चक्रवात (Cyclone)
चक्रवात वायु की वह राशि है जिसके मध्य में न्यून वायुदाब होता है तथा बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है।
जलवायु परिवर्तन (Climatic Change)
जिस प्रकार की जलवायु का आज हम अनुभव कर रहे हैं वह थोड़े-बहुत उतार-चढ़ाव के साथ पिछले 10 हज़ार सालों से विद्यमान है। अपने जन्म के बाद से इस ग्रह ने अनेक भूमंडलीय जलवायविक परिवर्तन देखे हैं।
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming)
मानवीय (Anthropogenic) कारणों से वायुमंडल का सामान्य दर से अधिक गर्म होना ग्लोबल वार्मिंग या भूमंडलीय उष्मन कहलाता है। ग्लोबल वार्मिंग वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते सांद्रण का परिणाम है।
वर्षा (Rainfall)
बादलों से जल की बूँदों का धरातल गिरना अथवा बरसना वर्षा कहलाता है। वर्षा का होना एक जटिल प्रक्रिया है जो दो अवस्थाओं में सम्पन्न होती है-
वर्षण (Precipitation)
वायुमण्डल में उपस्थित आर्द्रता का तरलावस्था अथवा ठोस रूप में धरातल पर गिरना वर्षण अथवा अवक्षेपण (precipitation) कहलाता है। जल वर्षा, हिम वर्षा, फुहार तथा उपल-वृष्टि इत्यादि वर्षण के सामान्य रूप हैं।
वाष्पीकरण (Evaporation)
जल के तरलावस्था अथवा ठोसावस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं। एक ग्राम जल को वाष्प या गैस में परिवर्तित करने के लिए ऊष्मा के रूप में 607 कैलोरी ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है।
वाताग्र (Fronts)
जब कभी दो भिन्न तापमान, आर्द्रता और अन्य भौतिक गुणों वाली वायुराशियाँ एक-दूसरे के नजदीक आ जाती हैं तो वे एक-दूसरे में आसानी से विलीन नहीं हो पाती बल्कि अपनी अलग पहचान बनाए रखने की कोशिश करती हैं। इस प्रकार दो विपरीत स्वभाव वाली वयुराशियाँ जैसे उष्ण एवं शीतल वायुराशियाँ एक-दूसरे से एक संक्रमण क्षेत्र द्वारा अलग होती हैं जिसे वाताग्र कहा जाता है।
वायुदाब (Air Pressure)
वायु गैसों के अणुओं से बनी एक भौतिक वस्तु है। गैसों के अणु अथवा कण आपस में टकराते रहते हैं और स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण करते रहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण अन्य सभी वस्तुओं की भांति वायु में भी ‘भार’ पैदा करता है। इसी भार के कारण वायु भूपृष्ठ अथवा धरातल पर दबाव डालती है, जिसे वायुदाब कहा जाता है।
वायुराशि (Air Mass)
वायुमण्डल की उस विस्तृत और सघन राशि को वायुराशि कहते हैं जिसमें विभिन्न ऊँचाइयों पर भौतिक गुण अर्थात् तापमान और आर्द्रता के लक्षण क्षैतिज दिशा में एक जैसे हों।
कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain)
कृत्रिम वर्षा उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसके द्वारा एक विशेष प्रकार के मेघों को कृत्रिम उपायों से संतृप्त करके वर्षा करायी जाती है। इसीलिए कृत्रिम वर्षा को मेघों का कृत्रिम बीजारोपण भी कहा जाता है।
तापमान व्युत्क्रमणता के 5 प्रकार (5 Types of Temperature Inversion)
तापमान व्युत्क्रमणता को उत्पन्न करने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं तथा धरातल से व्युत्क्रमणता स्तर की सापेक्षिक ऊँचाई के आधार पर इसके निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं:-
तापमान की व्युत्क्रमणता (Inversion of Temperature)
सामान्य तौर पर वायुमण्डल के निचले भाग में धरातल से 8 से 18 कि०मी० ऊपर तक ऊँचाई में वृद्धि के साथ तापमान क्रमशः कम होता जाता है। तापमान की सामान्य ह्रास दर 6.5° सेल्सियस प्रति 1000 मीटर मानी जाती है। किन्तु प्रायः ऐसा देखा जाता है कि ताप ह्रास के सामान्य नियम के विपरीत वायुमण्डल की कुछ परतों में ऊँचाई में वृद्धि के साथ ही तापमान में भी वृद्धि होती है।
ताप कटिबन्ध (Temperature Zones)
सूर्य की किरणों के कोण, दिन-रात की सापेक्ष अवधि तथा वायुमण्डल द्वारा परावर्तित की जाने वाली ऊष्मा के परिमाण में अन्तर होने के कारण भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्यातप की मात्रा घटती जाती है। इसलिए तापमान उत्तरोत्तर घटता जाता है। इन्हीं तथ्यों से वाकिफ़ होकर प्राचीन यूनानी (Greek) विद्वानों ने पृथ्वी को अग्रलिखित तीन ताप कटिबन्धों में विभाजित किया था।
तापमान का ऊर्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Temperature)
जिस प्रकार विषुवत् रेखा से ध्रुवों की ओर तापमान कम हो जाता है, ठीक उसी प्रकार धरातल से ऊपर की ओर वायुमण्डल में तापमान-ह्रास पाया जाता है। अक्षांश और ऊँचाई दोनों ही तापमान को प्रभावित करते हैं। हिमालय, आल्प्स अथवा राकीज या एण्डीज आदि उच्च पर्वतमालाओं की अनेक चोटियाँ स्थायी रूप से वर्ष भर हिमाच्छादित रहती हैं।
वार्षिक तापांतर(Annual Range of Temperature): अर्थ एवं इसको प्रभावित करने वाले कारक
किसी स्थान के सबसे गर्म और सबसे ठण्डे महीने के औसत तापमान के अन्तर को वहाँ का वार्षिक तापान्तर कहा जाता है। यह अन्तर प्रायः जुलाई और जनवरी महीनों के औसत तापमान का लिया जाता है। वार्षिक तापान्तर हमें जलवायु की प्रकृति का बोध कराता है।