अति जनसंख्या या जनाधिक्य (Overpopulation)

जब किसी क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के विकास की तुलना में वहाँ जनसंख्या वृद्धि की गति तेज होती है जिसके परिणामस्वरूप वहां की जनसंख्या उस क्षेत्र की सामान्य पोषण क्षमता से अधिक हो जाती है और जीवन-स्तर नीचे गिरने लगता है, ऐसी अवस्था को अति जनसंख्या, जनाधिक्य या जनातिरेक की संज्ञा दी जाती है।
अनुकूलतम जनसंख्या (Optimum Population)

‘अनुकूलतम’ (Optimum) एक सापेक्षिक शब्द है जिसका अर्थ देश-काल के अनुसार परिवर्तित हो सकता है। यदि हम अनुकूलतम जनसंख्या का निर्धारण जीवन स्तर तथा जीवन की गुणवत्ता के आधार पर करें तो किसी प्रदेश की वह जनसंख्या जिसे वहाँ उपलब्ध संसाधनों के अनुसार उच्चतम जीवन स्तर प्राप्त होता है, अनुकूलतम या अभीष्ट जनसंख्या कही जा सकती है।
जल एवं स्थल भाग अलग-2 दरसे ठंडे व गर्म क्यों होते हैं?

हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्रोत सूर्य है। सूर्याभिताप या सौर ऊर्जा के प्रभाव की दृष्टि से पृथ्वी के धरातल पर स्थल तथा जल में सबसे अधिक अन्तर पाया जाता है। जल की अपेक्षा स्थल भाग तेजी से और अधिक मात्रा में गरम व ठण्डा होता है। इस लेख में हम इस अन्तर के कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख करेंगे जो इस प्रकार हैं :-
भू-विक्षेपी पवन (Geostrophic Wind)

‘ज्योस्ट्रॉफिक’ (geostrophic) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘पृथ्वी द्वारा मोड़ा गया’। जब वायुदाब-प्रवणता बल तथा विक्षेपक बल में संतुलन हो जाता है, तब पवन-प्रवाह समदाब रेखाओं के समानान्तर होता है। इस प्रकार समदाब रेखाओं के समानान्तर चलने वाली पवन को भू- विक्षेपी पवन (geostrophic wind) कहते हैं।
कोरियालिस बल (Coriolis Force)

पृथ्वी की घूर्णन या दैनिक गति के कारण उत्पन्न आभासी बल जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में पवन अपने पथ के दाई ओर, तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाई ओर मुड़ जाती है, कोरियालिस बल (Coriolis force) कहलाता है।इसे विक्षेपक बल (deflective force) भी कहते हैं, पवन की दिशा को मोड़ देता है।
पवन की गति को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Wind Speed)

वैसे तो पवन की गति को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं, ल्लेकिन निम्नलिखित चार को प्रमुख माना जाता है:-
(1) वायुदाब-प्रवणता (pressure-gradient)
(2) पृथ्वी की घूर्णन गति (Rotation of earth)
(3) घर्षण (friction)
(4) पवन का अपकेन्द्री बल (centrifugal action of wind)
पवन का अर्थ एवं महत्व (Meaning and Importance of Wind)

धरातल के लगभग समानान्तर बहने या प्रवाहित होने वाली वायु को पवन (wind) कहा जाता है। बायर्स के अनुसार पवन की परिभाषा इस प्रकार है:- “पवन मात्र गतिशील वायु है जिसका मापन उसके क्षैतिज घटक में किया जाता है”।
संघनन एवं जलग्राही नाभिक (Condensation and Hygroscopic Nuclei)

वायुमण्डल में संघनन की क्रिया के लिए आवश्यक है कि अति सूक्ष्म नाभिक प्रचुर मात्रा में उपस्थित हों जिनके इर्द-गिर्द वाष्प जल के सूक्ष्म कणों में परिवर्तित हो सके। पहले वैज्ञानिकों का विचार था कि संघनन के लिए वायु में धूल के अतिसूक्ष्म कण, चाहे जिस प्रकार के भी हों, पर्याप्त होते हैं।
संघनन के विविध रूप (Forms of Condensation)

वायुमण्डल में संघनित होने वाले जल-वाष्प को हम विविध रूपों में देख सकते हैं। अलग -2 वायुमंडलीय परिस्थितियों में वायु के शीतल होने के कारण संघनन की क्रिया द्वारा जल-वाष्प ओस (dew), पाला (frost), कोहरा (fog) अथवा मेघों (clouds) के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
ताप-आर्द्रता सूचकांक (Temperature Humidity Index)

80° फारेनहाइट तापमान तथा 20% सापेक्ष आर्द्रता शरीर के लिए आरामदेह है किन्तु सापेक्ष आर्द्रता 90% से अधिक होने पर वही तापमान कष्टदायक होता है। इस सम्बन्ध में महत्पूर्ण भूमिका अदा करने वाले अन्य कारक वायु का वेग तथा शारीरिक विकिरण के द्वारा ऊष्मा-ह्रास की दर है।
तापमान और आर्द्रता में संबंध (Relationship between Temperature and Humidity)

वायुमण्डलीय आर्द्रता एवं तापमान में प्रत्यक्ष सम्बन्ध देखने को मिलता है। दूसरे शब्दों में वायुमंडल का तापमान बढ़ने के साथ उसकी आर्द्रता के ग्रहण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। वायु में किसी निश्चित समय पर जल-वाष्प धारण करने की शक्ति उसके तापमान पर निर्भर करती है।
आर्द्रता (Humidity)आर्द्रता: अर्थ एवं प्रकार (Humidity: Meaning and Types) | Humidity Meaning in Hindi

वायुमण्डल में उपस्थित जल-वाष्प को आर्द्रता (humidity) कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ की भाँति जल की भी तीन अवस्थाएं होती हैं : ठोस, तरल तथा गैस। जल इन तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है।
जल की अवस्था परिवर्तन सम्बन्धी प्रक्रियाएं (Processes Related to Change in State of Water)

वायुमण्डल में जल तीनों ही अवस्थाओं जल-वाष्प के रूप में (गैसीय अवस्था में), हिम के रूप में (ठोस अवस्था में) तथा जल के रूप में (तरल अवस्था में) विद्यमान रहता है। वायुमण्डल में उपस्थित जल को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित करने या होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है।
शीतल स्थानीय पवनें (Cold Local Winds)

जब पवनों का तापमान उनके प्रवाह स्थल की अपेक्षा कम होता है, तब वो शीतल पवनें कहलाती हैं। प्रस्तुत लेख में हम ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण स्थानीय शीतल पवनों की चर्चा करेंगे।
उष्ण स्थानीय पवनें (Warm Local Winds)

जब पवनों का तापमान उनके प्रवाह स्थल की अपेक्षा अधिक होता है, तब वो उष्ण पवनें कहलाती हैं। इस लेख में हम ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण स्थानीय उष्ण पवनों के बारे में जानेंगे।