जनसंख्या समस्याएं (Population Problems)
अति जनसंख्या या जनाधिक्य (overpopulation) और अल्प जनसंख्या या जनाभाव (under population) दोनों ही दशाओं में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जिनको प्रकृति सामान्यतः एक-दूसरे से भिन्न होती है। जनाधिक्य की समस्या विकासशील देशों के साथ ही कुछ विकसित देशों में भी पायी जाती है। इसी प्रकार जनाभाव की समस्या भी कई विकसित और विकासशील देशों में मिलती है।
जनसंख्या के सामाजिक सिद्धान्त (Social Theories of Population)
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही अनेक समाजवादी विचारकों तथा लेखकों ने मानवीय कष्टों का कारण अधिक जनसंख्या को नहीं, आय के असमान वितरण तथा सामाजिक व्यवस्था की बुराइयों को दोषी सिद्ध करने का प्रयास किया है। माल्थस के पश्चात् जनसंख्या से सम्बन्धित अनेक सामाजिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ। इन सामाजिक सिद्धान्तों में हेनरी जार्ज (Henery George), ड्यूमां (Dumont) तथा कार्ल मार्क्स (Carl Marx) द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त विशेष उल्लेखनीय हैं। इनकी संक्षिप्त चर्चा अग्रिम पंक्तियों में की गयी है।
रोस्टोव का आर्थिक वृद्धि सिद्धान्त (Rostow’s Theory of Economic Growth)
रोस्टोव ने जनसंख्या सम्बन्धी अलग से किसी सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया है किन्तु उन्होंने आर्थिक विकास तथा जनसंख्या वृद्धि को सहगामी बताया है। उनके अनुसार जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति आर्थिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार पाई जाती है।
मार्क्स का जनसंख्या सिद्धान्त (Marx’s Theory of Population)
कार्ल मार्क्स (Carl Marx) ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के दोषों की विस्तृत व्याख्या के साथ ही उसकी कटु आलोचना की है। उनके अनुसार, जनसंख्या समस्या के साथ ही समाज की समस्त सामाजिक-आर्थिक समस्याएँ पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ही दुष्परिणाम हैं।
थामस डबलडे का आहार सिद्धान्त (Diet Theory of Thomas Doubleday)
ब्रिटिश अर्थशास्त्री तथा दार्शनिक थामस डबलडे (Thomas Doubleday) 1790-1870 ने खाद्य पूर्ति और जनसंख्या वृद्धि के सम्बन्ध में अपने सिद्धान्त का विश्लेषण किया। उनके अनुसार “जनसंख्या वृद्धि और खाद्यपूर्ति में विपरीत सम्बन्ध होता है।” (man’s increase in number was inversely related to food supply)।
हरबर्ट स्पेन्सर का जैविक सिद्धान्त (Biological Theory of Spencer)
ब्रिटिश दार्शनिक हरबर्ट स्पेन्सर (1820-1903) ने प्राकृतिक शक्तियों के आधार पर सामाजिक तथा जैविक विकास की व्याख्या करने का प्रयास किया है। उन्होंने जनसंख्या वृद्धि के लिए प्राकृतिक नियमों का सहारा लिया। उनका जैविक सिद्धान्त सैडलर और डबलडे के सिद्धान्तों से मिलता-जुलता है।
गतिशीलता संक्रमण मॉडल (Mobility Transition Model)
प्रसिद्ध जनसंख्या भूगोलविद् ज़ेलिंस्की (W. Zelinsky) ने सन् 1971 में जनसंख्या के प्रवास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसे गतिशीलता संक्रमण मॉडल के नाम से जाना जाता है। जेलिंस्की के विचार से जनसंख्या के प्रवास की प्रवृत्ति जनांकिकीय संक्रमण की अवस्थाओं से काफी समानता रखती है।
प्रवास का व्यवहारपरक मॉडल (Behavioral Model of Migration)
जूल्यिन वल्पर्ट (J. Wolpert) ने सन् 1975 में मानव व्यवहार पर आधारित प्रवास मॉडल प्रस्तुत किया जो संरचनात्मक प्रकृति के मॉडलों से भिन्न है। उनके अनुसार संरचनात्मक मॉडल की प्रकृति वस्तुतः यांत्रिक है जिसमें मनुष्य की इच्छा, आवश्यकता; दृष्टिकोण आदि पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
प्रवास का आकर्षण एवं दाब सिद्धान्त (Pull and Push Theory of Migration)
आकर्षण एवं दाब सिद्धान्त प्रवास के कारणों तथा प्रवासियों द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रदर्शित करता है। यह सिद्धान्त प्रतिपादित करता है कि किसी भी व्यक्ति के लिए प्रवास का निर्णय दो विपरीत शक्तियों- आकर्षण (Pull) और दाब (Push) के अन्तर्द्वन्द्व का परिणाम होता है।
सोपानी संचलन मॉडल (Stepwise Movement Model)
सोपानी संचलन मॉडल रैवेन्सटीन की संकल्पना में द्वितीय सामान्यीकरण – अवस्थाओं में प्रवास (Migration in Phases) पर आधारित है। यह मॉडल इस कल्पना पर आधारित है कि किसी तीव्र वृद्धि वाले नगर के लिए उसके समीपवर्ती ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्या ही सर्वप्रथम प्रवास करती है।
ली का प्रवास सिद्धान्त (Lee’s Migration Theory)
ली (F.S. Lee) ने अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन सन् 1966 में किया। उन्होंने जनसंख्या प्रवास को चार कारकों का परिणाम माना है –
(1) मूल स्थान के कारक
(2) गन्तव्य स्थान के कारक
(3) मध्यवर्ती अवरोध
(4) व्यक्तिगत कारक
प्रवास का सूक्ष्म विश्लेषणात्मक मॉडल (Micro Analytical Model of Migration)
सन् 1967 में हैगरस्टैन्ड (T. Hagerstrand) ने अपने ‘स्थानिक अंतक्रिया सिद्धान्त’ (Theory of Spatial Interaction) के विश्लेषण में आवासीय संचलन (Residential movement) का एक सरल मॉडल प्रस्तुत किया। इस मॉडल के अनुसार किसी भी क्षेत्र में जनसंख्या का वितरण सतत रूप में नहीं पाया जाता है बल्कि यह विभिन्न केन्द्रों (nodes) के रूप में वितरित होती है जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं और उनके मध्य पारस्परिक संचलन पाया जाता है।
प्रवास का प्रतियोगी प्रवासी मॉडल (Competing Migrants Model of Migration)
स्टोफर (S. Stouffer) ने अपने मध्यवर्ती अवसर माडल में संशोधन करके सन् 1960 में प्रतियोगी प्रवासी मॉडल प्रस्तुत किया और इसमें प्रतियोगी प्रवासी तत्वों को भी समाहित किया।
प्रवास का मध्यवर्ती अवसर मॉडल (Intervening Opportunity Model of Migration)
गुरुत्व मॉडल और न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त में संशोधन करके सन् 1940 में स्टोफर (S. Stouffer) ने मध्यवर्ती अवसर मॉडल प्रस्तुत किया। यह सिद्धान्त प्रतिपादित करता है कि प्रवास की मात्रा वास्तविक (भौगोलिक) दूरी की अपेक्षा सामाजिक तथा आर्थिक दूरी से अधिक प्रभावित होती है।
न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त (Principle of Least Effort)
सन् 1940 में जी०के० जिफ (G.K. Jipf) ने न्यूनतम प्रयास सिद्धान्त का प्रतिपादन किया और वस्तुओं, सूचनाओं तथा व्यक्तियों के स्थानान्तरण की व्याख्या की।