दैनिक तापांतर: अर्थ एवं इसको प्रभावित करने वाले कारक
दिन के 24 घण्टों में तापमान सदा एक समान नहीं रहता। किसी स्थान पर किसी एक दिन के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के अन्तर को वहाँ का दैनिक तापान्तर कहा जाता है। इसे ताप परिसर भी कहते हैं। ताप परिसर के माप से जलवायु की विषमता का बोध होता है।
तापमान परिवर्तन तथा उसके व्युत्पन्न रूप
तापमान में होने वाले परिवर्तन लोगों के जीवन व उनकी गतिविधियों को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि वायुमण्डल में होने वाले अनेक परिवर्तनों में केवल तापमान के परिवर्तन की ओर लोग सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। मौसम विज्ञानियों द्वारा एकत्रित किए गए आँकड़ों में सबसे महत्त्वपूर्ण आँकड़े दिन का अधिकतम व न्यूनतम तापमान होते हैं क्योंकि इन्हीं आधारी (Basic) आँकड़ों से अन्य अनेक प्रकार के आँकड़े व्युत्पन्न (Derive) किए जाते हैं।
तापमान का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Temperature)
तापमान के क्षैतिज वितरण का अर्थ है, अक्षांश के अनुसार तापमान का वितरण। हम जानते हैं कि किसी स्थान का तापमान मुख्यतः वहाँ प्राप्त सूर्याभिताप (insolation) की मात्रा पर निर्भर होता है। सूर्याभिताप की मात्रा पर सबसे अधिक प्रभाव किसी स्थान के अक्षांश का पड़ता है। इस प्रकार धरातल के तापमान वितरण पर अन्य सभी कारकों की अपेक्षा अक्षांश का सर्वाधिक नियंत्रण होता है।
मौसम एवं जलवायु के तत्त्व (Elements of Weather and Climate)
जिन तत्त्वों से विभिन्न प्रकार के मौसमों एवं जलवायु प्रकारों की रचना होती है उन्हें मौसम अथवा जलवायु के तत्त्व कहा जाता है। इन तत्वों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया जा रहा है –
1. तापमान
2. वायुदाब
3. पवनें
4. आर्द्रता
5. वर्षण
मौसम व जलवायु: अर्थ, परिभाषाएं एवं अंतर (Weather and Climate: Meaning, Definitions and Difference)
साधारण मानव के लिए मौसम एवं जलवायु में अंतर करना कठिन है। लेकिन जलवायु विज्ञान में जलवायु (climate) एवं मौसम (weather) दोनों शब्दों का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया जाता है। अतः इस विज्ञान में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिए इन शब्दों का वास्तविक अर्थ एवं अंतर समझ लेना चाहिए।
वायुमण्डल के ऊष्मन एवं शीतलन की विधियाँ (Methods of Heating and Cooling of Atmosphere)
सामान्य व्यक्ति यही सोचता है कि हमारा वायुमण्डल सीधा सौर किरणों से गर्म हटा है, लेकिन ऐसा नहीं है। वायुमण्डल के ताप का मुख्य स्रोत पृथ्वी का धरातल है, जो सूर्य से आने वाली ऊर्जा की लघु तरंगों को अवशोषित करके उन्हें ऊष्मा में बदल देता है। उसके बाद धरातल से यह अवशोषित ऊर्जा दीर्घ तरंगों के माध्यम से पार्थिव विकिरण के रूप में वायुमंडल तक पहुचती है, जो वायुमंडल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है।
तापमान विसंगति (Thermal Anomaly)
किसी स्थान विशेष के औसत तापमान तथा वह स्थान जिस अक्षांश रेखा पर स्थित है उस अक्षांश रेखा के औसत तापमान के अन्तर को तापमान विसंगति (thermal anomaly) कहा जाता है।
ऊष्मा-स्थानान्तरण की विधियाँ (Heat Transfer Methods)
मौसम की विभिन्न प्रक्रियाओं में ऊष्मा का विशेष महत्व होता है। अतः एक स्थान से दूसरे स्थान अथवा एक वस्तु से दूसरी वस्तु में ऊष्मा का संचार किस प्रकार होता है, यह जान लेना आवश्यक है। इसी दृष्टि से वायुमण्डल के गर्म और ठण्डे होने की विभिन्न विधियों की विवेचना से पहले ऊष्मा-स्थानान्तरण (transfer of heart) की प्रक्रियाओं का समझना अति महत्वपूर्ण है।
जल एवं स्थल भाग अलग-2 दरसे ठंडे व गर्म क्यों होते हैं?
हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्रोत सूर्य है। सूर्याभिताप या सौर ऊर्जा के प्रभाव की दृष्टि से पृथ्वी के धरातल पर स्थल तथा जल में सबसे अधिक अन्तर पाया जाता है। जल की अपेक्षा स्थल भाग तेजी से और अधिक मात्रा में गरम व ठण्डा होता है। इस लेख में हम इस अन्तर के कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख करेंगे जो इस प्रकार हैं :-
भू-विक्षेपी पवन (Geostrophic Wind)
‘ज्योस्ट्रॉफिक’ (geostrophic) ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘पृथ्वी द्वारा मोड़ा गया’। जब वायुदाब-प्रवणता बल तथा विक्षेपक बल में संतुलन हो जाता है, तब पवन-प्रवाह समदाब रेखाओं के समानान्तर होता है। इस प्रकार समदाब रेखाओं के समानान्तर चलने वाली पवन को भू- विक्षेपी पवन (geostrophic wind) कहते हैं।
कोरियालिस बल (Coriolis Force)
पृथ्वी की घूर्णन या दैनिक गति के कारण उत्पन्न आभासी बल जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में पवन अपने पथ के दाई ओर, तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाई ओर मुड़ जाती है, कोरियालिस बल (Coriolis force) कहलाता है।इसे विक्षेपक बल (deflective force) भी कहते हैं, पवन की दिशा को मोड़ देता है।
पवन की गति को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Wind Speed)
वैसे तो पवन की गति को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं, ल्लेकिन निम्नलिखित चार को प्रमुख माना जाता है:-
(1) वायुदाब-प्रवणता (pressure-gradient)
(2) पृथ्वी की घूर्णन गति (Rotation of earth)
(3) घर्षण (friction)
(4) पवन का अपकेन्द्री बल (centrifugal action of wind)
पवन का अर्थ एवं महत्व (Meaning and Importance of Wind)
धरातल के लगभग समानान्तर बहने या प्रवाहित होने वाली वायु को पवन (wind) कहा जाता है। बायर्स के अनुसार पवन की परिभाषा इस प्रकार है:- “पवन मात्र गतिशील वायु है जिसका मापन उसके क्षैतिज घटक में किया जाता है”।
संघनन एवं जलग्राही नाभिक (Condensation and Hygroscopic Nuclei)
वायुमण्डल में संघनन की क्रिया के लिए आवश्यक है कि अति सूक्ष्म नाभिक प्रचुर मात्रा में उपस्थित हों जिनके इर्द-गिर्द वाष्प जल के सूक्ष्म कणों में परिवर्तित हो सके। पहले वैज्ञानिकों का विचार था कि संघनन के लिए वायु में धूल के अतिसूक्ष्म कण, चाहे जिस प्रकार के भी हों, पर्याप्त होते हैं।
संघनन के विविध रूप (Forms of Condensation)
वायुमण्डल में संघनित होने वाले जल-वाष्प को हम विविध रूपों में देख सकते हैं। अलग -2 वायुमंडलीय परिस्थितियों में वायु के शीतल होने के कारण संघनन की क्रिया द्वारा जल-वाष्प ओस (dew), पाला (frost), कोहरा (fog) अथवा मेघों (clouds) के रूप में परिवर्तित हो जाता है।