इस लेख में आप पर्यावरण अध्ययन के महत्व (Paryavaran Adhyayan Ka Mahatva) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
पृथ्वी के निवासी होने के कारण, हमारा कार्य करने का तरीका इस उपग्रह और इसके निवासियों पर प्रभाव डालता है। चक्रवात, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्रमुख आपदाएँ हमारे पर्यावरण को अत्यधिक प्रभावित करती हैं। मानवीय गतिविधियाँ जैसे पर्यावरण में प्रदूषण का प्रभाव, वनों की कटाई और नदियों पर बांधों का निर्माण हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। औद्योगीकरण, शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।
पर्यावरण अध्ययन वह विज्ञान है जिसके माध्यम से मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन किया जाता है। यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग कैसे किया जाए और पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान कैसे निकाला जाए। पर्यावरण अध्ययन के अंतर्गत पारिस्थितिकी तंत्र, जैव विविधता, प्रदूषण नियंत्रण, प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जाती है।
वर्तमान सदी में जीवन को बनाए रखने के लिए पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखना आवश्यक है। यह तभी संभव है जब हम सभी पर्यावरण अध्ययन के महत्व (Paryavaran Adhyayan Ka Mahatva) को समझें और उसके अनुरूप कार्य करें। हमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना चाहिए, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाना चाहिए, वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण के उपाय अपनाने चाहिए। साथ ही, जल, वायु और भूमि के संरक्षण के लिए प्रभावी योजनाएँ बनानी चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सके।
केशविन आर0 कॉक्स ने अपनी पुस्तक ‘पर्यावरणीय गुणवत्ता का भूगोल’ में स्वस्थ पर्यावरण के निम्न आधार बताए हैं:
- पर्यावरण में किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होना चाहिए।
- पर्यावरण स्वास्थ्यवर्धक होना चाहिए।
- पर्यावरण में प्राकृतिक संतुलन की संभावना हो।
- पर्यावरण में मनोरंजन की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।
- पर्यावरण में उत्तम आवास की व्यवस्था हो।
- पर्यावरण में शिक्षा की सुविधा हो।
- पर्यावरण में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध हों।
- प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
- पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बनाए रखा जाए।
- जैव विविधता की रक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएँ।
स्वस्थ पर्यावरण के अंतर्गत किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं पाया जाता, लेकिन पर्यावरण के जैविक और अजैविक घटकों की संतुलित अवस्था प्रभावित होने और अवांछित तत्वों के प्रवेश से पर्यावरणीय गुणवत्ता में ह्रास होना प्रारंभ हो जाता है। यह समस्या पर्यावरण प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, तापीय प्रदूषण, जनसंख्या प्रदूषण और मानसिक प्रदूषण के रूप में हमारे सामने आती है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार, समाज और प्रत्येक व्यक्ति को मिलकर प्रयास करने होंगे। पर्यावरण संरक्षण हेतु नीति-निर्माण, जन-जागरूकता कार्यक्रम, पुनर्चक्रण और हरित प्रौद्योगिकियों का विकास आवश्यक है। केवल सामूहिक प्रयासों से ही हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित और समृद्ध बना सकते हैं।