हाफोर्ड जॉन मैकिण्डर (Halford John Mackinder)
मैकिण्डर के विचार को उनके द्वारा प्रतिपादित ‘हृदयस्थल संकल्पना’ (Heartland concept) के नाम से जाना जाता है। उन्होने अपने विचार को कई लेखों तथा पुस्तकों द्वारा प्रस्तुत किया और समय-समय पर उनमें कुछ संशोधन भी किये।
भूगोल का लक्ष्य और उद्देश्य (Aims and Purpose of Geography)
भूगोल का प्रमुख उद्देश्य विश्व सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि करना है। वह पृथ्वी को मानव का घर मानकर उसके विभिन्न क्षेत्रों या स्थानों की विभिन्नताओं तथा अन्तर्सम्बन्धों को समझता है। मानव की समृद्धि हेतु वह प्रादेशिक संसाधनों के अध्ययन पर जोर देता है, उनका समुचित प्रयोग करने के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाने में योगदान देता है।
यथार्थवाद (Realism)
प्लेटो (Plato) ने विचारों के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए बताया। कि जो भी बाह्य स्वरूप हम देखते, सूघंते, स्पर्श करते हैं, अर्थात इन्द्रियों के माध्यम से अनुभव करते हैं। उन्हें इन्द्रियों (Senses) द्वारा सही-सही जानना, पहचानना सम्भव नहीं है, क्योंकि वे वास्तविक नहीं है। जो इस समय दृष्टिगत है, वह कुछ समय के पश्चात अदृश्य हो जायेगा।
आदर्शवाद (Idealism)
आदर्श मानव मस्तिष्क की दशा का प्रतीक है। यह मानव चेतना की प्रधानता को स्वीकार करता है। दार्शनिक अर्थ में आदर्शवाद वह अभिमत है, जिसमें मानव के क्रियाकलाप उसके अस्तित्व व ज्ञान को आधार प्रदान करते हैं। यह क्रियाकलाप किसी भौतिक पदार्थ या प्रक्रिया से नियंत्रित नहीं होते, वरन उसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है।
क्रियात्मक अथवा कार्यात्मकवाद (Functionalism)
‘कार्यात्मकवाद व्यवसायों से जुड़ी अवधारणा है’। वह समाज के कार्यों अथवा सामाजिक व्यक्तियों की क्रियाएँ हैं। यह दृष्टिकोण हमे यह बताता है कि विश्व या मानव समाज एक ऐसा तंत्र है जो भिन्न-भिन्न, परन्तु अन्तःनिर्भर बने तंत्रों का एक समूह है।
उपयोगितावाद (Pragmatism)
उपयोगितावाद (Pragmatism)
उपयोगितावाद एक ऐसा दार्शनिक दृष्टिकोण है जो अनुभव द्वारा अर्थपूर्ण विचारों को जन्म देता है। यह सोच अनुभवों, प्रयोगात्मक खोजबीन, और सत्य के आधार पर परिणामों का मूल्यांकन करती है। अनुभवों पर आधारित किए गए कार्यों के फल अर्थपूर्ण व ज्ञानप्रद हैं।
प्रत्यक्षवाद या अनुभववाद (Positivism or Empiricism)
ऐतिहासिक रूप से प्रत्यक्षवाद का उदय फ्रांस की क्रांति के उपरान्त हुआ, और ऑगस्त कॉम्टे ने इसे स्थापित बनाया। क्रांति से पूर्व प्रचलित बना यह निषेधवादी-दर्शन (Negative Philosophy) की प्रतिक्रिया स्वरूप जन्मा वैज्ञानिक प्रत्यक्षवादी सोच था।
भूगोल में अपवादात्मकता (Exceptionalism in Geography)
‘भूगोल में अपवादिता’ की शब्दावली को शेफ़र (Schaefer) ने हवा दी। शेफ़र जो नाजी जर्मनी से बचकर अमरीका आ गया था मूलतः अर्थशास्त्री था, और आयोवा (Iowa) विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में भूगोल का अध्यापन करने वाले समूह से जुड़ा हुआ था।
