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विश्व में आर्थिक विकास का प्रतिरूप (World Pattern of Economic Development)

इस लेख में हम विश्व में आर्थिक विकास के प्रतिरूप (World Pattern of Economic Development) को जानने के साथ-2 इसके अर्थ, मापन के प्रमुख सूचकांकों, इसको प्रभावित करने वाले कारकों, विश्व की अर्थव्यवस्थाओं के वर्गीकरण एवं आर्थिक विकास की समकालीन प्रवृत्तियों के बारे में भी जानेंगे।

World Pattern of Economic Development
World Pattern of Economic Development

आर्थिक विकास का अर्थ (Meaning of Economic Development)

आर्थिक विकास एक सतत प्रक्रिया है जिसमें किसी देश की आर्थिक स्थिति, सामाजिक ढांचा, जीवन स्तर और मानव संसाधनों में समग्र रूप से सुधार होता है। यह केवल आर्थिक वृद्धि (Economic Growth) तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें जीवन की गुणवत्ता (Quality of Life) में भी व्यापक सुधार को शामिल किया जाता है। 

इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, तकनीकी प्रगति, सामाजिक समानता और पर्यावरणीय संतुलन जैसे घटकों को भी शामिल किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, एक ऐसा देश जिसकी GDP बहुत अधिक हो, लेकिन यदि वहां की अधिकांश जनसंख्या स्वास्थ्य सुविधाओं या शिक्षा से वंचित है, तो उसे पूर्णतः विकसित नहीं कहा जा सकता। इसलिए आर्थिक विकास का मापन बहुआयामी सूचकों से किया जाता है।

आर्थिक विकास के मापन के प्रमुख सूचकांक (Key Indicators of Economic Development)

विकास को सही ढंग से समझने और तुलनात्मक अध्ययन के लिए कुछ सूचकांकों का ज्ञान होना आवश्यक हैं, जिनमे से प्रमुख सूचकांकों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है:

  • GDP per capita (प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद): यह किसी देश की कुल आय को उसकी जनसंख्या से विभाजित करके निकाला जाता है। यह बताता है कि औसतन हर व्यक्ति को कितनी आय प्राप्त हो रही है।
  • HDI (Human Development Index): यह सूचकांक संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा तैयार किया गया एक मानक है जो जीवन प्रत्याशा, औसत शिक्षा वर्ष, और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर देशों को रैंक करता है।
  • Gini Index: यह आय असमानता को मापने का एक उपकरण है। इसका स्केल 0 से 100 तक होता है, जहां 0 पूर्ण समानता और 100 पूर्ण असमानता को दर्शाता है।
  • Poverty Rate: किसी देश की वह जनसंख्या जो न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ है, उसे निर्धनता रेखा के नीचे माना जाता है।
  • Employment Structure: यह दर्शाता है कि कितनी आबादी कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों में कार्यरत है। अधिक विकसित देशों में सेवा क्षेत्र का योगदान अधिक होता है, जबकि अविकसित देशों में कृषि पर निर्भरता अधिक रहती है।
  • Infrastructure Index: इसमें सड़कों, बिजली, जल, संचार और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता शामिल होती है, जो आर्थिक गतिविधियों को सीधे प्रभावित करती है।

विश्व की अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण (Classification of World Economies)

विश्व की अर्थव्यवस्थाएं उनके विकास के स्तर पर आधारित विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाती हैं:

विकसित देश (Developed Countries)

इन देशों में उच्च जीवन स्तर, उत्कृष्ट बुनियादी ढांचा, तकनीकी प्रगति और सामाजिक सुरक्षा की मजबूत व्यवस्था होती है। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या सेवा क्षेत्र में कार्यरत होती है। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं सभी तक उपलब्ध हैं। जैसे-जैसे ये देश औद्योगीकरण से डिजिटल और सेवा अर्थव्यवस्था की ओर बढ़े, उनका जीवन स्तर भी ऊँचा होता गया।
उदाहरण: अमेरिका, जर्मनी, जापान।

विकासशील देश (Developing Countries)

ये वे देश हैं जो औद्योगीकरण और सामाजिक सुधार की प्रक्रिया में हैं। यहाँ एक ओर उच्च विकास दर दिखाई देती है, वहीं दूसरी ओर गरीबी, बेरोजगारी और असमानता जैसी समस्याएं भी बनी रहती हैं। इन देशों में आर्थिक प्रगति असमान रूप से होती है – शहरी क्षेत्र तेज़ी से बढ़ते हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र पीछे छूट जाते हैं।
उदाहरण: भारत, ब्राज़ील, इंडोनेशिया।

अविकसित देश (Underdeveloped Countries)

