मुण्डा जनजाति (Munda Tribe)

मुण्डा लोगों को होरो-होन (Horo-Hon), मुरा (Mura) तथा मंकी (Manki) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है- गाँव का मुखिया। ये लोग स्वयं को सर्वश्रेष्ठ भगवान् सिंगा-बोंगा के वंशज मानते हैं। इन आरम्भिक लोगों के नाम पर भारत के चार भाषा परिवारों में से एक का नाम मुण्डारी रखा गया है।
नगरों के वर्गीकरण की आनुभविक व सांख्यिकीय विधि (Empirical-cum-Statistical Method of Towns’ Classification)

सन् 1943 में संयुक्त राज्य अमेरिका के 948 नगरों की जनसंख्या के व्यावसायिक आँकड़े इक्कठा किए। उन्होंने इन नगरों में विभिन्न व्यवसायों में काम करने वाली जनसंख्या का अलग-अलग प्रतिशत निकाला तथा इस प्रकार प्राप्त प्रतिशत मूल्यों के आधार पर नगरों का कार्यात्मक वर्गीकरण प्रस्तुत किया।
नगरों का वर्गीकरण (Classification of Towns)

नगर केवल एक कार्य तक सीमित नहीं रहते, बल्कि वे बहुमुखी कार्यों और व्यवसायों को सम्पादित कर रहे होते हैं। अतः कार्यों के आधार पर नगरों का वर्गीकरण करना कठिन काम है। फिर भी किसी नगर को उसके प्रधान कार्य के आधार पर विशिष्ट श्रेणी में रखा जाता है।
अवजनसंख्या (Under Population)

जब किसी प्रदेश में उपलब्ध संसाधनों के पूर्ण विकास या उपयोग के लिए जितनी जनसंख्या की आवश्यकता होती है उससे कम जनसंख्या पाई जाती है, तो इस स्थिति के लिए अधोजनसंख्या, अल्प जनसंख्या, जनाभाव, जनाल्पता, अवजनसंख्या आदि शब्दावलियों का प्रयोग किया जाता है।
सतत् पोषणीय विकास की मुख्य विशेषताएँ (Salient Features of Sustainable Development)

सतत् पोषणीय विकास की मुख्य विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं:
प्राकृतिक संसाधनों का दक्ष उपयोग (Efficient Use of Natural Resources)
भावी पीढ़ी के जीवन की गुणवत्ता से समझौता न हो (No Compromise in the Quality of Life of the Future Generation)
विकास पर्यावरण के अनुकूल हो (Development should be Environment Friendly)
आर्थिक विकास को सीमित नहीं करती (Does not Limit Economic Development)
वितरण संबंधी साम्यता (Distribution Equity)
पूँजी का संरक्षण (Preservation of Capital)
सतत् पोषणीय विकास: अर्थ एवं इसके तत्व (Sustainable Development: Meaning and its Elements)

“हमारा पर्यावरण और प्राकृतिक-जैविक संसाधन वर्तमान पीढ़ी को तो सुखी बनाएँ मगर आने वाली पीढ़ियों को भी अभावग्रस्त न रहने दें।” आर्थिक विकास के इसी फलसफे ने सतत् पोषणीय विकास की अवधारणा को जन्म दिया ।
नगरों का कार्यिक वर्गीकरण (Functional Classification of Towns)

विभिन्न विद्वानों द्वारा किए गए नगरों के कार्यिक वर्गीकरण के आधार पर नगरों को निम्नलिखित 8 वर्गों में बाँट सकते हैं-
(1) सुरक्षा केन्द्र
(2) उत्पादन केन्द्र
(3) व्यापारिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र
(4) राजनीतिक एवं प्रशासकीय केन्द्र
(5) सांस्कृतिक केन्द्र
(6) परिवहन केन्द्र
(7) मनोरंजन केन्द्र
(8) अन्य केन्द्र
ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप (Patterns of Rural Settlements)

