अलेक्जेण्डर वॉन हम्बोल्ट (Alexander von Humboldt)
कॉसमॉस हम्बोल्ट की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है जो 1845 से 1862 के मध्य पाँच खण्डों में प्रकाशित हुई थी। इसमें समस्त विश्व का विस्तृत वर्णन है। इसके प्रथम खण्ड में स्वरूप का सामान्य वर्णन है।
शनि ग्रह (Saturn)
शनि ग्रह आकार में सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है तथा दूरी के अनुसार सूर्य से छठे स्थान पर है।
सूर्य की परिक्रमा शनि ग्रह 29.5 वर्ष में पूरी करता है।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता या रहस्य इसके मध्यरेखा के चारों ओर पूर्ण विकसित वलयों (rings) का होना है, जिनकी संख्या 7 है।
हैकेटियस: भूगोल का पिता (Hecataeus: Father of Geography)
जेस पीरियड्स में पहली बार विश्व का व्यवस्थित वर्णन है, अतः हैकेटियस को ‘भूगोल का पिता’ (Father of Geography) कहते हैं। इसमें भूमध्यसागर, द्वीपों, अंतरीपों और विश्व के सभी देशों की सामान्य रूपरेखा वर्णित है। परन्तु दुर्भाग्यवश अब इसकी अधिकांश सामग्री मौजूद नहीं है। हैकेटियस को यूनानी-गद्य (Greek Prose) का प्रथम-लेखक भी माना जाता है।
भूगोल का विषय क्षेत्र (Scope of Geography)
भूगोल एक ऐसा स्थानिक विज्ञान (spatial science) है जिसमें धरातल पर पाई जाने वाली विभिन्नताओं का यथार्थ, क्रमबद्ध और तर्कसंगत अध्ययन किया जाता है। भूगोल विषय के अंतर्गत पृथ्वी के धरातल पर पाए जाने वाले सभी भौतिक, जैविक तथा मानवीय तत्वों या तथ्यों (elements or facts) तथा घटनाओं (phenomena) का अध्ययन शामिल किया जाता है।
भूगोल का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Geography)
भूगोल एक ऐसा विज्ञान है जो भूतल (earth’s surface) के वर्णन एवं व्याख्या से सम्बंधित है। भूगोल का अंग्रेजी पर्याय ‘Geography’ (ज्योग्राफी) है जिसकी उत्पत्ति यूनानी भाषा के ‘ge’ (जी) और grapho’ (ग्राफो) शब्दों के मिलने से हुई है। ‘ge’ का शाब्दिक अर्थ ‘पृथ्वी’ और ‘ग्राफो’ का शाब्दिक अर्थ ‘वर्णन करना’ होता है। इस प्रकार भूगोल (geography) का सामान्य अर्थ है- पृथ्वी का वर्णन (description of the earth)।
भूगोलवेत्ता और उनकी प्रमुख पुस्तकें (Geographers and their Major Books)
यहां प्रसिद्ध भूगोलवेत्ताओं और उनकी पुस्तक शीर्षकों की सूची दी गई है।
प्राचीन भारत में खगोलीय ज्ञान (Astronomical Knowledge in Ancient India)
भारत के प्राचीनतम ग्रंथों ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के अनेक मंत्रों में सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी के पारस्परिक सम्बंधों, ऋतु परिवर्तनों, दिन-रात्रि की क्रमिक आवृत्ति आदि के विवरण मिलते हैं। इन ग्रंथों 27 नक्षत्रों (शिरा, कृतिका, चित्रा आदि), विषुव दिन आदि के उल्लेख भी अनेक मंत्रों में पाये जाते है। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में ब्रह्मांड और पृथ्वी की उत्पत्ति, चन्द्र कलाओं, सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण, ऋतु परिवर्तन, सौर वर्ष, सौर मास, चान्द्र मास, चान्द्र वर्ष, दिन-रात की अवधि आदि की यथार्थ गणना और व्याख्या की गयी है।
प्राचीन भारत के भूगोलवेत्ता (Geographers of Ancient India)
विश्व का प्रचीनतम ज्ञान भारतीय ग्रंथों में मिलता है। रामायण और महाभारत काल से लेकर बारहवीं शताब्दी तक अनेक भारतीय विद्वानों ने विभिन्न भौगोलिक पक्षों का वर्णन अपने-अपने ग्रंथों में किया है। प्राचीन काल में भूगोल नाम का कोई अलग विषय नहीं था किन्तु धरातलीय तथा आकाशीय पिण्डों से सम्बंधित अध्ययन क्षेत्र शास्त्र के रूप में प्रचलित था।
प्रसम्भाव्यवाद (Probabilism)
ब्रिटिश भूगोलवेत्ता स्पेट (O.H.K. Spate) ने 1957 में ‘प्रसम्भाव्यवाद’ संकल्पना को प्रतिपादित किया। इस विचारधारा के अनुसार भूतल के विभिन्न भागों की प्राकृतिक दशाओं में विविधता तथा विलक्षणता पायी जाती है। किसी प्रदेश में कोई तत्व मानव के लिए अधिक उपयोगी है तो अन्य क्षेत्र में दूसरा तत्व। मानव के लिए उपयोगी सभी वस्तुएं भूतल के सभी भागों में समानरूप से नहीं पाई जाती है। किसी प्रदेश में कृषि के लिए प्राकृतिक परिस्थिति उपयुक्त है तो किसी प्रदेश में पशुचारण या खनन या औद्योगिक विकास के लिए।
