प्राचीन भारत में खगोलीय ज्ञान (Astronomical Knowledge in Ancient India)
भारत के प्राचीनतम ग्रंथों ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के अनेक मंत्रों में सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी के पारस्परिक सम्बंधों, ऋतु परिवर्तनों, दिन-रात्रि की क्रमिक आवृत्ति आदि के विवरण मिलते हैं। इन ग्रंथों 27 नक्षत्रों (शिरा, कृतिका, चित्रा आदि), विषुव दिन आदि के उल्लेख भी अनेक मंत्रों में पाये जाते है। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में ब्रह्मांड और पृथ्वी की उत्पत्ति, चन्द्र कलाओं, सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण, ऋतु परिवर्तन, सौर वर्ष, सौर मास, चान्द्र मास, चान्द्र वर्ष, दिन-रात की अवधि आदि की यथार्थ गणना और व्याख्या की गयी है।
प्राचीन भारत के भूगोलवेत्ता (Geographers of Ancient India)
विश्व का प्रचीनतम ज्ञान भारतीय ग्रंथों में मिलता है। रामायण और महाभारत काल से लेकर बारहवीं शताब्दी तक अनेक भारतीय विद्वानों ने विभिन्न भौगोलिक पक्षों का वर्णन अपने-अपने ग्रंथों में किया है। प्राचीन काल में भूगोल नाम का कोई अलग विषय नहीं था किन्तु धरातलीय तथा आकाशीय पिण्डों से सम्बंधित अध्ययन क्षेत्र शास्त्र के रूप में प्रचलित था।