) द्वारा भारत के मृदा मानचित्र को प्रकाशित किया, जिसमें भारतीय मृदाओं को 6 प्रमुख समूहों और 11 उप-समूहों में वर्गीकृत किया गया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (ICAR) के द्वारा भी वर्ष 1963 में भारत का मृदा मानचित्र प्रकाशित किया।
भारत के द्वीप (The Islands of India)
अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों को दस डिग्री चैनल एक-दूसरे के अलग करता है।
अंडमान द्वीपों के तीन हिस्से हैं – उत्तरी, मध्य और दक्षिणी।
निकोबार द्वीपों के उत्तरी भाग को कार निकोबार और दक्षिणी भाग को महान निकोबार कहते हैं।
भारत का दक्षिणतम बिन्दु ‘इंदिरा प्वाइन्ट’ है, जो ग्रेट निकोबार द्वीप पर स्थित है।
तटीय मैदान (Coastal Plains)
पश्चिमी तटीय मैदान को धरातल तथा संरचना की दृष्टि प्रमुख रूप से तीन उप-भागों में बांटा गया है (i) कोंकण तट (ii) कर्नाटक या कन्नड़ तट (iii) मालाबार तट
पश्चिम तटीय मैदान का उत्तरी भाग को कोंकण तट कहते हैं। इसका विस्तार मुंबई से गोवा तक है। कोंकण तट की लंबाई लगभग 530.कि.मी. लं और चौड़ाई 30 से 50 कि.मी. के बीच है।
प्रायद्वीपीय उच्चभूमि (Peninsular Highlands)
प्रायद्वीपीय उच्च भूमि भारत का सबसे बड़ा भू-आकृतिक प्रदेश है, जो लगभग 16 लाख वर्ग कि.मी. में फैली है। अनाईमुड़ी (नीलगिरि) प्रायद्वीपीय भारत का सर्वोच्च शिखर जिसकी ऊंचाई 2695 मी. है। प्रो. एस.पी. चटर्जी के अनुसार प्रायद्वीपीय उच्चभूमि को निम्न आठ वृहत् भू-आकृतिक इकाइयों में विभाजित किया जा सकता है, जिनका वर्णन नीचे किया गया है
भारत के उत्तरी मैदान का प्रादेशिक विभाजन
भू-जलवायु एवं स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर भारत के उत्तरी मैदान को निम्न चार मध्य प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है:
1. राजस्थान मैदान
2. पंजाब-हरियाणा मैदान
3. गंगा मैदान
4. ब्रह्मपुत्र मैदान
भारत के उत्तरी मैदान का भू-आकृतिक विभाजन (Physiographic Division of Northern Plains of India)
भारत के महान मैदान शिवालिक के दक्षिण में स्थित हैं। हिमालयी अग्र भ्रंश (HFF) इस मैदान को हिमालय से अलग करता है। यह मैदान उत्तर के हिमालय प्रदेश और दक्षिण के प्रायद्वीपीय प्रदेश के मध्य एक संक्रमण प्रदेश है। पश्चिम से पूरब की ओर ढाल वाले इस महान मैदानी क्षेत्र का निर्माण सिंधु, गंगा, बह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों द्वारा निक्षेपित जलोढ़ों से हुआ है।