इन देशों में आर्थिक गतिविधियों का केंद्र कृषि होता है, औद्योगीकरण बहुत सीमित होता है और प्रति व्यक्ति आय बेहद कम होती है। सामाजिक सूचकांकों में ये देश पिछड़े होते हैं और इन्हें अक्सर अंतरराष्ट्रीय सहायता की आवश्यकता होती है।
उदाहरण: नाइजर, हैती, अफगानिस्तान।

उभरती अर्थव्यवस्थाएँ (Emerging Economies)

ये देश आर्थिक रूप से तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं और वैश्विक निवेश के लिए आकर्षण का केंद्र बनते जा रहे हैं। इनमें आधुनिक उद्योगों और तकनीक का प्रवेश हो चुका है। ये देश अक्सर दोहरी चुनौतियों का सामना करते हैं – एक ओर तीव्र विकास, दूसरी ओर सामाजिक असमानता।
उदाहरण: चीन, भारत, वियतनाम।

विश्व में आर्थिक विकास का स्थानिक स्वरूप (Spatial Pattern of Economic Development in the World)

उत्तरी-दक्षिणी विभाजन (North-South Divide)

विश्व में आर्थिक असमानता को समझने का पारंपरिक तरीका यह है कि उत्तरी गोलार्ध के विकसित देश (Global North) और दक्षिणी गोलार्ध के विकासशील/अविकसित देश (Global South) को दो अलग खेमों में देखा जाता है।

  • Global North: इसमें अमेरिका, कनाडा, यूरोप, जापान जैसे उच्च तकनीक, उद्योग-प्रधान, समृद्ध देश आते हैं। इन देशों में प्रति व्यक्ति आय, HDI और जीवन स्तर ऊँचा होता है।
  • Global South: इसमें अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देश आते हैं, जहाँ गरीबी, असमानता और अवसंरचना की कमी आम है।

विशेषता: यह विभाजन केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर आधारित है।

कोर-पेरिफेरी मॉडल (Core-Periphery Model)

यह मॉडल बताता है कि दुनिया में कुछ “कोर” (Core) क्षेत्र आर्थिक रूप से अत्यधिक विकसित हैं जबकि बाकी “पेरिफेरी” (Periphery) क्षेत्र इन कोर क्षेत्रों पर निर्भर रहते हैं। कोर क्षेत्रों में पूंजी, तकनीक और मानव संसाधन का अधिकतम संकेंद्रण होता है, जबकि पेरिफेरी क्षेत्रों में संसाधन होते हुए भी विकास धीमा होता है।

भागविशेषताएंउदाहरण
Coreउच्च तकनीकी विकास, पूंजी का संचय, वैश्विक नियंत्रणअमेरिका, जर्मनी, जापान
Peripheryसंसाधनों की आपूर्ति, निम्न तकनीक, अस्थिर शासनउप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया

Core क्षेत्रों में नवाचार, शोध एवं सेवा क्षेत्र प्रमुख हैं, जबकि Periphery क्षेत्रों में श्रम आधारित प्राथमिक गतिविधियाँ (agriculture, mining) अधिक हैं।

महाद्वीपवार स्थानिक विकास प्रतिरूप

एशिया:

  • पूर्वी एशिया (चीन, जापान, दक्षिण कोरिया): औद्योगिक विकास अत्यंत तीव्र, निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था।
  • दक्षिण एशिया (भारत, बांग्लादेश): मिश्रित विकास – सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि और सेवा क्षेत्र में विकास, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में पिछड़ापन।
  • मध्य एशिया और दक्षिण-पश्चिम एशिया: तेल और गैस आधारित अर्थव्यवस्थाएं।

अफ्रीका:

  • समृद्ध खनिज संसाधनों के बावजूद, अधिकांश देश आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। कारण हैं: उपनिवेशवाद की विरासत, भ्रष्टाचार, गरीबी, शिक्षा की कमी।
  • कुछ अपवाद जैसे दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया (तेल आधारित) अपेक्षाकृत आगे हैं।

यूरोप:

  • पश्चिमी यूरोप में अत्यधिक आर्थिक विकास (जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन)।
  • पूर्वी यूरोप में शीत युद्ध के बाद पुनर्निर्माण, परंतु विकास की गति धीमी (यूक्रेन, बेलारूस)।

उत्तर अमेरिका:

  • अमेरिका और कनाडा: सेवा और तकनीक आधारित अत्यधिक विकसित अर्थव्यवस्थाएं।
  • उच्च शहरीकरण, नवाचार और वैश्विक व्यापार में अग्रणी।

लैटिन अमेरिका:

  • ब्राज़ील, मेक्सिको जैसे देश उभरती अर्थव्यवस्थाएं हैं, परंतु असमानता, भ्रष्टाचार और सामाजिक समस्याएं बनी हुई हैं।