जहां एक ओर ग्रामीण बस्तियों के ‘प्रकार’ (Types) बस्तियों के मकानों की संख्या और उनके बीच में पारस्पारिक दूरी के आधार पर निश्चित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए अलग-अलग बसे हुए एकाकी (isolated) घर, झोंपड़ी, वास गृह (Homestead), फार्म गृह (Farmstead) आदि को परिक्षिप्त अथवा एकाकी अथवा प्रकीर्ण (Dispersed or Scattered) बस्ती के नाम से पुकारा जाता है तथा जिस बस्ती में मकान पास-पास होते हैं, उसे सघन अथवा न्यष्टित (Nucleated or compact of Agglomerated) बस्ती कहा जाता है।
ग्रामीण बस्तियों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Location of Rural Settlements)

धरातल पर ग्रामीण बस्तियों का वितरण एक-समान नहीं है। ग्रामीण बस्तियों की अवस्थिति को विभिन्न प्रकार के कारक प्रभावित करते हैं, जिन्हें मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-
(1.) भौतिक कारक (Physical Factors)
(2.) मानवीय कारक (Human Factors)
ग्रामीण बस्तियाँ: अर्थ, परिभाषाएँ तथा प्रकार (Rural Settlements: Meaning, Definitions and Types)

ग्रामीण बस्ती परिवारों का वह समूह होता है जो वंश परम्परा द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, उनके रीति-रिवाज़ एक-समान हैं और वे एक- जैसी फ़सलों की खेती के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करने के लिए आपसी सम्बन्ध कायम करते हैं।
पुनर्जागरण काल के प्रमुख खोजयात्री (Main Explorers of Renaissance Period)

उत्तर मध्यकाल या पुनर्जागरण काल में पश्चिमी यूरोपीय देशों के शासकों तथा जनता के प्रोत्साहन तथा सहायता से अनेक खोज यात्रियों (नाविकों) ने नये-नये महासागरीय मार्गों और महाद्वीपों, द्वीपों, देशों आदि का पता लगाया। इस युग के खोजयात्रियों में मार्को पोलो, कोलम्बस, वास्को-डी-गामा, मैगेलन, कुक, अमेरिगो बस्पुक्की, जोन्स डीमांट, फ्रांसिस ड्रेक, हडसन आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
वायुमण्डल के ऊष्मन एवं शीतलन की विधियाँ (Methods of Heating and Cooling of Atmosphere)

सामान्य व्यक्ति यही सोचता है कि हमारा वायुमण्डल सीधा सौर किरणों से गर्म हटा है, लेकिन ऐसा नहीं है। वायुमण्डल के ताप का मुख्य स्रोत पृथ्वी का धरातल है, जो सूर्य से आने वाली ऊर्जा की लघु तरंगों को अवशोषित करके उन्हें ऊष्मा में बदल देता है। उसके बाद धरातल से यह अवशोषित ऊर्जा दीर्घ तरंगों के माध्यम से पार्थिव विकिरण के रूप में वायुमंडल तक पहुचती है, जो वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है।
प्राचीन भारत का भौतिक भूगोल (Physical Geography in Ancient India)

भारत के प्राचीन ग्रंथों- वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि में अनेक स्थानों पर भौतिक भूगोल से सम्बंधित विविध तथ्यों के वर्णन मिलते हैं। प्राचीन ग्रंथों में पर्वतों, मैदानों, नदियों, वनों, मरुस्थलों, झीलों, झरनों, हिमनदों, ऋतुओं आदि के भौगोलिक वर्णन किए गए हैं। इससे प्राचीन विद्वानों की प्राकृतिक तत्वों के विषय में ज्ञान, दक्षता और अभिरुचि का पता चलता है।
तापमान विसंगति (Thermal Anomaly)

किसी स्थान विशेष के औसत तापमान तथा वह स्थान जिस अक्षांश रेखा पर स्थित है उस अक्षांश रेखा के औसत तापमान के अन्तर को तापमान विसंगति (thermal anomaly) कहा जाता है।
ऊष्मा-स्थानान्तरण की विधियाँ (Heat Transfer Methods)

मौसम की विभिन्न प्रक्रियाओं में ऊष्मा का विशेष महत्व होता है। अतः एक स्थान से दूसरे स्थान अथवा एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ऊष्मा का संचार किस प्रकार होता है, यह जान लेना आवश्यक है। इसी दृष्टि से वायुमण्डल के गर्म और ठण्डे होने की विभिन्न विधियों की विवेचना से पहले ऊष्मा-स्थानान्तरण (transfer of heart) की प्रक्रियाओं का समझना अति महत्वपूर्ण है।