उत्तरआधुनिकता (Postmodernism)
मानविकीय ज्ञान, दर्शन और सामाजिक विज्ञानों व कला में आजकल उत्तरआधुनिकता का आन्दोलन चला है। उत्तरआधुनिकता आधुनिक भूगोल में ऐतिहासिकता की प्रतिक्रिया है। ऐतिहासिकवाद का ज़ोर व्यक्तियों एवं सामूहिक घटनाओं के कालक्रमानुसार वर्णन पर होता है, और यह स्थानिकता को नज़रन्दाज करता है।
समय (काल) भूगोल (Time Geography)
स्वीडन के भूगोलवेत्ता हेगरस्ट्रेण्ड (T. Hagerstrand) और उसके सहायकों ने लुण्ड विश्वविद्यालय में ‘समय के भूगोल’ सम्बन्धी विचार विकसित किए। समय और स्थान की जोड़ी अविछिन्न है, और “प्रत्येक घटना भूतकालीन स्थिति में अपनी जड़ें जमाए रहती है।”
उत्तरआधुनिकता एवं नारीवाद (Postmodernism and Feminism)
जॉनसन (1989) के अनुसार नारीवाद भूगोल में महिलाओं के सामान्य अनुभवों की पहचान करना, पुरुषों द्वारा दमन के प्रति उनका प्रतिरोध और उसको अन्त करने की प्रतिबद्धता आदि विषय सम्मिलित है। नारीवाद भूगोल का उद्देश्य ‘नारी अभिव्यक्ति को प्रकट बनाना और अपने को नियंत्रित करना’ है।
भूमध्य रेखा (Equator)
भूमध्य रेखा ग्लोब पर खींची गई वह काल्पनिक रेखा है जो पृथ्वी को दो बराबर भागों में विभाजित करती है। भूमध्य रेखा द्वारा विभाजित उत्तरी ध्रुव की ओर वाले आधे हिस्से को उत्तरी गोलार्ध तथा दक्षिणी ध्रुव की तरफ आधे भाग को दक्षिणी गोलार्ध कहा जाता है।
पुनर्जागरण काल के प्रमुख खोजयात्री (Main Explorers of Renaissance Period)
उत्तर मध्यकाल या पुनर्जागरण काल में पश्चिमी यूरोपीय देशों के शासकों तथा जनता के प्रोत्साहन तथा सहायता से अनेक खोज यात्रियों (नाविकों) ने नये-नये महासागरीय मार्गों और महाद्वीपों, द्वीपों, देशों आदि का पता लगाया। इस युग के खोजयात्रियों में मार्को पोलो, कोलम्बस, वास्को-डी-गामा, मैगेलन, कुक, अमेरिगो बस्पुक्की, जोन्स डीमांट, फ्रांसिस ड्रेक, हडसन आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं।
प्राचीन भारत का भौतिक भूगोल (Physical Geography in Ancient India)
भारत के प्राचीन ग्रंथों- वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि में अनेक स्थानों पर भौतिक भूगोल से सम्बंधित विविध तथ्यों के वर्णन मिलते हैं। प्राचीन ग्रंथों में पर्वतों, मैदानों, नदियों, वनों, मरुस्थलों, झीलों, झरनों, हिमनदों, ऋतुओं आदि के भौगोलिक वर्णन किए गए हैं। इससे प्राचीन विद्वानों की प्राकृतिक तत्वों के विषय में ज्ञान, दक्षता और अभिरुचि का पता चलता है।
प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography)
यह भौगोलिक अध्ययन का एक प्रमुख उपागम (अध्ययन विधि) है जिसमें किसी सम्पूर्ण क्षेत्रीय इकाई के विभिन्न खण्डों या प्रदेशों का अध्ययन अलग-अलग किया जाता है। यह प्रदेशों (उप विभागों) का भूगोल है। उदाहरण के लिए जब विश्व को विभिन्न प्रदेशों में विभाजित करके उनका अलग-अलग भौगोलिक अध्ययन किया जाता है, तब वह विश्व का प्रादेशिक भूगोल कहलाता है।