21 जून का दिन बड़ा क्यों होता है? जानें इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण
ग्रीष्म संक्रांति का अर्थ है “गर्मियों का प्रारंभ”। 21 जून को ग्रीष्म संक्रांति (Summer Solstice) के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस दिन पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर सबसे अधिक झुका होता है। इस कारण सूर्य की किरणें सीधे कर्क रेखा (23.5 डिग्री उत्तरी अक्षांश) पर पड़ती हैं, जिससे दिन की लंबाई सबसे अधिक होती है।
क्या होता है सुपर मून, ब्लू मून और ब्लड मून (What is Super Moon, Blue Moon and Blood Moon)
क्या आपने कभी रात के आसमान में एक विशेष चांद को चमकते हुए देखा है और सोचा है कि यह सामान्य से अधिक चमकीला या बड़ा क्यों है? यह सुपर मून हो सकता है। और क्या आपने किसी महीने में दो बार पूर्णिमा देखी है? इसे ब्लू मून कहा जाता है।
हरियाणा: राजनैतिक उद्भव, पड़ोसी राज्य, स्थानिक सम्बन्ध एवं सामरिक महत्व
शाह आयोग की अनुशंसा पर संयुक्त पंजाब का हिन्दी भाषी क्षेत्र अम्बाला, करनाल, रोहतक, हिसार, गुड़गाँव के जनपद एवं पटियाला तथा पूर्वी पंजाब स्टेट्स के जींद एवं महेन्द्रगढ़ जनपद मिला कर हरियाणा राज्य का उद्भव 1 नवम्बर 1966 को हुआ।
हरियाणा: अवस्थिति एवं विस्तार (Haryana: Location and Extent)
हरियाणा प्रदेश का विस्तार 27°39′ से 30°55′ उत्तरी अक्षांश से लेकर 74°28′ से 77°36′ पूर्वी देशान्तर तक है। हरियाणा प्रदेश भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित है तथा राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 44,212 वर्ग किलोमीटर है जो देश का 1.34 प्रतिशत भू-भाग है।
भूगोल का लक्ष्य और उद्देश्य (Aims and Purpose of Geography)
भूगोल का प्रमुख उद्देश्य विश्व सम्बन्धी ज्ञान में वृद्धि करना है। वह पृथ्वी को मानव का घर मानकर उसके विभिन्न क्षेत्रों या स्थानों की विभिन्नताओं तथा अन्तर्सम्बन्धों को समझता है। मानव की समृद्धि हेतु वह प्रादेशिक संसाधनों के अध्ययन पर जोर देता है, उनका समुचित प्रयोग करने के लिए विभिन्न योजनाएँ बनाने में योगदान देता है।
यथार्थवाद (Realism)
प्लेटो (Plato) ने विचारों के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए बताया। कि जो भी बाह्य स्वरूप हम देखते, सूघंते, स्पर्श करते हैं, अर्थात इन्द्रियों के माध्यम से अनुभव करते हैं। उन्हें इन्द्रियों (Senses) द्वारा सही-सही जानना, पहचानना सम्भव नहीं है, क्योंकि वे वास्तविक नहीं है। जो इस समय दृष्टिगत है, वह कुछ समय के पश्चात अदृश्य हो जायेगा।
आदर्शवाद (Idealism)
आदर्श मानव मस्तिष्क की दशा का प्रतीक है। यह मानव चेतना की प्रधानता को स्वीकार करता है। दार्शनिक अर्थ में आदर्शवाद वह अभिमत है, जिसमें मानव के क्रियाकलाप उसके अस्तित्व व ज्ञान को आधार प्रदान करते हैं। यह क्रियाकलाप किसी भौतिक पदार्थ या प्रक्रिया से नियंत्रित नहीं होते, वरन उसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व होता है।
