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आज के समय में धरती का अवलोकन और निगरानी करने के लिए रिमोट सेंसिंग (Remote Sensing) तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं — सैटेलाइट (Satellite)। सैटेलाइट्स को खास तरह के ऑर्बिट (कक्षा) और स्वाथ (Swath) के आधार पर डिज़ाइन किया जाता है ताकि वे पृथ्वी की सतह की सटीक और विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकें।
इस लेख में हम जानेंगे कि सैटेलाइट्स कैसे चलते हैं, उनके ऑर्बिट कैसे काम करते हैं, और स्वाथ का क्या मतलब होता है।
सैटेलाइट का ऑर्बिट क्या होता है?
सैटेलाइट का ऑर्बिट वह रास्ता है जो वह पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते समय तय करता है। ऑर्बिट का चयन उस सैटेलाइट के उद्देश्यों और उसके भीतर लगे सेंसर पर निर्भर करता है। ऑर्बिट की ऊंचाई, पृथ्वी के साथ उसका रुख और घूमने का तरीका – ये सभी बातें उसे खास बनाती हैं।
जियोस्टेशनरी ऑर्बिट: एक ही जगह पर स्थिर रहने वाला सैटेलाइट
जियोस्टेशनरी सैटेलाइट (Geostationary Satellite) पृथ्वी से लगभग 36,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित होते हैं और पृथ्वी की गति के साथ समान गति से घूमते हैं। इस कारण से ये एक ही स्थान पर स्थिर प्रतीत होते हैं।
उपयोग:
- मौसम पूर्वानुमान (Weather forecasting)
- संचार (Telecommunication)
- एक ही क्षेत्र की लगातार निगरानी
इन सैटेलाइट्स की ऊँचाई इतनी ज्यादा होती है कि ये पूरे गोलार्ध (hemisphere) को एक साथ देख सकते हैं।
उदाहरण:
- INSAT Series (भारत के मौसम सैटेलाइट्स)
- GOES (अमेरिका का मौसम सैटेलाइट)


पहला चित्र दिखाता है कि कैसे जियोस्टेशनरी सैटेलाइट पृथ्वी के भूमध्य रेखा के ऊपर स्थिर रहता है, जिससे वह एक ही क्षेत्र की निरंतर निगरानी कर सकता है। दूसरा चित्र सैटेलाइट की ध्रुवीय कक्षा को दर्शाता है, जो पृथ्वी के उत्तर और दक्षिण ध्रुवों के ऊपर से गुजरती है, जिससे वह समय के साथ पूरी पृथ्वी की सतह को कवर कर सकता है।
नियर-पोलर ऑर्बिट (Near-Polar Orbit): पूरी पृथ्वी की कवरिंग
कई सैटेलाइट्स ऐसे ऑर्बिट में चलते हैं जो उत्तर और दक्षिण ध्रुव के बीच जाते हैं। इन्हें नियर-पोलर ऑर्बिट कहा जाता है। इस ऑर्बिट में सैटेलाइट पृथ्वी के घूमने के कारण हर दिन नए क्षेत्र को कवर कर पाता है।
सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (Sun-Synchronous Orbit)
इन ऑर्बिट्स का एक खास प्रकार होता है जिसे सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट कहते हैं। इसका मतलब है कि सैटेलाइट किसी क्षेत्र को हर बार एक ही लोकल सन टाइम (स्थानीय सूर्य समय) पर स्कैन करता है।
फायदा:
- समान रोशनी की स्थिति में तस्वीरें
- साल-दर-साल तुलना आसान
- परिवर्तन को पहचानना आसान (जैसे जंगलों की कटाई या बाढ़ का असर)
उदाहरण:
- Landsat series (अमेरिका)
- Resourcesat-2 (भारत)
- Sentinel-2 (यूरोपियन यूनियन का सैटेलाइट)
नियर-पोलर सैटेलाइट जैसे-जैसे ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं, उनके स्वाथ आपस में ओवरलैप करने लगते हैं। इसका मतलब है कि:
- ध्रुवीय क्षेत्र (जैसे अंटार्कटिका, आर्कटिक) — रोज़ाना कई बार स्कैन हो सकते हैं
- विषुवतीय क्षेत्र (Equator) — कम बार स्कैन होते हैं
उपयोग:
- ग्लेशियरों की निगरानी
- ध्रुवीय बर्फ पिघलने का अध्ययन
असेंडिंग और डिसेंडिंग पास (Ascending/Descending Pass)
जब सैटेलाइट उत्तर दिशा में जाता है तो उसे Ascending Pass कहते हैं, और जब दक्षिण की ओर आता है तो Descending Pass। सूरज की रोशनी केवल डिसेंडिंग पास के दौरान होती है, इसलिए अधिकतर तस्वीरें उसी समय ली जाती हैं।
लेकिन कुछ खास सेंसर — जैसे Active Sensors जो खुद रोशनी भेजते हैं, या Thermal Sensors जो गर्मी को रिकॉर्ड करते हैं — वे असेंडिंग पास में भी जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं।
स्वाथ (Swath) क्या होता है?
