मिट्टी की विशेषता तथा ढाल के आधार पर इसको भाबर मैदान, तराई मैदान, बांगर मैदान, खादर मैदान व डेल्टा मैदान में वर्गीकृत गया है।
यह शिवालिक के दक्षिण में स्थित है तथा इसका विस्तार पश्चिम से पूर्व दिशा में सिंधु नदी से तिस्ता नदी तक है। इसकी चौड़ाई सामान्यतया 8 से 16 कि.मी. है तथा यह हिमालय और शिवालिक से निकलने वाली नदियों द्वारा निक्षेपित कंकड़ और बजरी के मिश्रित अवसादों से निर्मित हुआ है।
1भाबर की सरंध्रता (porosity) इतनी अधिक है कि छोटी नदियां (‘चोस’ एवं ‘राओस’) इस क्षेत्र में विलुप्त हो जाती हैं। केवल बड़ी नदियां ही इस पर बहती हुई दिखाई देती हैं। यह क्षेत्र फसलों की खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। लंबी जड़ों वाले बड़े वृक्ष ही यहां फल- फूल पाते हैं।
भाबर के दक्षिण में 15 से 30 कि.मी. चौड़ी तराई की पट्टी है। यहां भाबर में लुप्त हुई नदियां फ़िर से सतह पर प्रकट हो जाती हैं। अधिक वर्षा के कारण यह अत्याधिक नमी वाला प्रदेश है और मच्छरों से भरा है, जिसके कारण मलेरिया की अत्याधिक संभावना बनी रहती है।
यह उत्तर भारत के विशाल मैदान का वह ऊंचा भाग है, जहां पर नदियों के बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता। यह पुरानी जलोढ़ मिट्टियों से बना है। इस मैदान में ह्यूमस की प्रचुरता है तथा उपजाऊ है।
यहां अशुद्ध कैल्सियम कार्बोनेट की ग्रंथिकाएं (nodules) एवं संग्रन्थियां (concretions) विद्यमान हैं, जिन्हें ‘ककड़’ (kankar) भी कहते हैं। शुष्क क्षेत्रों में लवणीय एवं क्षारीय क्षेत्र भी विकसित हुए हैं जिन्हें ‘रेह’, ‘कल्लर’ या ‘धुड़’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
नदियों की धारा के दोनों तरफ तथा बाढ़ के मैदानों में नये जलोढ़ों से बने मैदानी भाग खादर या ‘बेत’ कहलाते हैं। हर साल वर्षा ऋतु में नदियों द्वारा नई मिट्टी की परत बिछा दी जाती है, जिससे इन मैदानों की उर्वरता बनी रहती है।
खादर भूमि में बालू, गाद, चिकनी मिट्टी और कीचड़ आदि का मिश्रण होता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अधिकांश खादर मैदानों को कृषि क्षेत्र में परिवर्तित कर लिया गया है, जिन पर मुख्यतया गन्ने, चावल, गेहूं, मक्के, तिलहन, फलीदार फसलों तथा चारे की खेती की जाती है।
डेल्टाई मैदान खादर के ही विस्तार हैं। यह गंगा नदी के निचले भागों में लगभग 1.9 लाख वर्ग कि.मी. में विस्तृत है। नदी के बहाव के कम होने के कारण गाद के महीन कण नदी मुहाने के पास पर जमा हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप डेल्टा का निर्माण होता है।
डेल्टा प्रदेश की उच्चभूमि को ‘चार’ (Chars) और दलदलीय क्षेत्र को ‘बिल’ (Bils) के नाम से जानते हैं। गंगा के डेल्टा के सक्रिय डेल्टा (active delta) होने के कारण इसका बंगाल की खाड़ी की ओर निरंतर विस्तार जारी है।