क्रियात्मक अथवा कार्यात्मकवाद (Functionalism)
‘कार्यात्मकवाद व्यवसायों से जुड़ी अवधारणा है’। वह समाज के कार्यों अथवा सामाजिक व्यक्तियों की क्रियाएँ हैं। यह दृष्टिकोण हमे यह बताता है कि विश्व या मानव समाज एक ऐसा तंत्र है जो भिन्न-भिन्न, परन्तु अन्तःनिर्भर बने तंत्रों का एक समूह है।
उपयोगितावाद (Pragmatism)
उपयोगितावाद (Pragmatism)
उपयोगितावाद एक ऐसा दार्शनिक दृष्टिकोण है जो अनुभव द्वारा अर्थपूर्ण विचारों को जन्म देता है। यह सोच अनुभवों, प्रयोगात्मक खोजबीन, और सत्य के आधार पर परिणामों का मूल्यांकन करती है। अनुभवों पर आधारित किए गए कार्यों के फल अर्थपूर्ण व ज्ञानप्रद हैं।
प्रत्यक्षवाद या अनुभववाद (Positivism or Empiricism)
ऐतिहासिक रूप से प्रत्यक्षवाद का उदय फ्रांस की क्रांति के उपरान्त हुआ, और ऑगस्त कॉम्टे ने इसे स्थापित बनाया। क्रांति से पूर्व प्रचलित बना यह निषेधवादी-दर्शन (Negative Philosophy) की प्रतिक्रिया स्वरूप जन्मा वैज्ञानिक प्रत्यक्षवादी सोच था।
भूगोल में अपवादात्मकता (Exceptionalism in Geography)
‘भूगोल में अपवादिता’ की शब्दावली को शेफ़र (Schaefer) ने हवा दी। शेफ़र जो नाजी जर्मनी से बचकर अमरीका आ गया था मूलतः अर्थशास्त्री था, और आयोवा (Iowa) विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में भूगोल का अध्यापन करने वाले समूह से जुड़ा हुआ था।
उत्तरआधुनिकता (Postmodernism)
मानविकीय ज्ञान, दर्शन और सामाजिक विज्ञानों व कला में आजकल उत्तरआधुनिकता का आन्दोलन चला है। उत्तरआधुनिकता आधुनिक भूगोल में ऐतिहासिकता की प्रतिक्रिया है। ऐतिहासिकवाद का ज़ोर व्यक्तियों एवं सामूहिक घटनाओं के कालक्रमानुसार वर्णन पर होता है, और यह स्थानिकता को नज़रन्दाज करता है।
समय (काल) भूगोल (Time Geography)
स्वीडन के भूगोलवेत्ता हेगरस्ट्रेण्ड (T. Hagerstrand) और उसके सहायकों ने लुण्ड विश्वविद्यालय में ‘समय के भूगोल’ सम्बन्धी विचार विकसित किए। समय और स्थान की जोड़ी अविछिन्न है, और “प्रत्येक घटना भूतकालीन स्थिति में अपनी जड़ें जमाए रहती है।”
उत्तरआधुनिकता एवं नारीवाद (Postmodernism and Feminism)
जॉनसन (1989) के अनुसार नारीवाद भूगोल में महिलाओं के सामान्य अनुभवों की पहचान करना, पुरुषों द्वारा दमन के प्रति उनका प्रतिरोध और उसको अन्त करने की प्रतिबद्धता आदि विषय सम्मिलित है। नारीवाद भूगोल का उद्देश्य ‘नारी अभिव्यक्ति को प्रकट बनाना और अपने को नियंत्रित करना’ है।
डेविस का ढाल पतन सिद्धान्त (Slope Decline Theory by Davis)
डेविस महोदय ने ही ढालों के विकास में चक्रीय व्यवस्था को प्रतिपादित किया था। इनके अनुसार अपरदन चक्र की युवावस्था में नदी द्वारा निम्नवर्ती अर्थात् लम्बवत अपरदन तथा अपक्षय के कारण तीव्र उत्तल ढाल का विकास होता है। इस अवस्था में ढाल का निवर्तन कम होता है तथा पतन बिल्कुल नहीं होता है।