सैटेलाइट जब पृथ्वी के ऊपर से गुजरता है, तो वह एक निश्चित क्षेत्र को अपने कैमरे में कैद करता है। इस क्षेत्र को स्वाथ (Swath) कहा जाता है।

स्वाथ की चौड़ाई:
- कुछ सैटेलाइट: 0–50 किमी (उदाहरण: Cartosat – हाई रिज़ॉल्यूशन इमेजरी)
- कुछ सैटेलाइट: 100–1000 किमी (उदाहरण: MODIS – लो रिज़ॉल्यूशन लेकिन बड़ा क्षेत्र)
उदाहरण MODIS सैटेलाइट एक बार में लगभग 2,330 किमी चौड़ाई का क्षेत्र स्कैन कर सकता है। यानी एक ही पास में आधे भारत की तस्वीर मिल सकती है।
जैसे-जैसे पृथ्वी घूमती है और सैटेलाइट नई जगहों से गुजरता है, यह हर दिन नए क्षेत्रों की तस्वीरें ले पाता है।
ऑर्बिट साइकिल और रिविज़िट पीरियड
- जब सैटेलाइट दोबारा किसी स्थान के ऊपर से होकर गुजरता है, तो इसे एक ऑर्बिट साइकिल कहते हैं।
- लेकिन रिविज़िट पीरियड वह समय है जब वह किसी क्षेत्र की दोबारा तस्वीर लेता है। यह ऑर्बिट साइकिल से कम भी हो सकता है अगर सैटेलाइट का सेंसर ‘ऑफ-नादिर’ (यानि सीधे नीचे नहीं बल्कि किनारे की ओर) देखने की क्षमता रखता है।
उदाहरण के लिए Cartosat-2 का रिविज़िट टाइम 4-5 दिन है, लेकिन स्टीयरिंग की वजह से किसी क्षेत्र की रोज़ तस्वीरें भी ली जा सकती हैं — ये खासकर आपदा के समय, जैसे बाढ़ या भूस्खलन में काम आता है।
जैसे बाढ़, तेल फैलाव या वन्य जीवों की निगरानी में, कम रिविज़िट टाइम बहुत फायदेमंद होता है।
ध्रुवीय क्षेत्रों की खासियत
नियर-पोलर ऑर्बिट में चलने वाले सैटेलाइट्स ध्रुवीय क्षेत्रों को अधिक बार स्कैन कर पाते हैं क्योंकि वहां स्वाथ आपस में ज्यादा ओवरलैप होते हैं। इसलिए ध्रुवीय क्षेत्रों की तस्वीरें अधिक बार ली जाती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
सैटेलाइट की ऑर्बिट और स्वाथ समझना रिमोट सेंसिंग की दुनिया में एक अहम कदम है। ये जानकारियाँ हमें यह समझने में मदद करती हैं कि कौन सा सैटेलाइट कब, कहाँ और कैसे पृथ्वी की निगरानी करता है। मौसम पूर्वानुमान से लेकर आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण तक — हर क्षेत्र में यह जानकारी बेहद मूल्यवान है।
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FAQs
सैटेलाइट की ऑर्बिट वह पथ होता है, जिस पर वह पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। यह ऊँचाई, गति और दिशा के आधार पर अलग-अलग हो सकता है।
जियोस्टेशनरी ऑर्बिट वह होती है जिसमें सैटेलाइट लगभग 36,000 किमी ऊँचाई पर पृथ्वी के घूर्णन के साथ ही घूमता है, जिससे वह पृथ्वी के एक ही स्थान के ऊपर स्थिर दिखाई देता है।
सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट वह कक्षा होती है जिसमें सैटेलाइट हर दिन एक ही स्थान से एक ही स्थानीय सौर समय पर गुजरता है। इससे इमेजिंग में प्रकाश की स्थितियाँ समान रहती हैं, जो तुलना और विश्लेषण के लिए जरूरी होती है।