ऑस्ट्रेलिया और ओशिनिया:

  • ऑस्ट्रेलिया: अत्यधिक विकसित, प्राकृतिक संसाधनों और सेवा क्षेत्र पर आधारित।
  • अन्य द्वीपीय देश: सीमित संसाधन, पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था।

उभरते क्षेत्रीय केंद्र (Emerging Regional Hubs)

  • एशियाई टाइगर्स (Asian Tigers): दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर, हांगकांग – उच्च निर्यात, शिक्षा और तकनीक आधारित विकास।
  • BRICS देश: ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका – वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहे हैं।

शहरी-ग्रामीण विभाजन (Urban-Rural Divide)

  • अधिकांश विकास शहरी केंद्रों में सिमट रहा है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सेवाओं की कमी, कृषि पर निर्भरता, और अवसरों की अनुपस्थिति विकास को सीमित कर रही है।

डिजिटल असमानता (Digital Divide)

  • विकसित देशों में इंटरनेट, AI, automation तेजी से बढ़ रहा है।
  • अविकसित देशों में डिजिटल सुविधाएं सीमित, जिससे आर्थिक भागीदारी कम।

आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Economic Development)

भौतिक कारक (Physical Factors)

  • जलवायु: चरम जलवायु वाले क्षेत्र जैसे सहारा, अंटार्कटिका, विकास के लिए प्रतिकूल होते हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन: खनिज, जल, भूमि आदि यदि सही नीति के साथ उपयोग किए जाएं तो विकास को गति मिलती है।
  • स्थान: बंदरगाह वाले देश या रणनीतिक स्थान पर बसे देश जैसे सिंगापुर को व्यापार में लाभ मिलता है।

मानवीय और राजनीतिक कारक (Human and Political Factors)

  • शिक्षा: ज्ञान और कौशल किसी भी अर्थव्यवस्था के आधार स्तंभ होते हैं।
  • राजनीतिक स्थिरता: राजनीतिक संकट या अस्थिरता निवेश और विकास दोनों में रुकावट लाते हैं।
  • नीतियां: अर्थव्यवस्था को खुला बनाना (Liberalization), निवेश को बढ़ावा देना, रोजगार उन्मुख योजनाएं बनाना – ये सब विकास को प्रभावित करते हैं।

वैश्वीकरण (Globalization)

दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं आज परस्पर जुड़ी हुई हैं। व्यापार, निवेश, तकनीक और जनशक्ति का आदान-प्रदान वैश्विक स्तर पर हो रहा है। इससे विकास के अवसर बढ़े हैं, लेकिन असमानता और सांस्कृतिक खतरे भी सामने आए हैं।

तकनीकी छलांग (Leapfrogging)

कई विकासशील देशों ने तकनीकी विकास की सीढ़ियों को लांघते हुए सीधे आधुनिक तकनीकों को अपनाया है। जैसे अफ्रीका में पारंपरिक बैंकिंग को छोड़कर मोबाइल बैंकिंग अपनाई गई।

सतत विकास (Sustainable Development)

आज विकास की योजना पर्यावरणीय संतुलन के साथ बनाई जाती है। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत, कार्बन कटौती, और हरित नीति की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।

तुलनात्मक विश्लेषण (Comparative Table)

देशGDP/व्यक्तिHDIप्रमुख क्षेत्रचुनौतियाँ
अमेरिका$83,0000.92सेवा और तकनीक आधारितअसमानता, स्वास्थ्य प्रणाली महंगी
भारत$2,8500.63कृषि, सेवागरीबी, आधारभूत ढांचे की कमी
चीन$13,5000.76निर्माण और निर्यातप्रदूषण, जनसंख्या वृद्धावस्था
नाइजीरिया$2,4000.54कच्चा तेल, कृषिभ्रष्टाचार, शिक्षा व स्वास्थ्य समस्या

निष्कर्ष (Conclusion)

विश्व में आर्थिक विकास का प्रतिरूप बहुआयामी, विषम और जटिल है। एक ओर जहाँ कुछ देश अत्यंत विकसित हैं, वहीं दूसरी ओर बहुत से देश बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस विषमता को दूर करने के लिए वैश्विक सहयोग, शिक्षा, तकनीकी हस्तांतरण, और सतत विकास की रणनीतियों को अपनाना आवश्यक है। आर्थिक विकास तभी सार्थक होगा जब वह समावेशी (inclusive), सतत (sustainable) और समान (equitable) हो।

विश्व में आर्थिक विकास के प्रतिरूप (World Pattern of Economic Development) के ऊपर लिखा यह लेख आपको कैसा लगा, आप अपनी राय अवश्य दे, ताकि हम इसमें अपेक्षित सुधार कर सकें।

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