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केंद्रीय स्थान का सिद्धांत (Central Place Theory)

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इस लेख में आप वाल्टर क्रिस्टालर केंद्रीय स्थान का सिद्धांत (Central Place Theory) एवं उसके k मूल्य सिद्धांतों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

जर्मनी के विद्वान वाल्टर क्रिस्टालर (Walter Christaller) ने सन् 1933 में केंद्रीय स्थान की अवधारणा दी। हालाँकि, उनसे पहले भी कई विद्वानों (जैसे वॉन थ्यूनेन, कोहल, कूले, हेग और मार्क जेफरसन) ने केंद्रीय स्थानों के विकास पर अपने विचार रखे थे, लेकिन क्रिस्टालर ने इसे एक स्पष्ट सिद्धांत के रूप में प्रस्तुत किया। इसीलिए उन्हें इस सिद्धांत का जनक माना जाता है।

1933 में, क्रिस्टालर ने दक्षिणी जर्मनी के केंद्रीय स्थानों पर शोध करके इस सिद्धांत को समझाया। इस सिद्धांत को समझने से पहले केंद्रीय स्थान और केंद्रीयता का मतलब जानना ज़रूरी है।

केंद्रीय स्थान (Central Place)

हर नगर का अपने आसपास के गाँवों से गहरा संबंध होता है। नगर ग्रामीण क्षेत्रों को कुछ खास सेवाएँ देता है और बदले में उनसे सहायता लेता है। इस तरह, नगर और उसके आसपास के गाँवों की ज़रूरतें पूरी होती हैं।

केंद्रीय स्थान सिर्फ लोगों का समूह नहीं, बल्कि व्यापार, उद्योग और सामाजिक सेवाओं का केंद्र भी है। इसका मुख्य उद्देश्य आसपास के इलाकों को सेवाएँ देना है। इसलिए, केंद्रीय स्थान वह बस्ती है जो अपने आसपास के क्षेत्र के लिए आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र होती है।

हर क्षेत्र में छोटे गाँव से लेकर बड़े नगर तक बस्तियाँ होती हैं। ये सभी एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं। केंद्रीय शब्द का मतलब होता है कि कुछ स्थान दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस हिसाब से, एक छोटा गाँव भी केंद्रीय स्थान हो सकता है, अगर वह अपने आसपास के इलाके की सेवा करता है।

बड़े नगर छोटे कस्बों और गाँवों से ज़्यादा सेवाएँ देते हैं और उनसे सहायता भी लेते हैं। इस तरह, केंद्रीय स्थान वह जगह है जो अपने आसपास के क्षेत्र को विभिन्न सेवाएँ प्रदान करती है। इन सेवाओं को केंद्रीय कार्य” (Central Functions) कहते हैं।

Also Read केन्द्रीय स्थानों के कार्य एवं उनके प्रकार

केंद्रीयता (Centrality)

हर केंद्रीय स्थान परिवहन के मुख्य मार्गों पर स्थित होता है और अपने आसपास के इलाके की सेवा इन्हीं मार्गों से करता है।

किसी स्थान की केंद्रीयता निम्न बातों पर निर्भर करती है:

  1. वहाँ मिलने वाली सेवाएँ
  2. उसका प्रभाव क्षेत्र
  3. वहाँ होने वाले कार्यों की संख्या और गुणवत्ता

साफ है कि बड़े नगरों की केंद्रीयता ज़्यादा होती है, जबकि छोटे कस्बों और गाँवों की कम। बड़े नगरों का प्रभाव क्षेत्र भी बड़ा होता है। (जितना बड़ा नगर, उतना बड़ा उसका प्रभाव क्षेत्र।)

क्रिस्टालर के सिद्धांत की रुपरेखा (Outline of Christaller’s Central Place Theory)

मुख्य विचार:
क्रिस्टालर ने बताया कि आदर्श रूप में हर एक केंद्रीय स्थान (नगर या बाजार) का एक वृत्ताकार प्रभाव क्षेत्र होना चाहिए, जहाँ वह लोगों को सेवाएँ (जैसे दुकानें, अस्पताल, स्कूल) प्रदान करता है। यह केंद्रीय स्थान उस वृत्त के बीच में होता है। लेकिन, अगर हम वृत्ताकार क्षेत्र मानें, तो दो समस्याएँ आती हैं:

