भारत में हरित क्रान्ति (Green Revolution in India)
भारत में हरित क्रान्ति की शुरुआत 1966-67 में मेक्सिको में विकसित नई गेहूँ की बौनी प्रजातियों के प्रयोग से हुयी। इसके पहले 1959 में फोर्ड फाउन्डेशन के कृषि वैज्ञानिकों के एक समूह को भारत की कृषि में सुधार हेतु समुचित सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया गया था जिन्होंने अपनी रिपोर्ट अप्रैल 1959 में प्रस्तुत की थी।
भारतीय कृषि की 20 समस्याएं (Problems of Indian Agriculture)
देखा जाए तो कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की आधार है और देश की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या कृषि पर ही निर्भर है फिर भी भारतीय कृषि कई समस्याओं से ग्रसित है और कुछ समस्याएं टो समय बीतने के साथ और भी जटिल होती जा रही हैं। स्वतंत्रता के तुरंत बाद योजनाबद्ध विकास के बावजूद भी कृषि संबंधी समस्याओं को सुलझाने में कोई विशेष सफलता नहीं मिली है। आइए यहां हम भारतीय कृषि से जुडी कुछ गंभीर समस्याओं की चर्चा करते हैं।
भारतीय कृषि की विशेषताएँ (Characteristics of Indian Agriculture)
हम सब जानते हैं कि भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है जिसमें लोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में कृषि की प्रमुख भूमिका रहती है। कृषि का प्रभाव इस हद तक देखा जा सकता है कि राजनीतिक दल का भविष्य और सरकार की सफलता भी कृषि उत्पादन की मात्रा और जन साधारण के लिए सस्ते दाम पर अनाजों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। आइए अब हम भारतीय कृषि की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर नजर डालते हैं।
भारत में तेल परिष्करणशालाएँ (Oil Refineries in India)
कच्चे तेल की खोज के बाद भारतीय पेट्रोलियम रिफाइनिंग क्षेत्र(Indian Petroleum refining sector) ने एक लंबा सफर तय किया है। भारत्त में पहली रिफाइनरी 1901 में डिगबोई में स्थापित की गई। सन 1947 तक, डिगबोई 0.50 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (MMTPA) की क्षमता वाली एकमात्र रिफाइनरी थी।
भारत में पेट्रोलियम (Petroleum in India): उत्पादन एवं वितरण
‘पेट्रोलियम’ शब्द लेटिन भाषा के दो शब्दों के मेल से बना है – ‘पेट्रा’ जिसका अर्थ होता है ‘चट्टान’ तथा ‘ओलियम’ जिसका अर्थ है ‘तेल’ । अर्थात् पेट्रोलियम पृथ्वी की चट्टानों से प्राप्त होने वाला तेल है। इसलिए इसे ‘खनिज तेल’ भी कहते हैं।
भारत में कोयले का उत्पादन एवं वितरण (Production and Distribution of Coal in India)
कोयले की संचित राशि की दृष्टि से भारत विश्व का पांचवाँ बड़ा देश जहाँ विश्व का लगभग 10% कोयले की संचित राशि है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के अनुसार 01.04.2022 तक भारत में 1200 मीटर की गहराई तक कोयले की संचित राशि 361411.46 मिलियन टन थी। इसका वितरण तालिका 1 में दिखाया गया है।
भारतीय मानसून एवं संबंधित सिद्धांत (Indian Monsoon and Related Theories)
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द ‘मौसिम’ से हुई है जिसका अर्थ है ‘मौसम’ या ‘ऋतु’। इस शब्द का प्रयोग अरब के नाविकों द्वारा अरब सागर क्षेत्र में चलने वाली उन हवाओं के लिए किया गया था, जिनकी दिशा मौसम या ऋतु परिवर्तन के साथ-साथ बदल जाती थी, अर्थात् जाड़े में हवाएं उत्तर-पूर्व से दक्षिण- पश्चिम को और गर्मी में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर – पूर्व दिशा में बहने लग जाती थी।
भारतीय वानिकी की समस्याएँ (Problems of Indian Forestry)
यद्यपि देश के पास प्रचुर और विविध वन संसाधन उपलब्ध हैं परन्तु वैज्ञानिक नियोजन के अभाव, शोषण की देशी पद्धति और कुप्रबन्ध के कारण वार्षिक उपज बहुत कम है। जहाँ प्रति हेक्टेयर वन क्षेत्र में वार्षिक उत्पादकता स्तर फ्रांस में 3.9 घन मीटर, जापान में 1.8 घनमीटर, संयुक्त राज्य अमेरिका में 1.25 घन मीटर लकड़ी है वहाँ भारत में यह केवल 0.5 घन मीटर है। हर प्रयासों के बावजूद प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर साल के वन से 6.8 टन, देवदार से 10.1 टन और चीड़ से 3.2 टन से ज्यादा लकड़ी नहीं प्राप्त हो पाती है।
