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वेबर के औद्योगिक अवस्थिति मॉडल की आलोचना (उदाहरणों सहित) | Criticism of Weber’s industrial location model

Estimated reading time: 4 minutes

इस लेख में आप वेबर के औद्योगिक अवस्थिति मॉडल की आलोचना (Criticism of Weber’s industrial location model) को उदाहरणों सहित विस्तार से जानेंगे।

वेबर ने अपना मॉडल 1909 में प्रस्तुत किया था, जब औद्योगिकीकरण की शुरुआत हो रही थी। उस समय यह मॉडल उपयोगी था, लेकिन आज के आधुनिक, वैश्विक और तकनीकी दौर में इसकी कई सीमाएँ सामने आई हैं। आइए विस्तार से समझें:

Criticism of Weber's industrial location model
Criticism of Weber’s industrial location model

वेबर के औद्योगिक अवस्थिति मॉडल की आलोचना (उदाहरणों सहित) | Criticism of Weber’s industrial location model


1. काल्पनिक सिद्धांत (Imaginary Assumptions)

वेबर ने कुछ ऐसी कल्पनाएँ कीं जो वास्तविक दुनिया में संभव नहीं हैं।

उदाहरण

  • उन्होंने माना कि उद्योग किसी “अलग-थलग” क्षेत्र में स्थित होता है, जहाँ बाहर से कोई प्रभाव नहीं होता।
  • किन हकीकत में कोई भी क्षेत्र पूर्णतः अलग-थलग नहीं होता। हर स्थान किसी न किसी सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक नेटवर्क से जुड़ा होता है।
  • उन्होंने यह भी माना कि श्रम केवल कुछ निश्चित स्थानों पर ही मिलता है।
  • पर आज लोग एक जगह से दूसरी जगह नौकरी की तलाश में जाते हैं। जैसे – बिहार और झारखंड से लाखों लोग मुंबई और दिल्ली में काम करते हैं।

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2. अन्य जरूरी कारकों की अनदेखी

वेबर ने केवल तीन बातें मानीं – परिवहन लागत, श्रम लागत और एकत्रीकरण।

उदाहरण

  • टाटा स्टील जमशेदपुर में इसलिए नहीं है कि वहाँ सिर्फ कच्चा माल पास है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि वहाँ सरकारी समर्थन, शांति, और स्थानीय लोगों की सहमति भी थी।
  • राजनीति, संस्कृति, कानून, और सरकार की नीति जैसे कारकों को वेबर ने अनदेखा कर दिया।

3. परिवहन लागत से जुड़ी त्रुटियाँ

वेबर का मानना था कि दूरी बढ़ने से लागत भी उतनी ही बढ़ेगी, लेकिन यह हमेशा सच नहीं है।

उदाहरण:

  • अगर आप 100 किमी तक ट्रक से माल भेजते हैं, तो प्रति किलोमीटर खर्च ज़्यादा हो सकता है।
  • लेकिन अगर आप वही माल 1000 किमी रेल से भेजते हैं, तो प्रति किलोमीटर खर्च कम हो सकता है।
  • साथ ही, पहाड़ी इलाकों (जैसे – उत्तराखंड) में सड़कों पर ट्रांसपोर्ट महंगा होता है, जबकि मैदानी क्षेत्रों (जैसे – पंजाब) में सस्ता।

4. कच्चे माल का कृत्रिम विभाजन

वेबर ने कच्चे माल को दो श्रेणियों में बाँटा – सर्वत्र सुलभ और स्थान-विशिष्ट।

उदाहरण:

  • वेबर के अनुसार, जल एक सर्वत्र सुलभ सामग्री है। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि रेगिस्तानी क्षेत्रों (जैसे – राजस्थान) में पानी बहुत कम होता है।
  • साथ ही, रबर जैसे कच्चे पदार्थ केवल विशेष क्षेत्रों (जैसे – केरल) में ही मिलते हैं।
  • आजकल कच्चा माल दुनिया भर से मँगवाया जा सकता है, जिससे यह वर्गीकरण अप्रासंगिक हो गया है।

5. श्रम आपूर्ति को लेकर गलत धारणा

वेबर ने मान लिया कि श्रमिकों की संख्या अनगिनत होती है और वे केवल कुछ जगहों पर मिलते हैं।

उदाहरण:

  • पहले बंगलुरु केवल एक सामान्य शहर था। लेकिन जैसे ही IT उद्योग बढ़ा, वहाँ कुशल श्रमिक आने लगे और नया श्रम केंद्र बन गया। यह दर्शाता है कि श्रम केंद्र समय के साथ बनते और बदलते रहते हैं।

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6. बाजार केंद्र की अवधारणा गलत

वेबर ने सोचा कि हर उद्योग के लिए एक स्थायी बाजार होता है।

उदाहरण:

  • साबुन बनाने वाली कंपनी अपने माल को सिर्फ एक शहर में नहीं बेचती। वह देशभर और विदेशों तक निर्यात करती है।
  • आज एक ही उत्पाद के लिए कई बाज़ार हैं – ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों।

7. बाजार की स्थिति में बदलाव

बाजार की माँग स्थायी नहीं रहती।

उदाहरण:

  • पहले CD और DVD का बड़ा बाज़ार था, लेकिन आज डिजिटल स्ट्रीमिंग (जैसे – Netflix, YouTube) ने उसे खत्म कर दिया। 
  • बाजार बदलता है, तो उद्योगों को भी अपने स्थान बदलने या रणनीति बदलने की ज़रूरत पड़ती है।

8. पूर्ण प्रतियोगिता की मान्यता असत्य

वेबर ने मान लिया कि जहाँ लागत कम होगी, वहीं लाभ ज़्यादा मिलेगा।

उदाहरण:

  • Apple के प्रोडक्ट्स महंगे होते हैं, लेकिन फिर भी लोग खरीदते हैं क्योंकि ब्रांड वैल्यू और टेक्नोलॉजी दमदार है। लागत कम होना जरूरी नहीं कि वह हमेशा ज़्यादा लाभ दे।

9. एकत्रीकरण की अधूरी समझ

वेबर ने इसे सस्ते श्रम से जोड़ा, लेकिन यह उससे कहीं अधिक व्यापक है।

उदाहरण:

  • नोएडा, गुरुग्राम जैसे औद्योगिक क्षेत्र इसलिए विकसित हुए क्योंकि वहाँ बेहतर रोड नेटवर्क, बिजली, इंटरनेट, और हवाई अड्डे पास हैं।
  • एकत्रीकरण का कारण केवल श्रम नहीं, बल्कि सुविधाओं और संपर्क का होना है।

निष्कर्ष (Conclusion)

वेबर का मॉडल उस समय के लिए उपयोगी था, लेकिन आज की जटिल और वैश्विक दुनिया में यह अधूरा साबित होता है। आज उद्योगों की अवस्थिति कई तरह के कारकों से प्रभावित होती है और केवल लागत या श्रम के आधार पर नहीं तय होती।

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