नवनियतिवाद या नवनिश्चयवाद (Neo Determinism)
यह नियतिवाद या पर्यावरणवाद की संशोधित विचारधारा है जो व्यावहारिक जगत् के अधिक समीप है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित होने के कारण इसे वैज्ञानिक नियतिवाद (Scientific determinism) भी कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के मध्य तक अधिकांश भूगोलविदों की आस्था सम्भववाद में होने लगी और जो लोग नियतिवाद में विश्वास रखते थे वे भी प्राचीन नियतिवाद के आलोचक थे और उसके संशोधित तथा वैज्ञानिक स्वरूप पर बल देते थे। प्राचीन नियतिवाद के समर्थक सदैव यह सिद्ध करने में लगे रहे कि मनुष्य पर प्रकृति का नियंत्रण है और मनुष्य प्रकृति का दास है।
सम्भववाद (Possibilism)
सम्भववाद विचराधारा मानव-पर्यावरण के पारस्परिक सम्बंध की व्याख्या में मानव प्रयत्नों तथा क्रियाओं को अधिक महत्व देती है। बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में फ्रांसीसी मानव भूगोलवेताओं ने मनुष्य की स्वतंत्रता तथा उसकी कार्य कुशलता पर जोर दिया और मनुष्य पर प्राकृतिक शक्तियों का नियंत्रण बताने वाले नियतिवाद की कड़ी आलोचनाएं की। सम्भववाद के समर्थकों का मानना था कि मानव भी एक शक्तिशाली कारक है जो अपने क्रिया कलापों द्वारा प्राकृतिक भूदृश्य में परिवर्तन करता है और सांस्कृतिक दृश्यों का निर्माण करता है।
नियतिवाद या पर्यावरणवाद (Determinism or Environmentalism)
नियतिवाद मानव भूगोल की एक प्रमुख विचारधारा है जो मानव एवं प्रकृति के सम्बन्धों की व्याख्या करती है तथा प्रकृति को सर्वशक्तिमान और सभी मानवीय क्रियाओं की नियंत्रक मानती है। इस विचारधारा के अनुसार मानव अपने पर्यावरण (प्रकृति) की विशिष्ट देन है और समस्त मानवीय क्रियाएं भौतिक दशाओं जैसे: स्थिति, उच्चावच, जलवायु, मिट्टी एवं खनिज, जलाशय, जीव-जन्तु आदि द्वारा नियंत्रित होती हैं।
आकाशगंगा (Galaxy)
ब्रह्मांड में लगभग 100 अरब आकाशगंगाएँ (Galaxy) हैं। आकाशगंगा असंख्य तारों का एक विशाल समूह होता है, जिसमें एक केन्द्रीय बल्ज (Bulge) एवं तीन घूर्णनशील भुजाएँ होती हैं। ये तीनों घूर्णनशील भुजाएँ अनेक तारों से निर्मित होती हैं। बल्ज, आकाशगंगा के केन्द्र को कहा जाता है। यहाँ तारों का संकेन्द्रण सबसे अधिक होता है। प्रत्येक आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारे होते हैं।
सभी ग्रहों के रोचक तथ्य
तारों की परिक्रमा करने वाले प्रकाश रहित आकाशीय पिण्ड को ग्रह (Planet) कहा जाता है।
ये सूर्य से ही निकले हुए पिंड हैं तथा सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
इनका अपना प्रकाश नहीं होता, अतः ये सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं व ऊष्मा प्राप्त करते हैं।
सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा पश्चिम से पूर्व दिशा में करते हैं, परन्तु शुक्र व अरुण इसके अपवाद हैं तथा ये सूर्य के चारों ओर पूर्व से पश्चिम दिशा में परिभ्रमण करते हैं।
आंतरिक ग्रहों (Inner Planets) के अंतर्गत बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल आते हैं। सूर्य से निकटता के कारण ये भारी पदार्थों से निर्मित हुए हैं
बाह्य ग्रहों (Outer Planets) में बृहस्पति, शनि, अरुण व वरुण आते हैं, जो हल्के पदार्थों से बने हैं। आकार में बड़े होने के कारण इन ग्रहों को ग्रेट प्लेनेट्स (Great Planets) भी कहा जाता है।
सूर्य से सम्बंधित कुछ विशिष्ट तथ्य (Special facts Related to the Sun)
सौर ज्वाला जहां से निकलती है, वहाँ सूर्य की सतह पर काले धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जिन्हें हम सौर-कलंक (Sun Spots) कहते हैं। ये सूर्य के अपेक्षाकृत ठंडे भाग हैं, जिनका तापमान 1500°C होता है। सौर कलंक प्रबल चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करता है, जो पृथ्वी के बेतार संचार व्यवस्था को बाधित करता है।
सौर-कलंकों के बनने-बिगड़ने की प्रक्रिया औसतन 11 वर्षों में पूरी होती है, जिसे सौर-कलंक चक्र (Sunspot-Cycle) कहते हैं।