ओवरलैप की समस्या:

  • दो केंद्रीय स्थानों के वृत्ताकार क्षेत्र आपस में ओवरलैप (छूने/काटने) लगेंगे।
  • इससे दोनों स्थानों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी, क्योंकि कुछ लोग दोनों जगहों की सेवाएँ ले सकेंगे। (चित्र (क) देखें)
    central place theory diagram 1

    खाली जगह की समस्या:

    • कुछ इलाके ऐसे भी रह जाएँगे जो किसी भी केंद्रीय स्थान के वृत्त में नहीं आएँगे।
    • वहाँ के लोगों को कोई सेवा नहीं मिल पाएगी। (चित्र (ख) देखें)

      समाधान: षट्कोण (Hexagon) आकार
      इन समस्याओं से बचने के लिए, क्रिस्टालर ने वृत्त की जगह षट्कोण (6 कोनों वाला आकार) का प्रस्ताव रखा। इसके फायदे:

      • षट्कोण एक-दूसरे को ओवरलैप नहीं करते।
      • बीच में कोई खाली जगह नहीं छूटती।
      • सभी केंद्रीय स्थान एक-समान दूरी पर होते हैं और एक जैसे आकार के क्षेत्रों को सेवा देते हैं। (चित्र (ग) देखें)

      क्रिस्टालर के अध्ययन के आधार:

      • उन्होंने यह सिद्धांत जर्मनी की बस्तियों को देखकर बनाया, लेकिन माना कि यह अमेरिका और यूरोप के कई हिस्सों पर भी लागू हो सकता है।
      • केंद्रीय स्थानों में प्रशासन, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यापार, परिवहन जैसी सेवाएँ शामिल होती हैं।
      • उन्होंने जनसंख्या, दूरी और क्षेत्र के आकार का हिसाब लगाकर यह सिद्धांत दिया।

      इस सिद्धांत के लिए जरूरी शर्तें:

      1. भूमि समतल हो (पहाड़ या नदी जैसी बाधाएँ न हों)।
      2. जनसंख्या और लोगों की आय समान रूप से फैली हो।
      3. हर दिशा में यातायात की लागत एक जैसी हो।
      4. किसी एक जगह को प्राकृतिक संसाधनों (जैसे कोयला, लकड़ी) का फायदा न मिला हो।

      इस तरह, क्रिस्टालर का सिद्धांत बताता है कि षट्कोण आकार ही सबसे सही तरीका, केंद्रीय स्थानों और उनके प्रभाव क्षेत्र को समझने का।

      क्रिस्टालर ने समझाया कि अगर किसी इलाके की जमीन एक जैसी हो और वहां बहुत लोग बसे हों, तो वहां के गाँव-नगर एक निश्चित दूरी पर होंगे और उनका सेवा क्षेत्र भी लगभग बराबर होगा। लेकिन जो केंद्र बड़े होंगे और जहां ज्यादा सुविधाएँ होंगी, उनका इलाका भी बड़ा होगा और वे छोटे केंद्रों के मुकाबले एक-दूसरे से ज्यादा दूर होंगे, हालांकि उनके बीच की दूरी एक समान होगी। 

      यानी, जैसे-जैसे किसी केंद्र पर सुविधाएँ और काम बढ़ते जाएंगे, वैसे-वैसे उनके बीच की दूरी और उनका कारोबारी इलाका भी बढ़ता जाएगा। एक बड़े केंद्र का कारोबारी इलाका छह कोनों वाला (षट्कोणीय) होगा और उसके किनारे पर छोटे केंद्र होंगे (जैसे चित्र घ में दिखाया गया है)। ये छोटे केंद्र बड़े केंद्र के प्रभाव में रहते हैं।

      central place theory diagram 2

      क्रिस्टालर ने यह भी बताया कि बिना किसी वाहन के, एक इंसान आमतौर पर एक घंटे में 3.5 किलोमीटर चल सकता है। इसलिए, दो केंद्रों के बीच की दूरी 7 किलोमीटर हो सकती है, ताकि कोई किसान एक घंटे से ज्यादा न चलना पड़े। क्रिस्टालर के अनुसार, सबसे छोटे केंद्र को “बाजार पुरवा” (Market Hamlet) कहते हैं, जिनके बीच की दूरी 7 किलोमीटर होती है। 

