इस लेख में आप पर्यावरण अध्ययन का विस्तार एवं विषय क्षेत्र (Paryavaran Adhyayan ka Vistar evm Vishsy Kshetra) के बारे में विस्तार से जानेंगे।

पर्यावरण अध्ययन का विस्तार (Paryavaran Adhyayan ka Vistar)
पर्यावरण अध्ययन एक बहुआयामी विषय है जो पारिस्थितिकी, पर्यावरण विज्ञान, भूगोल, मानव जाति विज्ञान, जीव विज्ञान, अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, योजना, प्रदूषण नियंत्रण, प्राकृतिक संसाधनों और उनके प्रबंधन को समाहित करता है। यह अध्ययन हमारे परिवेश को समझने और उसके संरक्षण के लिए आवश्यक जागरूकता पैदा करने पर केंद्रित है।
पर्यावरण किसी भी जीव के जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करता है। जीवों की उत्तरजीविता उनके पर्यावरण से मिलने वाली सामग्री और अपशिष्ट निपटान पर निर्भर होती है। आज के समय में पर्यावरणीय संतुलन में गिरावट मानव अस्तित्व के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है। मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण जीवन के लिए संकट उत्पन्न कर रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों की कमी भी चिंता का विषय है।
पर्यावरण अध्ययन का मुख्य उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करना है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- पर्यावरण और उससे जुड़ी समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाना।
- लोगों को पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित करना।
- पर्यावरणीय समस्याओं की पहचान और उनके समाधान हेतु कौशल विकसित करना।
- प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की सोच विकसित करना।
- पर्यावरणीय योजनाओं का सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन करना।
पर्यावरण अध्ययन के विषय क्षेत्र (Paryavaran Adhyayan ka Vishsy Kshetra)
पर्यावरण अध्ययन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, जिसमें सूक्ष्म पारिस्थितिकी तंत्र से लेकर वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय मुद्दों का अध्ययन किया जाता है। इसमें चार प्रमुख घटक शामिल हैं:
- स्थल मंडल: इसमें पृथ्वी की भूपर्पटी, पर्वत, मिट्टी, चट्टानें, भू-आकृतियाँ, भूजल स्रोत और प्राकृतिक संसाधन शामिल होते हैं। यह पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण घटक है जो जीवन को सीधे प्रभावित करता है। इसकी औसत मोटाई लगभग 35 किलोमीटर मानी जाती है।
- जल मंडल: इसमें पृथ्वी पर उपलब्ध सभी जल स्रोत जैसे समुद्र, नदियाँ, झीलें, तालाब, कुएँ, और भूमिगत जल शामिल होते हैं। जल जीवन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है और इसका स्थल मंडल से अनुपात 7:3 है।
- वायुमंडल: यह पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए गैसीय आवरण है, जिसमें ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, हीलियम और ओजोन गैसें पाई जाती हैं। यह कई परतों में विभाजित होता है – क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल और आयनमंडल।
- जैव मंडल: यह पृथ्वी का वह भाग है जहाँ जीवन संभव है। यह स्थल मंडल, जल मंडल और वायुमंडल के मिश्रण से बनी एक पतली परत होती है, जिसकी औसत मोटाई भू-पर्पटी से लगभग 7 किलोमीटर तक होती है।
पर्यावरण अध्ययन के अंतर्गत निम्नलिखित विषयों को शामिल किया जाता है:
- पर्यावरणीय घटकों का स्थानीय और वैश्विक स्तर पर अध्ययन।
- प्राकृतिक संसाधनों और उनकी कमी से उत्पन्न समस्याओं का विश्लेषण।
- जैव विविधता का संरक्षण, संकटग्रस्त प्रजातियों का अध्ययन और उनका वर्गीकरण।
- जल, वायु, भूमि, ध्वनि, रेडियोधर्मी और समुद्री प्रदूषण का प्रभाव।
- पर्यावरण प्रबंधन की नीतियाँ और उनके विभिन्न पहलू।
- पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से जागरूकता बढ़ाना।
- विभिन्न देशों की पर्यावरणीय स्थिति और समस्याओं का तुलनात्मक अध्ययन।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और प्रयासों का विश्लेषण।
- संसाधनों के अनियंत्रित उपयोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव और सतत विकास की अवधारणा।
- जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों की नीति और उनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु सुझाव।
- औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन।
- पर्यावरणीय गिरावट के विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव का विश्लेषण।
- मानव और पर्यावरण के आपसी संबंधों का अध्ययन।
- पर्यावरण संरक्षण में आमजन, महिलाओं और गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का अध्ययन।
- वर्तमान वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं और उनके समाधान के संभावित उपायों का अध्ययन।
निष्कर्ष
पर्यावरण अध्ययन, पर्यावरण के विभिन्न घटकों, पर्यावरणीय समस्याओं और उनके मानव जीवन एवं पारिस्थितिकी पर प्रभावों, पर्यावरण संरक्षण हेतु तकनीकों, नीतियों और कानूनों का समावेश करता है। यह विषय प्रकृति और मानव जीवन से जुड़े लगभग सभी क्षेत्रों को कवर करता है, जिससे सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सार्थक प्रयास किए जा सकते हैं।