सामाजिक वानिकी (Social Forestry)
सामाजिक वानिकी शब्दावली का प्रयोग सबसे पहले 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने किया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी तथा छोटे-छोटे पन उत्पादों की आपूर्ति करना है। इसके मुख्य तीन अंग है-
(1) शहरी वानिकी, (ii) ग्रामीण यानिकी तथा (iii) फार्म वानिकी
एच.जी. चैम्पियन के अनुसार भारतीय वनों का वर्गीकरण (Indian Forests Classification by H.G. Champion)
भारतीय वनों को एच.जी. चैम्पियन (1936) ने ग्यारह वर्गों में विभाजित किया है। ये वर्ग निम्नलिखित हैं-
1. उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)
2. उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (The Tropical Moist Deciduous Forest)
3. उष्णकटिबंधीय कटीले वन (Tropical Thorny Forests)
4. उपोष्ण पर्वतीय वन (The Subtropical Montane Forests)
5. शुष्क पर्णपाती वन (The Dry Deciduous Forests)
6. हिमालय के आर्द्र वन (Himalayan Moist Forests)
7. हिमालय के शुष्क शीतोष्ण वन (Dry Temperate Forests of the Himalayas)
8. पर्वतीय आर्द्र शीतोष्ण वन (Montane Wet Temperate Forests)
9. अल्पाईन तथा अर्ध-अल्पाईन वन (Alpine and Subalpine Forests)
10. मरुस्थल वनस्पति (Desert Vegetation)
11. ज्वारीय (कच्छ वनस्पति) (Tidal (Mangrove)
कोयले के प्रकार तथा उनकी विशेषताएं (Types of Coal and their Characteristics)
एन्थ्रेसाइट कोयला सबसे उच्च कोटि का कोयला है जिसमें 80 से 90 प्रतिशत कार्बन की मात्रा होती है।
इसमें वाष्पशील पदार्थ की मात्रा बहुत कम होती है तथा नमी की मात्रा न के बराबर होती है।
इस कोयले को जलाने पर नीली व लघु लौ होती है।
यह सबसे महंगे कोयले की किस्म है।
भारतीय वनों का वर्गीकरण (Classification of Indian Forests)
आरक्षित वन ( Reserved Forests )
इस प्रकार के वन सरकार के प्रत्यक्ष पर्यवेक्षण में रहते हैं तथा यहाँ लोगों का प्रवेश लकड़ियों को इकट्ठा करने के लिए तथा पशुओं को चराने के लिए वर्जित हैं। देश का कुल 53 प्रतिशत क्षेत्र आरक्षित वन के अंतर्गत आता है।
प्रायद्वीपीय भारत का नदी तंत्र (River System of Peninsular India)
ब्राह्मणी नदी की लम्बाई 420 कि. मी. है।
ब्राह्मणी नदी कोयल तथा शंख नदियों के संगम से बनती है।
ये नदियाँ राउलकेला में जाकर मिलती हैं तथा गदजात पहाड़ियों के पश्चिमी भाग को अपवाहित करती हैं।
यह नदी बंगाल की खाड़ी में पाराद्वीप बंदरगाह के ऊपर जाकर मिलती है।
उत्तर में वैतरणी नदी होने के कारण भद्रक के नीचे एक डेल्टा क्षेत्र का निर्माण है।
ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र (Brahmaputra River System)
तिस्ता
यह ब्रह्मपुत्र की सबसे पश्चिमी दाहिनी तट की सहायक नदी है।
कंचनजंगा से निकलते हुए यह दार्जिलिंग के पहाड़ियों में एक तीव्र पर्वतीय प्रवाह है, जिसमें रांगपो, संगित तथा सेबक जैसी सहायक नदियां आकर मिलती हैं।
इसके तट पर जलपाईगुड़ी शहर स्थित है, जो 1968 की बाढ़ में सम्पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था।
वर्तमान में तिस्ता नदी बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र नदी में जाकर मिलती है।
1787 के आकस्मिक बाढ़ में इस नदी ने अपना मार्ग बदल लिया, इसके पहले यह नदी गंगा के साथ संगम करती है।
गंगा नदी तंत्र (Ganga River System)
कर्नाली
कर्नाली को नेपाल के हिमालय क्षेत्र में कैरी आला कहते हैं, जो गंगा के मैदान में घाघरा बन जाती है।
कर्नाली एक पूर्ववर्ती नदी है, जो नेपाल के हिमालय में मानधाता चोटी (7220 मीटर) से निकलती है।
यह नदी नेपाल के पश्चिमी भाग में महाभारत श्रेणी को एक गहरे महाखड्ड के निर्माण के द्वारा पार करती है।
मैदान क्षेत्र में इसमें शारदा नदी आकर मिलती है, जहां यह नदी घाघरा कहलाती है, जिसका अर्थ है – लहंगा।