      यह अपने षट्कोणीय बाजार क्षेत्र के बीच में स्थित होता है। इस केंद्र की आबादी करीब 800 होती है, और उसका बाजार क्षेत्र 45 वर्ग किलोमीटर का होता है। दक्षिणी जर्मनी की औसत आबादी के हिसाब से, इस पूरे इलाके की कुल आबादी करीब 2,700 होती है।

      क्रिस्टालर ने आगे बताया कि जैसे-जैसे केंद्र बड़े होते जाते हैं, उनके बीच की दूरी भी बढ़ती जाती है और उनका सेवा क्षेत्र भी फैलता जाता है। छोटे केंद्रों के मुकाबले, बड़े केंद्रों के बीच की दूरी 3 (लगभग 1.73) गुना बढ़ जाती है। मिसाल के तौर पर, अगर बाजार पुरवा के बीच 7 किमी की दूरी है, तो अगले बड़े केंद्र “टाउनशिप सेंटर” के बीच की दूरी 7 × √3 ≈ 12 किमी होगी। इससे उनका सेवा क्षेत्र तीन गुना बढ़ जाएगा। 

      क्रिस्टालर ने यह भी बताया कि किसी इलाके में केंद्रीय स्थानों (Central Places) की संख्या सबसे बड़े केंद्र से सबसे छोटे केंद्र तक एक खास क्रम में होती है। यह क्रम 1:2:6:18:54 जैसा होता है। मतलब, अगर सबसे बड़े केंद्र की संख्या 1 है, तो सबसे छोटे केंद्रों की संख्या 54 होगी।

      क्रिस्टालर ने केंद्रीय स्थानों को इस तरह बताया है:

      1. बाजार पुरवा (Market Hamlet – Marktort):
        यह सबसे छोटा और निचले स्तर का केंद्र होता है। इसमें रजिस्ट्रार का दफ्तर, पुलिस स्टेशन, डॉक्टर, दांत का डॉक्टर, पशु डॉक्टर (कुछ जगहों पर), छोटा होटल, बैंक की शाखा, मरम्मत की दुकानें, शराब की फैक्ट्री, मुख्य डाकघर, टेलीफोन और रेलवे स्टेशन जैसी सुविधाएँ होती हैं।
      2. टाउनशिप सेंटर (Township Centre – Amtsort):
        यह निचले स्तर का प्रशासनिक केंद्र होता है, जो आमतौर पर तीन बाजार केंद्रों (पुरवा) और उनके आसपास के इलाकों को सेवाएँ देता है। ये मुख्य रेलवे लाइनों पर होते हैं और इनमें पुलिस, कोर्ट, लाइब्रेरी, प्राइमरी स्कूल, म्यूजियम, मेडिकल स्टोर, पशु हॉस्पिटल, बैंक, सिनेमा, स्थानीय अखबार, व्यापारिक संगठन और खास चीजों की दुकानें होती हैं।
      3. काउंटी सीट (County Seat – Kreistadt):
        ये 19वीं सदी में प्रशासनिक केंद्रों के रूप में विकसित हुए थे। यहाँ प्रशासन से जुड़े काम होते हैं।
      4. जिला नगर (District City – Bezirksstadt):
        ये पूरी तरह प्रशासनिक केंद्र नहीं होते, लेकिन आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। जर्मनी में इन्हें ‘Stadtchen’ (छोटा नगर) और ‘Stadt’ (नगर) कहा जाता है। इनमें जिला लेबर ऑफिस, कॉलेज, स्पेशलिस्ट डॉक्टर, कई सिनेमा हॉल, खास चीजों की दुकानें, गोदाम, दैनिक अखबार, कई बैंक और डाकघर जैसी सुविधाएँ होती हैं। ब्रिटेन में इन्हें ‘County Market Town’ कहते हैं।
      5. छोटी राज्य राजधानी (Small State Capital – Gaustadt):
        इसकी तुलना फ्रांस के छोटे प्रांतीय केंद्र से की जा सकती है। इसका नाम जर्मनी की पुरानी सामाजिक इकाई ‘Gau’ पर रखा गया है।
      6. प्रांतीय मुख्य नगर (Provincial Head City – Provinzhaupstadt):
        यह 90,000 या उससे ज्यादा आबादी वाला केंद्र होता है। इसका महत्व प्रादेशिक राजधानी को छोड़कर बाकी सभी केंद्रों से ज्यादा होता है।
      7. प्रादेशिक राजधानी नगर (Regional Capital City – Landeshauptstadt):
        यह तीन लाख या उससे ज्यादा आबादी वाला केंद्र होता है और पूरे देश की राजधानी का काम करता है। जर्मनी, इटली और स्पेन में ऐसे नगरों का बड़ा महत्व है। जर्मनी में म्यूनिख, फ्रैंकफर्ट, स्टटगार्ट और नूरेमबर्ग-फर्थ जैसे नगर इस श्रेणी में आते हैं। क्रिस्टालर ने इसे ‘Reichstadt’ (R) नाम दिया है।

      (चित्र च – गाँव, नगर और व्यापारिक क्षेत्र की सीमाओं को दिखाता है।)

      केंद्रीयता मापने के अन्य तरीके

      क्रिस्टालर के अनुसार, सिर्फ जनसंख्या ही केंद्रीयता का सूचक नहीं है। टेलीफोन, वास्तविक सेवाएँ और मोटरगाड़ियाँ भी केंद्रीयता को मापने के लिए इस्तेमाल की जा सकती हैं।

      1. टेलीफोन
        क्रिस्टालर ने दक्षिणी जर्मनी में हर हज़ार लोगों पर टेलीफोन की संख्या को केंद्रीयता का सूचक माना। उन्होंने देखा कि विकसित इलाकों (जैसे पेलेटीनेट) में टेलीफोन ज़्यादा होते हैं, जबकि कम विकसित इलाकों (जैसे बवेरियन आल्प्स) में कम। अगर टेलीफोन का इस्तेमाल ज़्यादातर व्यापार के लिए हो, तो यह केंद्रीयता का अच्छा सूचक हो सकता है। उन्होंने इसके लिए एक फॉर्मूला दिया:

      Z = (T/E) / (T₁/E₁)

      जहाँ:

      • Z = केंद्रीयता सूचकांक
      • T = स्थानीय टेलीफोनों की संख्या
      • E = स्थानीय जनसंख्या
      • T₁ = पूरे क्षेत्र के टेलीफोन
      • E₁ = पूरे क्षेत्र की जनसंख्या

      यह तरीका जर्मनी में तो कामयाब रहा, लेकिन अमेरिका में नहीं, क्योंकि वहाँ लोग टेलीफोन का इस्तेमाल घरेलू कामों के लिए भी करते हैं।

      1. वास्तविक सेवाएँ
        किसी केंद्र द्वारा दी जाने वाली सेवाएँ भी केंद्रीयता का अच्छा सूचक हो सकती हैं। हालाँकि, एडवर्ड उलमैन का मानना है कि बाहरी इलाकों से आने वाले व्यापार के बारे में जानकारी जुटाना मुश्किल है। एक आसान तरीका यह है कि अगर हम जान लें कि किसी खास सेवा के कितने ग्राहक हैं, तो अतिरिक्त सेवाओं को केंद्रीयता का सूचक माना जा सकता है।

      डिकिन्सन ने अमेरिकी नगरों में प्रति व्यक्ति थोक व्यापार को केंद्रीयता का सूचक माना।

      1. मोटरगाड़ियाँ
        अगर हम जान लें कि बाहर से कितनी गाड़ियाँ किसी नगर में आती हैं, तो उसकी केंद्रीयता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

      इस तरह, जनसंख्या के अलावा भी कई चीज़ें केंद्रीयता को मापने में मदद कर सकती हैं।

      नगरीय पदानुक्रम (Urban Hierarchy)

      नगरीय पदानुक्रम क्या है?

      नगरीय पदानुक्रम का मतलब है कि नगरों को उनके आकार, सेवाओं और प्रभाव के आधार पर एक क्रम में रखना। इसमें सबसे नीचे छोटे गाँव और कस्बे होते हैं, और सबसे ऊपर बड़े महानगर या राजधानियाँ होती हैं।

      उदाहरण:

      • सबसे छोटा स्तर: गाँव/छोटा बाजार (सिर्फ रोजमर्रा की चीजें उपलब्ध कराता है)।
      • मध्यम स्तर: कस्बे/टाउन (मिडल स्कूल, छोटे अस्पताल, बैंक)।
      • उच्च स्तर: जिला मुख्यालय (बड़े अस्पताल, कॉलेज, शॉपिंग मॉल)।
      • सबसे ऊँचा स्तर: महानगर/राजधानी (विश्वविद्यालय, अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ)।

      ‘k’ मूल्य (k-value) क्या है?

      क्रिस्टालर ने नगरों के बीच संबंधों को समझाने के लिए ‘k’ मूल्य का इस्तेमाल किया।

      • k-value = एक बड़े नगर द्वारा सेवा प्राप्त करने वाले छोटे कस्बों/गाँवों की संख्या।
      • यह बताता है कि किसी बड़े नगर पर कितने छोटे नगर निर्भर हैं।

      उदाहरण:

      • अगर k=3, तो 1 बड़ा नगर 3 छोटे कस्बों को सेवाएँ देता है।
      • अगर k=4, तो 1 बड़ा नगर 4 छोटे कस्बों को सेवाएँ देता है।
      central place theory diagram 3

      क्रिस्टालर के तीन ‘k’ पदानुक्रम

      क्रिस्टालर ने तीन अलग-अलग स्थितियों के लिए ‘k’ के मूल्य बताए:

      (1) k=3 पदानुक्रम (बाजार सिद्धांत पर आधारित)

      • सिद्धांत: यह व्यापार और बाजार के नियमों पर आधारित है।
      • विशेषताएँ:
        • एक बड़ा नगर अपने आस-पास के 3 छोटे कस्बों को सेवाएँ देता है।
        • ये छोटे कस्बे बड़े नगर के षट्कोणीय (Hexagonal) सेवा क्षेत्र के कोनों पर स्थित होते हैं।
        • इसका क्रम होता है: 3, 9, 27, 81, 243,…

      गणना:

      • अगर 6 छोटे कस्बे एक बड़े नगर से जुड़े हैं, लेकिन हर कस्बा तीन अलग-अलग बड़े नगरों के बीच स्थित होता है।
      • इसलिए, प्रत्येक कस्बे का केवल 1/3 हिस्सा उस बड़े नगर पर निर्भर करता है।
      • कुल सेवा क्षेत्र = (6 × 1/3) + 1 (बड़ा नगर स्वयं) = 3

      (2) k=4 पदानुक्रम (यातायात सिद्धांत पर आधारित)

      • सिद्धांत: यह सड़कों और परिवहन के अनुसार बनता है।
      • विशेषताएँ:
        • एक बड़ा नगर 4 छोटे कस्बों को सेवाएँ देता है।
        • छोटे कस्बे दो बड़े नगरों के बीच की सड़कों पर स्थित होते हैं।
        • इसका क्रम होता है: 4, 16, 64, 256,…

      गणना:

      • अगर 6 छोटे कस्बे एक बड़े नगर से जुड़े हैं, लेकिन हर कस्बा तीन अलग-अलग बड़े नगरों के बीच स्थित होता है।
      • इसलिए, प्रत्येक कस्बे का केवल 1/2 हिस्सा उस बड़े नगर पर निर्भर करता है।
      • कुल सेवा क्षेत्र = (6 × 1/2) + 1 (बड़ा नगर स्वयं) = 4
      central place theory diagram 4

      (3) k=7 पदानुक्रम (प्रशासनिक सिद्धांत पर आधारित)

      (इसका उल्लेख मूल पाठ में नहीं था, लेकिन क्रिस्टालर ने इसे भी बताया था।)

      • सिद्धांत: यह सरकारी प्रशासन और नियंत्रण पर आधारित है।
      • विशेषताएँ:
        • एक बड़ा नगर 7 छोटे कस्बों को नियंत्रित करता है।
        • इसका क्रम होता है: 7, 49, 343,…

      गणना:

      • सभी 6 छोटे कस्बों का पूरा क्षेत्र तथा एक स्वयं वह बड़ा नगर प्रशासनिक सेवाएँ प्राप्त करेंगे।
      • कुल सेवा क्षेत्र = 6 + 1 (बड़ा नगर स्वयं) = 7

      नगरीय पदानुक्रम के महत्वपूर्ण नियम

      1. नगर का आकार बढ़ने से सेवाएँ बढ़ती हैं – जैसे-जैसे नगर की जनसंख्या बढ़ती है, वह अधिक और बेहतर सुविधाएँ देने लगता है।
      2. बड़े नगरों में विशेष सेवाएँ होती हैं – छोटे नगरों में सामान्य दुकानें होती हैं, जबकि बड़े नगरों में मल्टीप्लेक्स, बड़े अस्पताल और विश्वविद्यालय होते हैं।
      3. यातायात का प्रभाव – जहाँ बेहतर सड़कें और रेलवे होते हैं, वहाँ नगर तेजी से विकसित होते हैं।
      4. जनसंख्या और माँग का असर – अगर किसी सेवा (जैसे अस्पताल) के लिए पर्याप्त लोग नहीं हैं, तो वह सेवा वहाँ नहीं खुलती।

      केन्द्रीय स्थान सिद्धांत की आलोचना (Criticism of Central Place Theory)

      एडवर्ड उलमैन ने कहा है कि कुछ स्थानीय कारणों से केन्द्रीय स्थान सिद्धांत में गड़बड़ी आ जाती है, जैसे कि औद्योगिक केंद्रीकरण और यातायात। क्रिस्टालर ने भी माना कि यातायात एक रेखीय कारक है, न कि पूरे क्षेत्र को प्रभावित करने वाला। कई जगहों पर, महत्वपूर्ण यातायात मार्गों के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर केन्द्रीय स्थान बन जाते हैं, और उनका सेवा क्षेत्र षट्कोणीय (hexagonal) न होकर मार्ग के समकोण पर फैला होता है। अमेरिका के इलिनॉयस राज्य में देखा गया कि सेवा क्षेत्र यातायात मार्ग के समानांतर फैले हुए हैं।

      बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में संसाधनों और यातायात के कारण इतना विकास हो जाता है कि इस सिद्धांत का महत्व कम हो जाता है, हालाँकि जर्मनी के रूर और कोलोन जैसे इलाकों में यह कुछ हद तक लागू होता है।

      यातायात और उद्योग के अलावा, मिट्टी की उपजाऊ शक्ति, कृषि का प्रकार, ज़मीन की बनावट और सरकारी नीतियाँ भी केन्द्रीय स्थानों के षट्कोणीय सेवा क्षेत्र को बदल देती हैं।

      यह सिद्धांत स्थिर नहीं है—समय और परिस्थितियों के साथ बदलता रहता है। यातायात के साधनों के विकास से इस पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। अच्छी सड़कें छोटे केंद्रों को और छोटा तथा बड़े केंद्रों को और बड़ा बना देती हैं, जिससे उनके सेवा क्षेत्र बदल जाते हैं। जहाँ रेल की जगह सड़कों का विकास होता है, वहाँ नगरीय केंद्र इतने पास-पास बन जाते हैं कि षट्कोणीय व्यवस्था खत्म हो जाती है।

      क्रिस्टालर ने इस सिद्धांत को लागू करने की पूरी कोशिश की, लेकिन यह हर जगह सही नहीं उतरा। बोबेक ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि जर्मनी और इंग्लैंड की दो-तिहाई आबादी नगरों में रहती है, लेकिन जर्मनी में केवल एक-तिहाई नगर ही केन्द्रीय स्थान के रूप में विकसित हैं। बाक़ी या तो औद्योगिक नगर हैं या किसानों द्वारा बसाए गए गाँव। उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया में अपवाद मिलना आम बात है, जैसे हिन्द-चीन के टोंकिन डेल्टा में सिर्फ गाँव ही मिलते हैं। लंदन, रोटरडम और सिंगापुर जैसे व्यापारिक बंदरगाह भी इस सिद्धांत के अपवाद हैं।

      हालाँकि, बोबेक ने यह भी माना कि इस सिद्धांत का अपना महत्व है और यह कुछ क्षेत्रों पर लागू होता है। अगर क्रिस्टालर के पास बेहतर आँकड़े होते, तो वे इसे और अच्छे से समझा पाते।

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